
अगर बड़े शहर के किसी छोटे कोने की एक छोटी सी बिल्डिंग के छोटे से कमरे में रहकर आप सीलन भरी दीवारों पर अपने अरमानों को लिखकर टांग रहे हैं, तो आप सिर्फ सर्वाइव कर रहे हैं। कुछ लोग यहां से अपनी उड़ान को पा लेते हैं, लेकिन उनका क्या जो पीछे रह जाते हैं? वे उसी सीलन भरी दीवारों वाले कमरे में घुटते रहते हैं और एक दिन जिम्मेदारियों के बोझ से बिन पानी के डूब जाते हैं।
मैं बहुत फिल्में और सीरीज देखती हूं, शायद इसलिए वहां से जीने का रास्ता मिल जाता है। ऐसी ही एक सीरीज थी टीवीएफ की “सपने वर्सेज एवरीवन”। इसके डायलॉग बहुत कमाल के हैं, जैसे “‘काबिल बनो, सक्सेस झक मारके पीछे आएगी’ लिख दिया किसी राइटर ने, ब्लैक कॉफी पीते-पीते, एसी रूम में बैठके… मान लिया क्यूट-क्यूट भोले-भाले लड़के लड़कियों ने…”। जब आप ये सुनते हैं तो ऐसा लगता है जैसे ये एस्पिरेंट्स हमारे जैसे ही लोग थे जिन्होंने इस डायलॉग को जरा ज्यादा सीरियसली ले लिया और निकल पड़े अपने अरमानों का महल बनाने। लेकिन इन्हें क्या मालूम कि सपनों की कीमत भी कागजों से ही चुकानी पड़ती है, बस फर्क इतना है कि इन 10-100 लिखे हुए कागजों पर पूरी दुनिया चल रही है।
ओल्ड राजेंद्र नगर, दिल्ली का वह इलाका जो कल तक सफलताओं की कहानियों के लिए चर्चा में रहता था, आज वहां की गलियों में इस बात की चर्चा है कि यहां पलने वाले सपनों की कीमत क्या है। अगर एक छोटे से कमरे में पानी भरने से आपकी जान जा रही हो, तो आप सिर्फ सर्वाइव कर रहे हैं।
कुछ लोग यहां से अपनी उड़ान को पा लेते हैं, लेकिन उनका क्या जो पीछे रह जाते हैं? वे उसी सीलन भरी दीवारों वाले कमरे में घुटते रहते हैं और एक दिन जिम्मेदारियों का बोझ इतना हो जाता है कि बिन पानी के ये लोग डूब जाते हैं।
वह हादसा जिसने सब बदल दिया…
दिल्ली में बीते दिनों एक ऐसी घटना हुई जिसने हर इंसान को अंदर तक झंझोर दिया। ओल्ड राजेंद्र नगर कोचिंग हादसे में तीन यूपीएससी की तैयारी करने वाले छात्रों की मौत से सारा देश सहम गया। अभी इससे उभर भी नहीं पाए थे कि एक और जिंदगी ने हार मान ली। महाराष्ट्र की एक छात्रा अंजलि ने आत्महत्या कर ली। उसने अपने सुसाइड नोट में सरकार से इच्छामृत्यु को लीगल करने की गुजारिश की थी।
सपनों की कीमत जिंदगी से ज्यादा
सोचिए, कोई कितना परेशान होगा कि उसे अपने आखिरी खत में सरकार से इस बात की गुजारिश करनी पड़ी। अंजलि ने अपने ढाई पन्नों के इस आखिरी खत में बहुत कुछ लिखा है जिससे यह समझ आता है कि सपनों की कीमत आज जिंदगी से भी ज्यादा हो गई है। अंजलि को जानने वालों ने बताया कि वह डिप्रेशन में थी, खासकर पीजी के रेंट बढ़ने के कारण। उसने अपने सुसाइड नोट में लिखा कि दिल्ली में रहकर पढ़ाई करना सबके लिए आसान नहीं है, यहां रहने का खर्चा उठा पाना सबके बस की बात नहीं।
ये भीड़ है सपनों की…
ओल्ड राजेंद्र नगर में शाम या दिन के वक्त कभी भी जाइए, आपको भीड़ ही मिलेगी। लेकिन ये सिर्फ लोगों की भीड़ नहीं है, ये सपनों की भीड़ है। यहां की हर बिल्डिंग के हर कमरे में आपको देश के मैप के साथ दीवारों पर उम्मीदें लटकी मिलेंगी। छह बाई छह के इन कमरों में रहने वालों के लिए ना कपड़े सुखाने की जगह है और ना ही ताजी हवा। बस है तो एक बेड, कपड़ों और किताबों से भरी अलमारी, और एक टेबल-चेयर।
ये शब्द नहीं रोज की दिनचर्या है…
ये कहानी केवल अंजलि की नहीं है, ये परेशानी केवल उसकी नहीं है। अंजलि के इस ख़त में लिखी बातें ओल्ड राजेंद्र नगर या ऐसी जगहों पर रहने वाले कई लोगों की रोज की जिंदगी है। यहां पीने का साफ पानी नहीं मिलता, रहने का खर्चा बहुत ज्यादा है, और यह सब कुछ इन लोगों को हर दिन झेलना पड़ता है। अंजलि जैसे बच्चे हर दिन हजारों की तादाद में यहां आते हैं ताकि वे इस देश की तरक्की में भागीदारी दे सकें। लेकिन अपने घर को छोड़ ये पंछी कई बार ना अपने लिए नया आशियाना ढूंढ़ पाते हैं और ना ही अपनी उड़ान।

VIKAS TRIPATHI
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