
महाराष्ट्र में भाषा को लेकर चल रही बहस ने नया मोड़ ले लिया है। राज्य के परिवहन मंत्री प्रताप सरनाईक के एक बयान ने मराठी बनाम हिंदी विवाद को फिर हवा दे दी है। सरनाईक ने कहा, “हिंदी अब मुंबई की बोलचाल की भाषा बन गई है, और वह हमारी प्यारी बहन है।” इस बयान ने मराठी भाषी समुदाय में नाराज़गी और राजनीतिक हलकों में खलबली मचा दी है।
मुंबई में हिंदी को बताया “बोलचाल की भाषा”
प्रताप सरनाईक ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में कहा,
“हम मराठी को अपनी मातृभाषा मानते हैं, लेकिन रोज़मर्रा की बातचीत में कभी हिंदी, कभी अंग्रेजी का भी उपयोग करते हैं। ऐसे में हिंदी अब मुंबई की आम बोलचाल की भाषा बन चुकी है।”
उन्होंने आगे कहा, “मीरा-भायंदर और ठाणे में, मेरे निर्वाचन क्षेत्रों में, जनता से संवाद करते हुए मेरे मुंह से अक्सर हिंदी ही निकलती है। हिंदी हमारी प्यारी बहन है, जबकि मराठी हमारी मां है।”
शिवसेना (उद्धव गुट) और मनसे का तीखा विरोध
सरनाईक के इस बयान पर शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) के नेता संजय राउत ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा,
“बालासाहेब ठाकरे ने मराठी अस्मिता और स्वाभिमान के लिए शिवसेना बनाई थी। आज उन्हीं की विरासत का दावा करने वाले नेता हिंदी को ‘मुंबई की भाषा’ बता रहे हैं। क्या यही बालासाहेब की विचारधारा है?”
राउत ने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा के इशारे पर ये नेता मराठी स्वाभिमान से समझौता कर रहे हैं।
मनसे ने भी किया विरोध
मनसे नेता यशवंत किलेदार ने भी कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा,
“उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को अपने मंत्रियों को मर्यादा में रहने की सलाह देनी चाहिए। हम वोटों की राजनीति के लिए मराठी और मुंबई का अपमान नहीं सह सकते। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना मराठी भाषा और स्वाभिमान के लिए हमेशा लड़ती रहेगी।”
उन्होंने व्यंग्यात्मक लहजे में पूछा, “क्या प्रताप सरनाईक को यह भी पता है कि मुंबई मराठी लोगों की ही है?”
राजनीतिक संदेश और आगामी असर
सरनाईक के इस बयान को आगामी चुनावों की रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है, जहां हिंदी भाषी प्रवासियों को लुभाने की कोशिश की जा रही है। लेकिन मराठी अस्मिता की राजनीति करने वाली शिवसेना और मनसे के लिए यह मुद्दा न केवल भावनात्मक है बल्कि राजनीतिक अस्तित्व का भी सवाल है।
इस विवाद ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है — क्या मुंबई की पहचान मराठी है, या अब वह बदल रही है?