
Justice For Arjun: बुलंदशहर जिले से आई यह खबर न सिर्फ दुखद है, बल्कि पुलिस तंत्र पर गंभीर सवाल भी खड़े करती है। 2 मई को बीए की छात्रा कुमकुम के लापता होने के बाद गांव के युवक अर्जुन सिंह पर किडनैपिंग का मुकदमा दर्ज किया गया। परिवार ने प्राथमिकी दर्ज कराई, और पुलिस ने भी बिना पूरी जांच के अर्जुन को मुख्य आरोपी मान लिया।
इसके बाद जो हुआ, वह हमारी व्यवस्था की संवेदनहीनता का एक और उदाहरण है। पुलिस ने लगातार अर्जुन के घर पर दबिश दी, घर का सामान तहस-नहस कर दिया गया, परिवार को प्रताड़ित किया गया। अर्जुन डर के साये में इधर-उधर छिपता फिरा — उसे सिर्फ एक डर था, “पुलिस पकड़ लेगी तो बहुत मारेगी।”
7 मई को अर्जुन की लाश एक पेड़ से लटकी मिली।

गांव में मातम है, घरवालों की आंखों में सवाल हैं — “हमारा बच्चा किस गुनाह की सजा लेकर गया?”
और अब, जब 12 मई को यह सामने आया कि कुमकुम वास्तव में अपने प्रेमी मोहित के साथ स्वेच्छा से गई थी और दोनों ने कोर्ट मैरिज भी कर ली है — तो यह साफ हो गया है कि अर्जुन न सिर्फ निर्दोष था, बल्कि एक गलत जांच प्रक्रिया की भेंट चढ़ गया।
पुलिस की भूमिका पर गंभीर सवाल
पुलिस का काम तथ्यों के आधार पर निष्पक्ष जांच करना होता है, न कि बिना सबूत के किसी को अपराधी मानकर उत्पीड़न करना।
• क्या पुलिस ने अर्जुन से सीधे संपर्क किया?
• क्या उन्होंने कुमकुम की कॉल डिटेल, मोबाइल लोकेशन या रिश्तों की गहराई से जांच की?
• क्या कोई गवाह सामने आया था जिसने अर्जुन को किडनैप करते देखा हो?
इन सवालों का उत्तर अगर “नहीं” है, तो फिर यह सिर्फ एक लापरवाह जांच नहीं, बल्कि एक हत्या है — जो डर और दबाव से अर्जुन ने खुद की जान लेकर पूरी की।
प्रशासन को सुझाव
यह घटना सिर्फ अर्जुन की नहीं है — यह उन हजारों युवाओं की कहानी है जो कभी प्रेम प्रसंग, तो कभी झूठे इल्जाम में फंसकर पुलिसिया ज्यादती का शिकार होते हैं। ऐसे मामलों को रोकने के लिए जरूरी है कि:
1. FIR दर्ज करने से पहले प्राथमिक जांच अनिवार्य हो।
2. पुलिसकर्मियों की जवाबदेही तय हो — मनमानी कार्रवाई पर सस्पेंशन और मुकदमा दर्ज हो।
3. गिरफ्तारी से पहले साइबर और डिजिटल साक्ष्यों की जांच अनिवार्य की जाए।
4. मानवाधिकार आयोग और DGP स्तर पर स्वत: संज्ञान लेने की व्यवस्था हो।
अंतिम सवाल — अर्जुन की मौत का जिम्मेदार कौन?
अर्जुन अब लौटकर नहीं आएगा। लेकिन अगर पुलिस की गलती पर कोई कार्रवाई नहीं होती, तो इसका मतलब यही होगा कि एक निर्दोष की जान की कोई कीमत नहीं।यह रिपोर्ट बुलंदशहर पुलिस और पूरे प्रदेश के प्रशासन को आईना दिखाने के लिए पर्याप्त होनी चाहिए — ताकि भविष्य में “तुरंत न्याय” के नाम पर किसी और की जिंदगी यूं ही खत्म न हो।हम मांग करते हैं कि इस मामले में दोषी पुलिसकर्मियों पर तत्काल सस्पेंशन और न्यायिक जांच हो, ताकि अर्जुन के परिवार को न्याय मिल सके — और पुलिस व्यवस्था को यह अहसास हो कि कानून से ऊपर कोई नहीं।
यह विशेष रिपोर्ट सिर्फ एक युवक की मौत नहीं, बल्कि पूरे तंत्र के लिए एक चेतावनी है —
“सच की पड़ताल किए बिना किसी को अपराधी कहना भी एक अपराध है”।

VIKAS TRIPATHI
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