
आगरा —
सपा सांसद रामजीलाल सुमन एक बार फिर अपने ‘संवेदनशील’ और ‘गंभीर’ बयानों को लेकर सुर्खियों में हैं। आगरा में एक नाबालिग दलित बच्ची के साथ हुए रेप के मामले में उनका मानना है कि “इतना बड़ा मामला नहीं है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष खुद चलकर आ जाएं।”क्योंकि जाहिर है, सांसद जी के पास एक अदृश्य चार्ट है, जिसमें तय किया गया है कि कौन सा रेप “राष्ट्रीय स्तर का” होता है और कौन सा “स्थानीय स्तर का”।
खून के धब्बे देवस्थान पर, पर बयानबाज़ी सांसद के मैदान पर
उन्होंने आगे आश्वस्त किया — “हम कार्यकर्ता तो आए हैं, यही बहुत है। जो मदद बन पड़ी, करेंगे।”
बिलकुल, रेप पीड़िता को भावनात्मक सहारा देना हो, तो एक दो कार्यकर्ता और झंडा-बैनर पर्याप्त हैं।
17 अप्रैल की रात खेरागढ़ इलाके में जो कुछ हुआ, वह तो गंभीर था — लेकिन सांसद जी के मुताबिक इतना गंभीर भी नहीं कि अखिलेश यादव को “डिस्टरब” किया जाए।क्योंकि राष्ट्रीय अध्यक्ष की व्यस्तताओं में ‘करनी सेना को चेतावनी देना’ ज़्यादा जरूरी है, बजाय किसी पीड़िता से मिलने के।
जब इतिहास बोले तो सांसद जी और बोल पड़ते हैं
रामजीलाल सुमन इतिहास प्रेमी भी हैं। कुछ दिन पहले उन्होंने राणा सांगा को ‘गद्दार’ घोषित कर दिया था।
उनका तर्क साफ है — “अगर तुम कहोगे हर मस्जिद के नीचे मंदिर है, तो हम कहेंगे हर मंदिर के नीचे बौद्ध विहार है।”
इतिहास में इतनी गहराई से उतरने का सुझाव उन्होंने बाकायदा चेतावनी के साथ दिया — “गड़े मुर्दे मत उखाड़ो, वरना भारी पड़ जाएगा।”
यानि यह एक नेता नहीं, खुदाई विभाग के अनुभवी पुरातत्ववेत्ता बन बैठे हैं।
करनी सेना? कौन सेना
सांसद जी सेना के नाम पर भी काफी संशय में रहते हैं।
“अब तक हमने थल, जल, वायु सेना सुनी थी… ये फर्जी करनी सेना कहां से आ गई?”
इस सवाल के साथ उन्होंने न सिर्फ करनी सेना की राष्ट्रीयता पर सवाल उठाया, बल्कि नेताओं की ज़ुबानी मिसाइल प्रणाली भी लॉन्च कर दी।
रामजीलाल सुमन का बयान सिर्फ एक नेता की प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि वो नैतिक थर्मामीटर है जो पीड़िता के दर्द को राजनीतिक कैलेंडर से तौलता है।उनकी नज़र में बलात्कार तब ही राष्ट्रीय मुद्दा बनता है, जब उसमें कैमरे हों, माइक हों और कुर्सियों की मारामारी हो।बाकी सब तो बस “इतना बड़ा मामला नहीं है।”