विकास त्रिपाठी की विशेष रिपोर्ट ;

हरियाणा की सुनारिया जेल अब शायद ‘धार्मिक विश्रामगृह’ बन चुकी है, जहां से सजायाफ्ता बाबा गुरमीत राम रहीम कभी भी फरलो के नाम पर छुट्टियां मनाने बाहर आ सकता है। 13वीं बार ये ‘VIP कैदी’ फरलो पर बाहर आया है, और हर बार की तरह इस बार भी सिरसा डेरा के लिए काफिला तैयार था, मानो जेल से नहीं, किसी प्रवचन मंच से लौट रहे हों।
राम रहीम को किन मामलों में सजा हुई?
1. साध्वियों से बलात्कार का मामला (2002/2017):
राम रहीम पर डेरा सच्चा सौदा की दो साध्वियों ने यौन शोषण का आरोप लगाया था। यह मामला साल 2002 में एक गुमनाम पत्र के जरिए सामने आया।
2017 में CBI कोर्ट ने राम रहीम को दो महिलाओं के साथ बलात्कार करने का दोषी पाया और 20 साल की कैद की सजा सुनाई — 10-10 साल की दो सजाएं, जो लगातार चलनी थीं।
2. पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की हत्या (2002/2019):
पत्रकार रामचंद्र छत्रपति ने डेरा के अंदर चल रहे शोषण और आपराधिक गतिविधियों का पर्दाफाश किया था। इसके बाद उनकी हत्या कर दी गई।
CBI जांच में राम रहीम को मुख्य साजिशकर्ता माना गया और 2019 में CBI कोर्ट ने उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
3. नपुंसक बनाने का आरोप (जारी मामला):
राम रहीम पर यह आरोप भी है कि उसने अपने डेरे के कई अनुयायियों को यह कहकर नपुंसक बनवाया कि वे “भगवान के और पास” जा सकें। यह मामला अभी न्यायिक प्रक्रिया में है।
फरलो या फेवर? फरलो का मतलब है – कैदियों को थोड़े समय के लिए जेल से बाहर आने की अनुमति देना, ताकि वो समाज से जुड़ सकें। लेकिन सवाल ये है – क्या एक बलात्कारी हत्यारे को बार-बार समाज से जोड़ने की जरूरत है, या फिर सत्ता से जोड़ने की लालसा है?
क्या फरलो अब कानून नहीं, बल्कि राजनीतिक सौदेबाजी का नया टूल बन गया है?
हनीप्रीत का स्वागत, VIP काफिला तैयार! जेल से बाबा को लेने पहुंची हनीप्रीत और चमचों की पूरी फौज, मानो किसी संत को नहीं, किसी शासक को लाया जा रहा हो। क्या जेल अब VIP विश्रामालय बन गई है?
चुनाव से पहले ‘डेरा डिप्लोमेसी’? दिल्ली चुनाव से ठीक पहले भी राम रहीम को फरलो मिली थी, और अब फिर चुनावी मौसम में बाबा बाहर हैं।
क्या ये सिर्फ इत्तेफाक है? या फिर वोट बैंक का ‘बाबा कार्ड’ फिर से खेला जा रहा है?
न्याय का मज़ाक या ‘आस्था’ की आड़ में आज़ादी?
जब एक बलात्कारी, हत्यारे और साजिशकर्ता को 13 बार फरलो दी जाए और वो समाज में ‘आशीर्वाद’ बांटे, तो सवाल उठता है —
क्या यही है ‘नए भारत’ की न्याय व्यवस्था? जहां जेल में रहकर भी बाबा की सत्ता बनी रहती है, और राजनीति उसकी कृपा की मोहताज बनी हुई है?
राम रहीम अब सिर्फ एक सजायाफ्ता कैदी नहीं है — वो सिस्टम की कमजोरियों, सत्ता की चापलूसी और वोट बैंक की राजनीति का ‘जीवंत प्रतीक’ बन चुका है।
जहां आम कैदी सालों तक परोल के लिए तरसते हैं, वहीं ‘डेरा राज’ का ये महाराज बार-बार बाहर आता है, और लोकतंत्र फिर एक बार शर्मिंदा होता है।

VIKAS TRIPATHI
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