
महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर बड़ा धमाका हुआ है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के अजित पवार गुट के विधायक प्रकाश सोलंके का एक वीडियो सोशल मीडिया पर जबरदस्त तरीके से वायरल हो रहा है, जिसमें वह यह स्वीकार करते दिख रहे हैं कि उन्होंने विधानसभा चुनाव जीतने के लिए 10 से 12 करोड़ रुपये खर्च किए।
यह बयान किसी आम व्यक्ति का नहीं, बल्कि चार बार के विधायक और बीड जिले के संरक्षक मंत्री का है। उन्होंने यह भी दावा किया कि कुछ उम्मीदवारों ने 35 से 45 करोड़ रुपये तक खर्च किए। सोलंके का यह बयान न केवल राजनीति के असली चेहरे को उजागर कर रहा है, बल्कि चुनावी प्रक्रिया में धनबल के बढ़ते प्रभाव पर भी तीखा कटाक्ष कर रहा है।
सियासी बाजार में विधायकी की ‘बोली’!
बीड जिले में एक जनसभा को संबोधित करते हुए सोलंके ने कहा—
“मुझे तो 10-12 करोड़ में विधायक बनने का मौका मिला, लेकिन मेरे क्षेत्र में कुछ लोगों ने 35 से 45 करोड़ रुपये खर्च किए।”
यह सुनकर जनता भौंचक्की रह गई! आखिर चुनाव जीतना जनसेवा का माध्यम है या करोड़ों की बोली लगाने का खेल? क्या अब नेता जनता के वोटों से नहीं, बल्कि पैसों की थैली से जीतते हैं?
राजनीति या करोड़ों की सट्टेबाजी?
सोलंके का यह बयान ऐसे समय में आया है जब बीड जिले में सरपंच संतोष देशमुख की हत्या के मामले में धनंजय मुंडे को महाराष्ट्र सरकार के कैबिनेट मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा है। धनंजय मुंडे भी अजित पवार गुट के कद्दावर नेता हैं, और पार्टी पहले से ही संकट के दौर से गुजर रही है।
अब सवाल उठता है कि अगर विधायक बनने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करने पड़ते हैं, तो फिर ये नेता सत्ता में आने के बाद अपने खर्चे की भरपाई कैसे करते होंगे? इसका जवाब जनता को अच्छे से पता है— भ्रष्टाचार, घोटाले और जनता की गाढ़ी कमाई को अपनी तिजोरी में भरकर!
कौन हैं प्रकाश सोलंके?
• चार बार विधायक, वर्तमान में बीड जिले के संरक्षक मंत्री
• महाराष्ट्र सरकार में राजस्व और पुनर्वास राज्य मंत्री रह चुके हैं
• 2024 में शरद पवार गुट के मोहन बाजीराव जगदाप को 5,899 वोटों से हराया
• पिता सुंदरराव सोलंके महाराष्ट्र के पूर्व उपमुख्यमंत्री और दिग्गज कांग्रेस नेता रहे हैं
सोलंके के इस बयान से चुनावी प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं। क्या राजनीति अब नीलामी का मंच बन चुकी है? क्या अब चुनाव जीतने के लिए विचारधारा, जनसेवा और ईमानदारी की कोई कीमत नहीं बची?
अब तक क्यों चुप है विपक्ष?
इस बयान पर न ही सत्ता पक्ष ने कोई प्रतिक्रिया दी है और न ही विपक्ष ने सवाल उठाए हैं। क्या विपक्ष भी इसी खेल का हिस्सा है? चुनाव आयोग भी इस मामले पर चुप्पी साधे हुए है।
जनता के लिए सवाल— आखिर हमारा वोट बिकाऊ क्यों हो गया?
सोलंके का यह बयान एक चेतावनी है कि अगर राजनीति यूं ही पैसों की गुलाम बनती रही, तो आने वाले समय में आम आदमी के लिए लोकतंत्र सिर्फ नाम का रह जाएगा।
अब देखना दिलचस्प होगा कि इस बयान पर महाराष्ट्र की राजनीति में कोई कार्रवाई होगी या यह भी महज एक ‘राजनीतिक चर्चा’ बनकर रह जाएगा?

VIKAS TRIPATHI
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