
राजनीति के अखाड़े में इन दिनों बब्बर शेरों की जंजीरें चर्चा का विषय बनी हुई हैं। राहुल गांधी ने गुजरात में अपने ही नेताओं की “चेनबद्ध स्वतंत्रता” पर रोशनी डालते हुए कहा कि कांग्रेस में शेर तो बहुत हैं, मगर उन शेरों के गले में पट्टा पड़ा है। मतलब, आधे बब्बर शेर भाजपा के लिए शिकार पर निकलते हैं और आधे बस पार्टी के नाम पर दहाड़ मारने का काम करते हैं।
अब भला जब नेता खुद ही मान लें कि उनकी ही पार्टी में लोग अंदरखाने बीजेपी के लिए काम कर रहे हैं, तो जनता को क्या सोचना चाहिए? क्या कांग्रेस एक राजनीतिक पार्टी है या कोई संयुक्त परिवार, जहां अंदरूनी कलह के बावजूद दिखावे की एकता बनाए रखने का दबाव रहता है?
दिग्विजय सिंह का “सियासी ज्ञान” और “संघ-प्रियता” का रहस्य
इसी बीच कांग्रेस के अनुभवी विचारक और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने भी अपने अनुभवों की पोटली खोल दी। उन्होंने राहुल गांधी को उनके “साहसिक” बयान के लिए बधाई दी और खुद का एक पुराना राज़ खोलते हुए बताया कि जब वे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, तो उन्हें गुजरात में प्रचार करने के दौरान निर्देश दिए गए थे कि “संघ के खिलाफ मत बोलो, हिंदू नाराज़ हो जाएंगे!”
वाह! तो मतलब कांग्रेस भी संघ से उतना ही डरती थी, जितना बीजेपी विपक्षी दलों से! मतलब, मुद्दा ये नहीं कि संघ क्या कर रहा है, मुद्दा ये है कि “हिंदू नाराज़ हो जाएंगे!” अब भला संघ ने कब से सभी हिंदुओं का ठेका ले लिया कि उनके खिलाफ बोलने से पूरा हिंदू समाज बुरा मान जाएगा?
दिग्विजय सिंह ने इसके साथ ही बीजेपी को “शोषक तत्वों का समूह” बताते हुए तंज कसा कि भाजपा का असली उद्देश्य धर्म के नाम पर जनता को लूटकर सत्ता में बने रहना है। अब इसमें कौन-सा नया खुलासा है? ये तो वही पुरानी कहानी है – “हम अच्छे, वो बुरे!”
“कांग्रेसियों, चेन खोलो!” – राहुल का नया फॉर्मूला
राहुल गांधी के अनुसार, कांग्रेस के अंदर 30-40 लोग बीजेपी के लिए काम कर रहे हैं। तो भैया, जब मालूम है कि दुश्मन घर के अंदर है, तो निकालते क्यों नहीं? या फिर यह भी “बड़ी मीटिंगों और प्रेस कॉन्फ्रेंसों” तक ही सीमित रहेगा?
राहुल जी को अब कांग्रेस के “रेस के घोड़ों” और “बारात के घोड़ों” में फर्क समझ आ गया है। उन्होंने फरमाया कि कांग्रेस रेस के घोड़े को बारात में लगा देती है। चलिए, अच्छा है, कम से कम अब ये तो मान लिया कि कांग्रेस के अंदर असली घोड़ों की पहचान नहीं हो पाती!
“जय सिया राम” और कांग्रेस का नया सॉफ्ट हिंदुत्व?
दिग्विजय सिंह ने अपने ट्वीट में अंत में “जय सिया राम” लिखा, जिससे एक नया सवाल खड़ा हो गया – “क्या कांग्रेस अब सॉफ्ट हिंदुत्व की नई राजनीति खेल रही है?” या फिर यह बीजेपी से मुकाबले के लिए एक नया हथकंडा है? क्योंकि अब तक कांग्रेस अपने सेक्युलर छवि पर गर्व करती आई थी, लेकिन जब नेताओं की बोली बदलने लगे, तो समझ जाना चाहिए कि चुनावी गणित ने उनकी सोच बदल दी है!
एक संम्पादक के तौर से राहुल गांधी जी को कहना चाहता हूँ– शेरों को आज़ाद करो या नया सर्कस खोलो!
अब देखना ये है कि राहुल गांधी की नई खोज पर कांग्रेस कितनी गंभीरता दिखाती है। क्या वाकई में 30-40 “बीजेपी एजेंटों” को बाहर किया जाएगा, या फिर यह मुद्दा भी “मंथन-चिंतन-परिषद” की किसी फाइल में धूल खाता रह जाएगा?
दिग्विजय सिंह को अगर संघ से इतनी ही दिक्कत थी, तो वे इतने साल तक चुप क्यों रहे? और अगर हिंदू नाराज़ होने से डर था, तो फिर अब इस पर बोलने का साहस कहां से आया? सवाल बहुत हैं, जवाब कम।
तो कुल मिलाकर, राजनीति का यह नया नाटक “शेर, चेन और सत्ता का खेल” अभी जारी रहेगा। जनता तो बस देख रही है कि आखिर असली खिलाड़ी कौन है और पर्दे के पीछे कौन बिसात बिछा रहा है!

VIKAS TRIPATHI
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