
“लोग मुझे (इंदिरा गांधी) उसमें देखेंगे और जब वे उसे (प्रियंका गांधी) देखेंगे,
तो मुझे याद करेंगे। वह चमकेगी और अगली सदी उसकी होगी। तब लोग मुझे भूल जाएंगे।”
वायनाड: यह कथन था भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का, जिसे उन्होंने अपने विश्वासपात्र सहयोगी और 1980 से 1984 तक अपने राजनीतिक सचिव रहे माखन लाल फोतेदार से कहा था। फोतेदार ने 2015 में अपनी पुस्तक द चिनार लीव्स में इस बात का उल्लेख किया था। किताब के अनुसार, इंदिरा गांधी ने 1984 में, अपनी हत्या से करीब एक महीने पहले, प्रियंका गांधी की राजनीति में उभरने की भविष्यवाणी की थी।
2017 में फोतेदार का निधन हो गया, लेकिन उनके ये शब्द आज भी प्रासंगिक लगते हैं, खासकर तब जब प्रियंका गांधी वाड्रा ने बुधवार को केरल के वायनाड से लोकसभा उपचुनाव के लिए नामांकन दाखिल किया। इससे प्रियंका की चुनावी राजनीति में औपचारिक एंट्री हो रही है और दक्षिण भारत में कांग्रेस के अभियान को नई गति मिलने की संभावना है। यह उपचुनाव तब हुआ जब कांग्रेस नेता और प्रियंका के भाई राहुल गांधी ने 2024 लोकसभा चुनाव में जीती वायनाड सीट से इस्तीफा दिया। भारतीय कानून के अनुसार, एक सांसद एक समय में दो पदों पर नहीं रह सकता, इसलिए राहुल ने वायनाड छोड़कर उत्तर प्रदेश के रायबरेली का प्रतिनिधित्व करना जारी रखा, जिसे उन्होंने भी 2024 के चुनाव में जीता था।
प्रियंका में दिखती है इंदिरा की छवि: सिर्फ शक्ल-सूरत या वक्तृत्वकला में ही नहीं, दोनों के राजनीतिक निर्णयों में भी समानता
राजनीतिक विश्लेषकों ने हमेशा प्रियंका की उनकी दादी से मिलती-जुलती शक्ल और शैली की चर्चा की है। इंदिरा गांधी और प्रियंका के बीच उनकी राजनीतिक समझ और लोगों से जुड़ने की कला को लेकर कई समानताएं देखी गई हैं।
इस तरह की तुलना लोगों के बीच काफी लोकप्रिय रही है। उदाहरण के लिए, 2023 में जब प्रियंका ने तेलंगाना में एक रैली को संबोधित करते हुए कांग्रेस के ‘इंदिरम्मा राज्यम’ के बारे में बात की, तो लोगों ने जोरदार तालियों से स्वागत किया। न केवल दोनों की वक्तृत्वकला और शक्ल-सूरत में समानता है, बल्कि उनके राजनीतिक निर्णयों में भी अद्भुत साम्य देखा जा सकता है।
रिपोर्ट्स के अनुसार, जब कांग्रेस ने 1952 के चुनावों में इंदिरा गांधी से चुनाव लड़ने को कहा था, तो वह हिचकिचा रही थीं। उस समय उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा क्योंकि उनके बेटे राजीव और संजय छोटे थे। प्रियंका ने भी अपने बच्चों की वजह से चुनावी राजनीति से दूर रहना चुना। लेकिन, दोनों ने कांग्रेस के लिए सक्रिय रूप से काम किया और पार्टी के अभियान को मजबूत किया। सही समय आने पर, दोनों ने चुनावी मैदान में कदम रखा।
प्रियंका की नामांकन से पहले ही रही है कांग्रेस की ‘संकट प्रबंधक’ की भूमिका
प्रियंका अब भले ही औपचारिक रूप से चुनावी राजनीति में उतरी हों, लेकिन राजनीति उनके लिए कोई अनजाना क्षेत्र नहीं है। उन्होंने कांग्रेस का कई बार समर्थन किया और अमेठी और रायबरेली की देखभाल में अपनी मां सोनिया गांधी और भाई राहुल के लिए वर्षों से सक्रिय भूमिका निभाई। 1990 के दशक के अंत में सोनिया गांधी के चुनाव अभियानों में भी उनकी अहम भूमिका रही। 2004 में जब राहुल गांधी सक्रिय राजनीति में आए, तो प्रियंका ने उनके लिए भी प्रचार किया।
वह अपने पिता राजीव गांधी के साथ भी उनके निर्वाचन क्षेत्र दौरों में जाती थीं। एक साक्षात्कार में राजीव गांधी ने कहा था कि प्रियंका में एक ‘राजनीतिक प्रवृत्ति’ है, जो उन्हें राजनीति के लिए उपयुक्त बनाती है।
2019 में प्रियंका गांधी का औपचारिक राजनीतिक पदार्पण: क्या संसद में फिर से दिखेंगे सुषमा स्वराज-मनोहन सिंह जैसे काव्यात्मक तर्क-वितर्क?
