
संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की सिविल सेवा परीक्षा के माध्यम से देश को IAS, IPS, और IFS जैसे उच्चाधिकारी मिलते हैं। लेकिन इस प्रतिष्ठित परीक्षा को पास करने के बाद भी, सभी अधिकारी अपने कार्य के लिए सकारात्मक सुर्खियों में नहीं रहते। कुछ अधिकारी अपने कारनामों के कारण विवादों में भी घिर जाते हैं। ऐसा ही एक मामला 2014 बैच के IFS अधिकारी मोहन चौधरी का है, जिनका हाल ही में तबादला किया गया और उसके तुरंत बाद उन्हें सस्पेंड कर दिया गया।
इंजीनियरिंग ग्रेजुएट से IFS अधिकारी तक का सफर
मोहन चौधरी, जो राजस्थान के रहने वाले हैं, ने इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और वर्ष 2014 में UPSC परीक्षा पास कर IFS अधिकारी बने। वे AGMUT कैडर के अधिकारी हैं और पहले जम्मू-कश्मीर में डीएफओ (डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर) के पद पर तैनात थे। हाल ही में उनका तबादला लद्दाख में किया गया था, लेकिन वहां ड्यूटी ज्वाइन नहीं करने के कारण वे विवादों में घिर गए।
सस्पेंशन का कारण
केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने शुक्रवार को आदेश जारी करते हुए बताया कि मोहन चौधरी को जम्मू-कश्मीर सरकार के आदेश के तहत लद्दाख में डिप्टी कंजर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट (DCF) के पद पर स्थानांतरित किया गया था। आदेश के अनुसार, उन्हें तुरंत कार्यमुक्त कर लद्दाख में ड्यूटी ज्वाइन करने के निर्देश दिए गए थे। लेकिन चौधरी ने आदेश का पालन नहीं किया और अपनी नई तैनाती पर नहीं पहुंचे।
जून 2024 में उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था, जिसका उत्तर असंतोषजनक पाया गया। उनके इस आचरण को अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम, 1968 का उल्लंघन मानते हुए सस्पेंड कर दिया गया। उन्हें अनुशासनहीनता, सीनियर्स के आदेशों की अवहेलना, और ड्यूटी के प्रति निष्ठा की कमी का दोषी पाया गया है। अब विभागीय कार्यवाही लंबित रहने तक उन्हें सस्पेंड कर नई दिल्ली बुला लिया गया है।
निष्कर्ष
IFS अधिकारी मोहन चौधरी का यह मामला एक बार फिर से साबित करता है कि सिविल सेवा में प्रवेश के बाद भी अधिकारियों को अपने कर्तव्यों का पालन करना अनिवार्य होता है। किसी भी प्रकार की अनुशासनहीनता न केवल उनके करियर को प्रभावित करती है, बल्कि उनकी प्रतिष्ठा को भी नुकसान पहुंचाती है।

VIKAS TRIPATHI
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