
हाल ही में एक दिल दहलाने वाली घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया। अदिति मिश्रा, जिसने JEE Main में 90% अंक हासिल किए, सामान्य वर्ग के लिए कटऑफ 92% होने के कारण क्वालिफाई नहीं कर पाई। वहीं, अनुसूचित जाति (SC) के लिए कटऑफ 48% और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए 78% था। इस असमानता से हताश होकर अदिति ने अपनी जान ले ली। 💔
क्या यह घटना हमारी व्यवस्था पर गंभीर सवाल नहीं खड़े करती?
🔹 क्या इस तरह का आरक्षण वास्तव में उचित है?
🔹 क्या शिक्षा और नौकरियों में जाति के आधार पर भेदभाव न्यायसंगत है?
🔹 क्या प्रतिभाशाली छात्रों के सपनों का बलिदान करना देश के भविष्य के साथ विश्वासघात नहीं है?
आरक्षण: आवश्यकता या अन्याय?
जब आरक्षण प्रणाली लागू हुई थी, तब इसका उद्देश्य वंचित वर्गों को ऊपर उठाना था। लेकिन आज यह एक सशक्तिकरण का साधन कम और राजनीतिक हथियार ज़्यादा बन चुका है।
👉 हमारे संविधान निर्माताओं ने इसे अस्थायी रूप से लागू किया था, लेकिन यह दशकों बाद भी जारी है।
👉 आरक्षित वर्गों को शिक्षा, सरकारी नौकरियों और कई अन्य सुविधाओं में छूट मिलती है, जबकि सामान्य वर्ग के कई आर्थिक रूप से कमजोर छात्र अवसरों से वंचित रह जाते हैं।
👉 आरक्षण जाति के आधार पर नहीं, बल्कि आर्थिक स्थिति के आधार पर होना चाहिए ताकि सभी योग्य उम्मीदवारों के साथ न्याय हो।
क्या हो सकता है समाधान?
✅ आर्थिक आधार पर आरक्षण लागू किया जाए – गरीबी जाति देखकर नहीं आती।
✅ शिक्षा और प्रतियोगी परीक्षाओं में समान अवसर सुनिश्चित किए जाएं – मेरिट को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
✅ ऐसी नीतियाँ बनाई जाएँ जो वास्तव में समाज में समानता को बढ़ावा दें।
अब बदलाव ज़रूरी है!
कब तक लाखों प्रतिभाशाली छात्रों के साथ यह अन्याय होता रहेगा? क्या अब समय नहीं आ गया है कि आरक्षण प्रणाली पर पुनर्विचार किया जाए और इसे योग्यता व आवश्यकता आधारित बनाया जाए?
अगर आप सहमत हैं, तो इस विचार को साझा करें और अपनी आवाज़ बुलंद करें!

VIKAS TRIPATHI
भारत देश की सभी छोटी और बड़ी खबरों को सामने दिखाने के लिए “पर्दाफास न्यूज” चैनल को लेके आए हैं। जिसके लोगो के बीच में करप्शन को कम कर सके। हम देश में समान व्यवहार के साथ काम करेंगे। देश की प्रगति को बढ़ाएंगे।