
उदयभान करवरिया की रिहाई: उत्तर प्रदेश की राजनीति में नई सरगर्मी
उदयभान करवरिया के जेल से बाहर आने के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति में नई सरगर्मी है। करवरिया को कभी बीजेपी के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी का करीबी कहा जाता था। उनकी रिहाई को डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के समीकरण से जोड़कर देखा जा रहा है। कैसे? विस्तार से समझिए।
प्रयागराज की राजनीति में करवरिया बंधुओं का प्रभाव
प्रयागराज की राजनीति में करवरिया बंधुओं का सबसे ज्यादा प्रभाव है। उनका सिपाहसलार उदयभान करवरिया जेल से बाहर आ गया है। एक दौर में मुरली मनोहर जोशी का दाहिना हाथ कहे जाने वाले उदयभान की समय से पहले रिहाई ने प्रयागराज मंडल के राजनीतिक समीकरण को बदल दिया है। करवरिया के प्रभाव वाले इलाके में बीजेपी की हार और उनकी अचानक से रिहाई को लेकर कई तरह की चर्चाएं हैं।
विधायक जवाहर पंडित की हत्या का मामला
1996 में विधायक जवाहर पंडित की हत्या के मामले में पांच साल पहले ही उदयभान करवरिया को उम्रकैद की सजा मिली थी। उदयभान ने करीब 9 साल जेल में बिताए और जेल में आचरण ठीक होने के दावे के बाद सरकार ने उनकी रिहाई का फैसला किया। राज्यपाल ने इस फैसले पर मुहर लगा दी और उदयभान जेल से रिहा हो गए। इस रिहाई से प्रयागराज मंडल में बीजेपी को संजीवनी सी मिल गई है और वर्चस्व की लड़ाई की शुरुआत भी हो गई है।

केशव प्रसाद मौर्य की घेराबंदी?
डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के ईद-गिर्द ही प्रयागराज मंडल की सियासत घूमती है। केशव प्रसाद मौर्य और उदयभान करवरिया के बीच कोई अदावत नहीं है, लेकिन उदयभान का जेल से बाहर आना मौर्य के लिए एक चुनौती है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उदयभान के जरिए सूबे के सबसे ताकतवर शख्स ने मौर्य की घेराबंदी कर दी है।
बीजेपी को मिलेगा फायदा?
बीजेपी के टिकट पर बारा विधानसभा सीट से दो बार विधायक रहे उदयभान की गिनती प्रयागराज मंडल के सबसे बड़े ब्राह्मण चेहरे के रूप में होती है। उनके संगठन कौशल का लोहा मुरली मनोहर जोशी भी मानते थे। लोकसभा चुनाव में मिली हार, प्रयागराज मंडल में कमजोर होता संगठन और ब्राह्मण वोटरों के रूठने की वजह से बीजेपी की उम्मीद उदयभान करवरिया से है।
संगठन को मजबूत करने की चुनौती
उदयभान भले ही जेल से आजाद हो गए हों, लेकिन वह चुनाव नहीं लड़ सकते हैं। उनकी भूमिका अब संगठन में नजर आती है। बीजेपी की कोशिश होगी कि उदयभान एक बार फिर संगठन में लौटें और पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं को 2027 की लड़ाई के लिए तैयार करें। फिलहाल प्रयागराज मंडल का बीजेपी संगठन काफी कमजोर है।

कौशांबी में भी करवरिया का प्रभाव
उदयभान करवरिया की जड़ें कौशांबी से भी जुड़ी हुई हैं। कौशांबी में अभी भी करवरिया के करीबी का सिक्का चलता है और ब्राह्मण वोटरों पर उनकी पकड़ मजबूत है। बीजेपी की कोशिश होगी कि उदयभान के जरिए कौशांबी जिले के समीकरण दुरुस्त किए जाएं।
बेटे को राजनीति में लॉन्च कर सकते हैं?
उदयभान करवरिया जब जेल गए तो उनकी सियासी विरासत को पत्नी नीलम करवरिया ने संभाला था। 2017 में मेजा विधानसभा सीट से बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीतकर नीलम विधायक बनी थीं। हालांकि 2022 का चुनाव नीलम हार गईं। अब उदयभान अपने बेटे सक्षम करवरिया को लॉन्च कर सकते हैं।
करवरिया परिवार का सियासी रसूख
दो बार विधायक रहे उदयभान करवरिया के परिवार का सियासी रसूख काफी बड़ा है। 2002 और 2007 के चुनाव में उदयभान बारा सीट से चुनाव जीते थे, जबकि 2009 में बड़े भाई कपिलमुनि करवरिया प्रयागराज के सांसद बने थे। छोटे भाई सूरजभान करवरिया एमएलसी रहे हैं। उदयभान के कई रिश्तेदार भी राजनीति में हैं।

जवाहर पंडित हत्याकांड
1996 में सपा विधायक जवाहर यादव उर्फ जवाहर पंडित की हत्या कर दी गई थी। उनके साथ ही उनके ड्राइवर और एक राहगीर की हत्या की गई थी। इस तिहरे हत्याकांड का आरोप उदयभान, उनके भाइयों और रिश्तेदार पर लगा था। 2012 में सपा की सरकार आने के बाद उदयभान करवरिया ने आत्मसमर्पण कर दिया और 2019 में कोर्ट ने सभी आरोपियों को दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। दोषी ठहराए जाने के 5 साल बाद ही उदयभान जेल से बाहर आ गए।

VIKAS TRIPATHI
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