
मुंबई:
जब देश बेरोजगारी, महंगाई और कानून व्यवस्था जैसे असली मुद्दों से जूझ रहा है, तब महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के मुखिया राज ठाकरे एक बार फिर अपने ‘थप्पड़ सिद्धांत’ के साथ चर्चा में आ गए हैं। 30 मार्च की गुड़ी पड़वा रैली में ठाकरे ने फरमान सुना दिया कि जो मराठी नहीं बोलेगा, उसे थप्पड़ पड़ेगा! यानी अब भाषा न बोलना अपराध और मराठी न आना, राजनीतिक ‘पाप’ हो गया है।
राज ठाकरे का यह ‘नववर्ष उपदेश’ न केवल संविधान की आत्मा के खिलाफ है, बल्कि यह लोकतंत्र के गाल पर वही तमाचा है, जिसकी बात वो मंच से कर रहे थे।
अब सवाल ये उठता है कि क्या अब MNS पार्टी का घोषणापत्र यही होगा – “मराठी नहीं बोला? लो थप्पड़!”
सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला, थप्पड़ की गूंज अब न्यायालय में
उत्तर भारतीय विकास सेना के अध्यक्ष सुनील शुक्ला ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। याचिका में साफ आरोप है कि ठाकरे और उनके समर्थक लगातार उत्तर भारतीयों के खिलाफ नफरत और हिंसा भड़काने का काम कर रहे हैं। याचिकाकर्ता का दावा है कि भाषणों के बाद पवई और वर्सोवा जैसे इलाकों में हिंदी बोलने वालों पर हमले हुए – क्या यही है ‘मराठी अस्मिता’? या फिर ये भाषाई गुंडागर्दी की नई परिभाषा?
राज ठाकरे का ये भाषण सिर्फ भाषा पर नहीं, बल्कि संविधान, सहिष्णुता और लोकतंत्र पर सीधा हमला है। IPC की कई धाराएं और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम तक इस पर लागू हो सकते हैं, लेकिन सवाल ये है कि क्या कानून से बड़ा हो चुका है एक नेता का भाषण?
“मराठी भाषा से प्रेम या सस्ती राजनीति का बहाना?”
राज ठाकरे को अगर सच में मराठी से इतना लगाव है, तो महाराष्ट्र की शिक्षा, रोजगार, और ग्रामीण मराठी भाषी युवाओं के भविष्य पर कोई ठोस योजना क्यों नहीं दिखती?
क्या भाषा प्रेम की अभिव्यक्ति केवल बैंकों में काम कर रहे हिंदीभाषियों को डराने और थप्पड़ मारने की धमकी देना है?
शिवसेना (उद्धव) के संजय राउत ने भी इस ‘थप्पड़ पॉलिटिक्स’ की आलोचना करते हुए कहा है कि छोटे कर्मचारियों को निशाना बनाना शर्मनाक है। परंतु ठाकरे जी का भाषण सुनकर ऐसा लग रहा है जैसे महाराष्ट्र की असली समस्या अब ‘मराठी नहीं बोलने वाले कर्मचारी’ बन गए हैं – न कि महंगाई, भ्रष्टाचार या बेरोजगारी।
राजनीति या तमाशा?
राज ठाकरे का भाषण साफ तौर पर बताता है कि उनकी राजनीति अब संविधान नहीं, भावना और भाषा की सस्ती नौटंकी पर आधारित है।
जब वोट नहीं मिलते, तब ‘वोटरों को डराओ’, यही है MNS की रणनीति।
“जो मराठी नहीं बोलेगा, उसे थप्पड़ पड़ेगा” – यह वाक्य न केवल संवैधानिक अधिकारों की हत्या है, बल्कि यह बताता है कि भारत में अब विचारों की नहीं, भाषा की राजनीति होगी — और वह भी धमकी के दम पर!
राज ठाकरे को ये याद रखना होगा कि भारत एक संघीय लोकतंत्र है, जहां हर भाषा, हर क्षेत्र, हर नागरिक को सम्मान और सुरक्षा मिलनी चाहिए।
अगर चुनावी अस्तित्व बचाने के लिए अब थप्पड़ की राजनीति करनी पड़े, तो शायद सबसे बड़ा तमाचा वोटर ही आने वाले समय में चुनावों में मारने वाला है — लेकिन लोकतंत्र के जरिए।

VIKAS TRIPATHI
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