Tuesday, July 1, 2025
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वक्फ अधिनियम पर तगड़ा वार! सुप्रीम कोर्ट में नई याचिका, मूल कानून की वैधता को दी सीधी चुनौती

वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के खिलाफ उठ रही आवाज़ों के बीच अब एक नई, और कहीं ज़्यादा धमाकेदार याचिका ने कानूनी गलियारों में हलचल मचा दी है। इस बार निशाना सिर्फ 2025 का संशोधन नहीं, बल्कि मूल वक्फ अधिनियम 1995 है, जिसकी संवैधानिक वैधता पर सीधा सवाल उठाया गया है।

क्या है मामला?

प्रख्यात अधिवक्ता हरि शंकर जैन और मणि मुंजाल ने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। उनका दावा है कि वक्फ अधिनियम 1995 “मुसलमानों को अनुचित विशेषाधिकार देता है और गैर-मुस्लिमों के साथ भेदभाव करता है”, जो सीधे संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता), 15 (भेदभाव का निषेध), 21 (जीवन का अधिकार), 25 (धार्मिक स्वतंत्रता), 27 (धार्मिक करों का निषेध) और 300A (संपत्ति का अधिकार) का उल्लंघन है।

कौन-कौन सी धाराएं निशाने पर हैं?
धारा 3(आर), 4, 5, 6(1), 7(1), 8, 28, 29, 33, 36, 41, 52, 83, 85, 89 और 101 जैसी धाराओं को चुनौती दी गई है।

क्या चाहते हैं याचिकाकर्ता? पांच बड़े ‘डायरेक्टिव्स’
1. हिंदू संपत्तियों की पहचान – सरकार को निर्देश दिया जाए कि वह उन धार्मिक या व्यक्तिगत हिंदू संपत्तियों की पहचान करे जिन्हें वक्फ बोर्ड ने अपने कब्जे में लिया है।
2. शामलात भूमि की वापसी – गांव की साझा ज़मीन जैसे शामलात देह, शामलात पट्टी और जुमला मुल्कन को वक्फ से वापस लिया जाए।
3. गैर-मुस्लिमों को वक्फ अधिनियम से बाहर करें – खासकर धारा 4, 5, 6(1) और 7(1) से गैर-मुस्लिमों को बाहर करने की मांग की गई है।
4. सिविल कोर्ट में जाने की आज़ादी – हिंदू/गैर-मुस्लिमों को वक्फ से जुड़े विवादों में सिविल कोर्ट में जाने की छूट मिले।
5. वक्फ ट्रिब्यूनल से छुटकारा – धारा 83 और 85 के तहत गैर-मुस्लिमों को वक्फ ट्रिब्यूनल की बाध्यता से मुक्त किया जाए, ताकि उनकी सुनवाई सामान्य अदालतों में हो सके।

क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?

याचिकाकर्ताओं के वकील विष्णु शंकर जैन ने इस याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने की मांग करते हुए इसे मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना के समक्ष पेश किया। सीजेआई ने कहा कि वह अनुरोध पर विचार करेंगे। यदि याचिका सूचीबद्ध होती है, तो यह मामला वक्फ कानूनों के भविष्य की दिशा तय कर सकता है।

निचोड़: यह सिर्फ एक कानूनी लड़ाई नहीं, बल्कि वक्फ व्यवस्था की बुनियाद को चुनौती देने वाली एक बड़ी संवैधानिक जंग बनती जा रही है। अदालत का अगला कदम न केवल इस याचिका की दिशा तय करेगा, बल्कि वक्फ अधिनियम की परिभाषा और उसके दायरे को भी नए सिरे से गढ़ सकता है।

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VIKAS TRIPATHI
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