
राम नवमी 2025 के पावन अवसर पर, जब सम्पूर्ण भारत श्रीराम जन्मोत्सव के उल्लास में डूबा है, उसी दिन एक श्रद्धालु हृदय से भरी पदयात्रा अपने ईश-प्रेम और आस्था की पूर्णता को प्राप्त कर रही है। रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के निदेशक श्री अनंत अंबानी ने जामनगर से द्वारकाधीश मंदिर तक की 110 किलोमीटर लंबी पदयात्रा को आज पूर्ण किया — और इस पावन यात्रा का समापन उन्होंने श्रीकृष्ण के चरणों में नमन कर किया।
“यह यात्रा मेरी आत्मा की पुकार थी” – अनंत अंबानी
द्वारकाधीश मंदिर पहुंचने के बाद अनंत अंबानी ने गहरे भावुक स्वर में कहा –
🕉️ “यह मेरी निजी और आध्यात्मिक यात्रा थी। भगवान श्री द्वारकाधीश की कृपा सदा से रही है। उन्होंने ही शक्ति दी, उन्होंने ही संकल्प दिया और उन्हीं के नाम से यात्रा पूरी हुई। मैं उनके चरणों में कोटि-कोटि वंदन करता हूं।”
उन्होंने बताया कि इस यात्रा में उन्हें न केवल शारीरिक ऊर्जा मिली, बल्कि आध्यात्मिक अनुभवों की एक नई दिशा भी मिली।
“परिवार की दुआएं और विश्वास मेरे साथ थे”
अनंत अंबानी ने भावुक होते हुए कहा कि इस यात्रा में उनके परिवार का आशीर्वाद और सहयोग हमेशा उनके साथ रहा।
“मेरी पत्नी आज यहां आई हैं, मेरी माता जी भी आ रही हैं। मेरे पिताजी ने मुझे इस यात्रा के लिए बहुत बल और प्रेरणा दी। दादी, नानी, सास-ससुर… मैं सभी का हृदय से आभार प्रकट करता हूं।”
नीता अंबानी: “मां के लिए इससे बड़ा गर्व नहीं”
रिलायंस फाउंडेशन की संस्थापक-अध्यक्ष और अनंत की माता श्रीमती नीता अंबानी ने कहा –
“एक मां के लिए यह क्षण अत्यंत गौरवपूर्ण है। अपने सबसे छोटे बेटे को श्रद्धा और संकल्प के साथ भगवान श्री द्वारकाधीश की शरण में जाता देखना, एक अद्भुत अनुभव है।”
उन्होंने यह भी कहा कि पिछले 10 दिनों से पदयात्रा में शामिल युवाओं ने भारतीय संस्कृति और भक्ति परंपरा को जीवंत किया है, और यह यात्रा केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि सांस्कृतिक चेतना की सामूहिक अभिव्यक्ति बन चुकी है।
110 किलोमीटर की भक्ति-यात्रा: एक आध्यात्मिक प्रेरणा
अनंत अंबानी की यह पदयात्रा केवल दूरी तय करने की बात नहीं थी, यह यात्रा थी श्रद्धा से भरे मन की, प्रभु प्रेम से ओत-प्रोत आत्मा की, और दृढ़ निश्चय से भरे भाव की। हर कदम पर उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण किया, हर पड़ाव पर उन्होंने भक्ति की गंगा बहाई।
अनंत अंबानी की यह यात्रा एक उदाहरण है कि जब श्रद्धा सच्ची हो, तो रास्ते कठिन नहीं लगते। उनके कदमों में केवल धूल नहीं थी, उसमें विश्वास था, संकल्प था, और प्रभु प्रेम का प्रकाश था।
द्वारकाधीश की कृपा बनी रहे, यही कामना है। और यह यात्रा आने वाली पीढ़ियों को यह सिखाएगी कि संसार की सारी उपलब्धियों के बाद भी, सच्चा सुख प्रभु के चरणों में ही है।