
महाराष्ट्र में निकाय चुनाव की बिसात अब तेजी से बिछाई जा रही है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद राज्य चुनाव आयोग को चार सप्ताह में अधिसूचना जारी करनी है, ऐसे में राजनीतिक दलों ने अपने-अपने समीकरण साधने शुरू कर दिए हैं। इसी कड़ी में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने राज्य में जिलाध्यक्षों की नई सूची जारी कर संगठन को चुनावी मोड में ला दिया है। लेकिन इस सूची में उत्तर भारतीय नेताओं को पूरी तरह नजरअंदाज कर देना बीजेपी के लिए आगामी बीएमसी चुनाव में सिरदर्द बन सकता है।
बीजेपी ने बदले 58 में से 39 जिलाध्यक्ष, उत्तर भारतीय कोई नहीं
मंगलवार को बीजेपी ने 78 में से 58 जिलाध्यक्षों के नामों की घोषणा की। इनमें से 39 नए चेहरे हैं, जबकि 19 पुराने जिलाध्यक्षों को दोबारा मौका मिला है। लेकिन चौंकाने वाली बात यह रही कि इन 58 में एक भी उत्तर भारतीय नेता को जिलाध्यक्ष नहीं बनाया गया। मुंबई जैसे महानगर में जहां उत्तर भारतीय समाज की संख्या निर्णायक है, वहां उनकी अनदेखी पार्टी को भारी पड़ सकती है।
मुंबई में उत्तर भारतीय समाज निर्णायक भूमिका में
मुंबई में लगभग 30 लाख उत्तर भारतीय वोटर हैं। ये वोटर कलीना, कुर्ला, दहिसर, चारकोप, कांदिवली ईस्ट, बोरीवली, मागाठाणे, वर्सोवा, गोरेगांव, दिंडोशी, जोगेश्वरी पूर्व और अंधेरी ईस्ट जैसे क्षेत्रों में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। 2024 के विधानसभा चुनाव में मुंबई में मैदान में उतरे 14 उत्तर भारतीय प्रत्याशियों में से 6 जीतकर विधायक बने। इससे साफ है कि यह समाज न सिर्फ संगठित है, बल्कि सत्ता परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभा सकता है।
मुंबई से लेकर नागपुर-पुणे तक असरदार है उत्तर भारतीय वोट बैंक
मुंबई के अलावा ठाणे, नवी मुंबई, कल्याण, पुणे, नागपुर, औरंगाबाद और कोल्हापुर जैसे शहरों में भी उत्तर भारतीय वोटरों की तादाद खासा असर रखती है। इन क्षेत्रों की नगरपालिकाओं के चुनाव में उत्तर भारतीय वोटर परिणाम तय करने की स्थिति में हैं।
मुंबई में तीन जिलाध्यक्षों की घोषणा, फिर भी नहीं दिखा उत्तर भारतीय चेहरा
बीजेपी ने मुंबई रीजन के छह जिलों में से तीन जिलाध्यक्षों के नाम घोषित किए हैं—उत्तर मुंबई से दीपक तावडे, उत्तर मध्य से विरेंद्र म्हात्रे और उत्तर पूर्व से दीपक दलवी। इन तीनों में से कोई भी उत्तर भारतीय नहीं है। जबकि दक्षिण मुंबई, दक्षिण मध्य और उत्तर पश्चिम मुंबई के जिलाध्यक्षों की घोषणा अभी लंबित है। सूत्रों की मानें तो दक्षिण मुंबई और दक्षिण मध्य से उत्तर भारतीय नेता को मौका मिलना मुश्किल है। अब सारी नजरें उत्तर पश्चिम मुंबई पर टिकी हैं, जहां पार्टी एक उत्तर भारतीय को जिलाध्यक्ष बना सकती है।
उत्तर भारतीय समाज में नाराजगी के संकेत, बीजेपी के लिए खतरे की घंटी
उत्तर भारतीय समाज पहले से ही समाजिक और राजनीतिक उपेक्षा को लेकर सतर्क है। अगर बीएमसी चुनाव से पहले बीजेपी ने कोई ठोस संकेत नहीं दिया, तो उत्तर भारतीय वोटों का एक बड़ा वर्ग पार्टी से किनारा कर सकता है। इस वर्ग की नाराजगी बीएमसी में बीजेपी की सीटों पर सीधा असर डाल सकती है।
राजनीतिक संतुलन साधने की चुनौती
बीजेपी को महाराष्ट्र में सत्ता का रास्ता शहरी निकायों के जरिये ही मिल सकता है। लेकिन अगर पार्टी समाजिक संतुलन नहीं साध पाई, खासकर उत्तर भारतीय समाज को विश्वास में नहीं लिया, तो यह चुनावी रणनीति आत्मघाती सिद्ध हो सकती है।
बीजेपी की जिलाध्यक्षों की नई सूची ने एक ओर जहां संगठन में नई ऊर्जा का संचार किया है, वहीं उत्तर भारतीय समाज की अनदेखी ने भविष्य की चिंता भी खड़ी कर दी है। अब देखना यह है कि क्या पार्टी इस असंतुलन को बीएमसी चुनाव से पहले दुरुस्त कर पाएगी या फिर यह राजनीतिक चूक उसके लिए भारी साबित होगी।