
प्रयागराज – मथुरा की विवादित श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद मामले में शुक्रवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट में अहम सुनवाई हुई। जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की एकल पीठ ने हिंदू पक्ष की 18 याचिकाओं पर विचार किया, जिनमें शाही ईदगाह मस्जिद को “विवादित ढांचा” घोषित करने और संबंधित भूमि को श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट को सौंपने की मांग की गई है।
हाईकोर्ट ने कुछ याचिकाओं पर दाखिल अतिरिक्त अर्जियों को संज्ञान में लेते हुए, मुस्लिम पक्ष से जवाब दाखिल करने को कहा है। कोर्ट ने इस प्रकरण की अगली सुनवाई के लिए 4 जुलाई 2025 की तारीख तय की है।
क्या है विवाद की जड़?
यह विवाद 13.37 एकड़ ज़मीन को लेकर है, जिसमें लगभग 11 एकड़ भूमि पर श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर है और 2.37 एकड़ भूमि पर शाही ईदगाह मस्जिद स्थित है।
हिंदू पक्ष का कहना है कि यह स्थल भगवान श्रीकृष्ण का वास्तविक जन्मस्थान यानी गर्भगृह है, जहां मुगल काल में एक प्राचीन मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण कराया गया था।
वहीं मुस्लिम पक्ष इस दावे को खारिज करते हुए कहता है कि मस्जिद एक वैध धार्मिक स्थल है, और उसके निर्माण को लेकर कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं हैं।
अयोध्या विवाद की तर्ज पर चल रही सुनवाई
इलाहाबाद हाईकोर्ट इस मामले को अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद की तरह देख रहा है और सभी 18 याचिकाओं की संयुक्त सुनवाई कर रहा है। दोनों पक्षों की ओर से तीखी कानूनी बहसें जारी हैं।
यह विवाद अब केवल कानूनी नहीं, बल्कि सामाजिक और धार्मिक रूप से भी अत्यधिक संवेदनशील बन गया है। कोर्ट का आने वाला फैसला इस विवाद के भविष्य की दिशा तय कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने दी थी ASI को पक्षकार बनाने की अनुमति
हाल ही में इस मामले से जुड़ी एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में भी पहुंची थी, जहां शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए हिंदू पक्ष को याचिका में संशोधन कर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को पक्षकार बनाने की अनुमति दी थी।
हिंदू पक्ष का तर्क है कि विवादित ढांचा ASI के तहत संरक्षित स्मारक की श्रेणी में आता है और इस पर पूजा स्थल संरक्षण अधिनियम, 1991 लागू नहीं होता।
क्या है पूजा स्थल अधिनियम, 1991?
18 सितंबर 1991 को भारत की संसद ने “पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम” पारित किया। इसका उद्देश्य था कि 15 अगस्त 1947 को जिस धार्मिक स्थल का जैसा स्वरूप था, वह वैसा ही बना रहे और किसी भी स्थल के धार्मिक चरित्र में परिवर्तन न हो।
यह अधिनियम धर्मनिरपेक्ष भारत के उस वादे को दर्शाता है जिसमें सभी धर्मों के प्रति समान दृष्टिकोण रखने की बात कही गई है। हालांकि, अयोध्या को इस अधिनियम से बाहर रखा गया था।
मथुरा का यह मामला अब न्यायपालिका की अग्निपरीक्षा बन चुका है। श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद पर आने वाले महीनों में अदालत का फैसला, धार्मिक राजनीति से लेकर संवैधानिक मूल्यों की परीक्षा बन सकता है।
अब निगाहें 4 जुलाई की अगली सुनवाई पर टिकी हैं।