Sunday, June 22, 2025
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सिंधु जल समझौते पर भारत के फैसले से पाकिस्तान में मचा हड़कंप, शहबाज सरकार ने लगाई गुहार

नई दिल्ली/इस्लामाबाद: भारत सरकार द्वारा सिंधु जल समझौते को ठंडे बस्ते में डालने के फैसले से पाकिस्तान में राजनीतिक और प्रशासनिक हलचल तेज हो गई है। संभावित जल संकट को देखते हुए पाकिस्तान की शहबाज शरीफ सरकार ने भारत से फैसले पर पुनर्विचार करने की अपील की है। इस संबंध में पाकिस्तान के जल संसाधन मंत्रालय के सचिव सैय्यद अली मुर्तुजा ने भारत के जल शक्ति मंत्रालय की सचिव देवश्री मुखर्जी को पत्र लिखकर बातचीत की पेशकश की है।

भारत का रुख सख्त, “खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते” – पीएम मोदी

सूत्रों के मुताबिक भारत सरकार पाकिस्तान की अपील पर कड़ा रुख अपनाए हुए है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में राष्ट्र के नाम संबोधन में स्पष्ट कहा, “खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते।” सरकार ने सिंधु की तीन प्रमुख नदियों के जल का भारत में पूर्ण उपयोग करने की योजना पर काम शुरू कर दिया है। इसके लिए तत्काल, मध्यम अवधि और दीर्घकालिक परियोजनाओं को अंतिम रूप दिया जा रहा है।

सिंधु जल समझौता: पाकिस्तान की जल जीवन रेखा

1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए सिंधु जल समझौते को पाकिस्तान के लिए ‘लाइफलाइन’ माना जाता है। पाकिस्तान की 21 करोड़ से अधिक आबादी और 90% कृषि भूमि की सिंचाई इस नदी प्रणाली पर निर्भर है। यही कारण है कि भारत के इस कदम ने इस्लामाबाद में चिंता की लहर दौड़ा दी है।

पहलगाम हमले के बाद भारत का बड़ा फैसला

पहलगाम में हुए आतंकी हमले के अगले ही दिन भारत सरकार ने सिंधु जल समझौते को निलंबित कर दिया। यह कदम इसलिए भी अहम है क्योंकि भारत ने 1965, 1971 और 1999 की जंगों के दौरान भी इस समझौते को नहीं छेड़ा था। लेकिन इस बार भारत ने पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए चिनाब नदी पर बने बगलिहार बांध से पानी का प्रवाह रोक दिया है। साथ ही झेलम नदी पर स्थित किशनगंगा परियोजना से पानी के बहाव में भी कटौती की गई है।

भारत ने भेजा विदेश मंत्रालय को पत्र

पाकिस्तान द्वारा भेजा गया पत्र निर्धारित प्रक्रिया के तहत भारत के विदेश मंत्रालय को भेज दिया गया है। लेकिन अब तक भारत सरकार की ओर से कोई सहानुभूतिपूर्ण प्रतिक्रिया नहीं आई है।

भारत द्वारा सिंधु जल समझौते को रोकने का निर्णय राजनयिक दबाव से कहीं अधिक एक रणनीतिक कदम बनता जा रहा है। इससे पाकिस्तान को न सिर्फ पानी के संकट का सामना करना पड़ सकता है, बल्कि भारत ने यह संदेश भी स्पष्ट कर दिया है कि अब वह आतंक के समर्थन की कीमत वसूलने के लिए तैयार है।

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