
नई दिल्ली/सोनीपत: पाकिस्तान के खिलाफ हालिया ऑपरेशन सिंदूर पर टिप्पणी करना अशोका यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अली खान महमूदाबाद को भारी पड़ गया। रविवार को उन्हें दिल्ली स्थित ग्रेटर कैलाश आवास से गिरफ्तार कर सोनीपत कोर्ट में पेश किया गया, जहां उन्हें दो दिन की पुलिस रिमांड में भेज दिया गया। इस कार्रवाई को लेकर जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।
‘बयान को देशद्रोह बताना समझ से परे’: मदनी
मौलाना मदनी ने अली खान की गिरफ्तारी को संवैधानिक अधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करार देते हुए कहा कि,
“प्रोफेसर का बयान, जो मेरे संज्ञान में भी है, उसे देशद्रोह या राष्ट्र अपमान की श्रेणी में रखना न केवल अतार्किक है, बल्कि खतरनाक भी। आलोचना या असहमति लोकतंत्र की आत्मा है। सरकार से मतभेद रखना देशविरोध नहीं है।”
‘प्रशासनिक दोहरा रवैया निंदनीय’
मदनी ने इस प्रकरण की तुलना मध्य प्रदेश सरकार के एक मंत्री के विवादास्पद बयान से करते हुए कहा,
“जब एक मंत्री, सेना की एक महिला अधिकारी कर्नल कुरैशी को ‘आतंकवादियों की बहन’ कहता है, तो अदालत की फटकार के बावजूद पार्टी द्वारा कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की जाती। वहीं प्रोफेसर अली को एक टिप्पणी पर तुरंत गिरफ्तार कर लिया जाता है। यह दोहरा मापदंड लोगों के भीतर न्याय प्रणाली के प्रति अविश्वास को जन्म देता है।”
‘विचारों का सम्मान ही एकता की असली नींव’
मदनी ने कहा कि लोकतांत्रिक प्रणाली में एकता भय और दमन से नहीं, बल्कि विचारों के सम्मान से आती है। उन्होंने न्याय प्रणाली और सरकार से अपील की कि वे इस मसले पर संवेदनशीलता और निष्पक्षता से विचार करें।
“न्याय व्यवस्था को यह नहीं भूलना चाहिए कि कानून का उद्देश्य सिर्फ व्यवस्था बनाना नहीं, बल्कि नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा करना है। प्रोफेसर अली खान की बिना शर्त रिहाई के लिए भारत सरकार को तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए।”
सरकार से मांग: प्रोफेसर की रिहाई के लिए उठाए जाएं ठोस कदम
जमीयत ने इस पूरे घटनाक्रम को लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी बताया और कहा कि अगर असहमति को अपराध की श्रेणी में डालने की परंपरा बढ़ती रही, तो इससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ही नहीं, संविधान की आत्मा भी संकट में पड़ जाएगी।
“हम भारत सरकार से मांग करते हैं कि इस मामले में त्वरित और प्रभावी कदम उठाए जाएं ताकि प्रोफेसर अली की बिना शर्त रिहाई सुनिश्चित की जा सके।”