प्रियंका गांधी का आधिकारिक राजनीतिक पदार्पण 2019 के आम चुनाव से पहले हुआ, जब उन्हें उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्से में कांग्रेस अभियान का प्रभार सौंपा गया। 2019 में उन्हें कांग्रेस का महासचिव नियुक्त किया गया और तब से उन्होंने कई राज्यों में पार्टी के चुनावी अभियानों की निगरानी की है।
इस साल की शुरुआत में हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस सरकार को स्थिर करने में प्रियंका की अहम भूमिका रही, जब पार्टी अपने ही विधायकों के विद्रोह और आंतरिक कलह से जूझ रही थी।
क्या संसद में फिर से दिखेगा सुषमा स्वराज-मनोहन सिंह के तर्क-वितर्क का दौर?
अगर प्रियंका वायनाड से जीतती हैं, तो उनकी संसद में एंट्री विपक्ष की आवाज़ को और मजबूत कर सकती है। 2024 लोकसभा चुनाव के दौरान प्रियंका ने भारतीय जनता पार्टी के आरोपों के खिलाफ तेज और सटीक पलटवार करने वाली नेता के रूप में खुद को पेश किया। राहुल गांधी के विपरीत, प्रियंका साधारण और प्रवाहपूर्ण हिंदी में संवाद करती हैं। संसद में उनकी मौजूदगी से बहस और प्रभावी भाषणों की जीवंतता फिर से लौट सकती है।
विश्लेषकों का मानना है कि प्रियंका का वक्तृत्व कौशल संसद में सुषमा स्वराज के दौर की यादें ताज़ा कर सकता है। सुषमा स्वराज और मनमोहन सिंह के बीच हुई कई यादगार बहसें काव्यात्मक अंदाज में होती थीं, जहां दोनों नेता मिर्ज़ा ग़ालिब से बशीर बद्र तक के शेरों का सहारा लेकर एक-दूसरे पर तंज कसते थे। प्रियंका की हिंदी साहित्य में रुचि और उनकी धाराप्रवाह हिंदी उन्हें इसी तरह के भाषणों का केंद्रबिंदु बना सकती है।
प्रियंका गांधी की हिंदी पर पकड़: तेज़ी बच्चन से मिला साहित्य का उपहार
2009 में द संडे टाइम्स को दिए एक साक्षात्कार में प्रियंका गांधी ने खुलासा किया था कि उन्होंने अपने बचपन का बहुत सारा समय बॉलीवुड सुपरस्टार अमिताभ बच्चन की मां और प्रसिद्ध हिंदी कवि हरिवंश राय बच्चन की पत्नी, तेज़ी बच्चन, के साथ बिताया। प्रियंका ने अपनी हिंदी भाषा पर पकड़ का श्रेय भी तेज़ी बच्चन को दिया। उन्होंने बताया कि कैसे तेज़ी उन्हें हरिवंश राय बच्चन की कविताएं और किताबें पढ़ने के लिए देती थीं, जिन्हें वह बहुत पसंद करती थीं।
हाल ही में प्रियंका ने अपने पिता की पुण्यतिथि पर सोशल मीडिया पर हरिवंश राय बच्चन की पंक्तियों को साझा किया, जो यह दर्शाता है कि हिंदी साहित्य और बच्चन परिवार से उनका जुड़ाव अब भी गहरा है।

VIKAS TRIPATHI
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