
गाजीपुर। श्री गंगा आश्रम में पिछले 47 वर्षों से निरंतर आयोजित हो रहा मानवता अभ्युदय महायज्ञ इस वर्ष भी पूरी भव्यता के साथ आरंभ हो गया। यह आयोजन परमहंस बाबा गंगारामदास की 23वीं पुण्यतिथि को समर्पित है और आगामी 18 अप्रैल तक प्रतिदिन धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के रूप में चलेगा।
कलश यात्रा और गंगा पूजन से हुई शुरुआत
महायज्ञ की शुरुआत कलश यात्रा, गंगा पूजन और श्रीरामचरित मानस नवाह्न पाठ से हुई। यह यज्ञ भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता और मानवीय मूल्यों के प्रचार-प्रसार का माध्यम बन गया है। बाबा गंगारामदास का जीवन इन आदर्शों का मूर्तरूप रहा है।
बाबा गंगारामदास: समाज सुधारक और धर्मप्रवर्तक
बाबा गंगारामदास का जन्म शादियाबाद के गुरैनी गांव में हुआ था। उस समय समाज में दहेज प्रथा, जातिवाद, सांप्रदायिकता और अंध विश्वास जैसी कुरीतियाँ व्याप्त थीं। बाबा ने अपने संपूर्ण जीवन में इनका विरोध किया और लोगों से केवल “मनुष्य बनने” का आह्वान किया। उन्होंने “मानव धर्म प्रसार” नामक संगठन की स्थापना कर सामाजिक जागरूकता और स्थानीय न्याय व्यवस्था को मजबूती प्रदान की। उनके कार्यों से कई गाँव मुकदमा-मुक्त हो गए। आज भी इस संगठन के स्वयंसेवक गांव-गांव में न्याय और धर्म का संदेश पहुँचा रहे हैं।
प्रवचन और सत्संग से गूंजा वातावरण
यज्ञ के पहले दिन की संध्या सभा का आरंभ भक्ति प्रार्थना “वह शक्ति हमें दो दयानिधि” और गुरु अर्चना से हुआ।
साहित्यकार माधव कृष्ण ने प्रवचन में कहा,
“हर युग में जब समाज अत्याचार और कुरीतियों से त्रस्त होता है, तब ऐसे संतों का जन्म होता है। बाबा गंगारामदास ने न सिर्फ धर्म की परिभाषा को स्पष्ट किया, बल्कि उसे व्यवहारिक रूप में समाज में उतारा।”
माधव कृष्ण आगामी 9 दिनों तक आदि शंकराचार्य के ‘विवेक चूड़ामणि’ पर प्रवचन देंगे।
ज्ञान दीपक प्रकरण पर बापू जी का प्रवचन
संत श्री बापू जी महाराज ने श्रीरामचरित मानस के “ज्ञान दीपक” प्रकरण पर व्याख्यान देते हुए कहा:
“संसार का प्रत्येक जीव दुखी है क्योंकि वह माया के प्रभाव में है। जैसे शुद्ध जल पृथ्वी पर गिरते ही गंदा हो जाता है, वैसे ही जीव भी माया के संपर्क में आते ही अपनी दिव्यता खो बैठता है। ईश्वर का अंश होते हुए भी, जब तक वह ईश्वर की शरण में नहीं आता, तब तक मुक्ति संभव नहीं।”
बापू जी अगले 9 दिनों तक इस विषय पर विस्तार से प्रवचन देंगे।
सामूहिक भंडारा और धर्मिक समरसता
सभा के अंत में तपस्थली की परिक्रमा, सार्वजनिक भोजन प्रसाद (भंडारा) का आयोजन हुआ। इस महायज्ञ की एक विशेषता यह है कि इसमें सभी धर्मों, जातियों और संप्रदायों के लोगों का समान रूप से स्वागत किया जाता है, जिससे आपसी भाईचारे और सामाजिक समरसता का भाव मजबूत होता है।
