
Prayagraj Why Nagas take royal bath first in Mahakumbh shahi snan: महाकुंभ में पहले शाही स्नान की परंपरा और इसके पीछे की मान्यताओं का इतिहास कई शताब्दियों पुराना है। खासकर नागा साधुओं द्वारा सबसे पहले स्नान करने की परंपरा के बारे में एक दिलचस्प किस्सा है, जो 265 साल पुराना है।
तथ्य 1: नागा साधु और शाही स्नान
महाकुंभ में शाही स्नान का आयोजन दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक समागम है, जिसमें हर साल करोड़ों श्रद्धालु भाग लेते हैं। इस बार प्रयागराज में 45 दिवसीय महाकुंभ के चौथे दिन, 14 जनवरी को मकर संक्रांति के अवसर पर 3.5 करोड़ से ज़्यादा श्रद्धालुओं ने गंगा में पवित्र स्नान किया। इस स्नान की शुरुआत हमेशा नागा साधुओं से होती है, इसके बाद ही बाकी श्रद्धालुओं को स्नान की अनुमति मिलती है।
तथ्य 2: 1760 में हरिद्वार कुंभ का विवाद
यह परंपरा 265 साल पहले शुरू हुई थी जब 1760 में हरिद्वार कुंभ मेले में नागा साधुओं और वैरागी साधुओं के बीच पहले स्नान को लेकर खूनी संघर्ष हुआ। दोनों पक्षों में तलवारें निकल आईं और सैकड़ों वैरागी साधु मारे गए। इसके बाद 1789 के नासिक कुंभ में भी यही विवाद सामने आया, जिसमें वैरागियों का खून बहा।
तथ्य 3: बाबा रामदास का हस्तक्षेप
इस संघर्ष से परेशान होकर, वैरागियों के चित्रकूट खाकी अखाड़े के महंत बाबा रामदास ने पुणे के पेशवा दरबार में शिकायत की। इसके परिणामस्वरूप, 1801 में पेशवा कोर्ट ने नासिक कुंभ में नागा और वैरागी साधुओं के लिए अलग-अलग स्नान घाटों की व्यवस्था की। इसे ध्यान में रखते हुए, उज्जैन और नासिक कुंभ में भी अलग-अलग घाटों का प्रबंध किया गया।
तथ्य 4: अंग्रेजों के बाद की परंपरा
अंग्रेजों के शासन के बाद 19वीं सदी में यह परंपरा और स्पष्ट रूप से तय की गई कि पहले शैव नागा साधु स्नान करेंगे, उसके बाद वैरागी साधुओं का स्नान होगा। इसके साथ ही, अखाड़ों की सीक्वेंसिंग भी तय की गई ताकि आपस में कोई संघर्ष न हो। आज भी यह परंपरा कायम है।

धार्मिक मान्यता:
धार्मिक दृष्टिकोण से, माना जाता है कि समुद्र मंथन से निकला अमृत देवताओं और असुरों के बीच संघर्ष का कारण बना था, और चार जगहों पर अमृत की चार बूंदें गिरीं – प्रयागराज, उज्जैन, हरिद्वार और नासिक। यह स्थान महाकुंभ के आयोजन स्थल बने। नागा साधु भोले शंकर के भक्त माने जाते हैं, और उनकी तपस्या और साधना के कारण उन्हें पहले स्नान का अधिकार प्राप्त हुआ। इसे अमृत स्नान के पहले हक के रूप में माना जाता है।
आध्यात्मिक कारण:
एक अन्य मान्यता के अनुसार, जब आदि शंकराचार्य ने धर्म की रक्षा के लिए नागा साधुओं की सेना बनाई, तो अन्य संतों ने उन्हें पहले स्नान करने का आमंत्रण दिया। चूंकि नागा साधु भोले शंकर के उपासक होते हैं, इस कारण उन्हें शाही स्नान में पहले स्थान का अधिकार मिला।
कुल मिलाकर, यह परंपरा आज भी कायम है और इसे धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। महाकुंभ में शाही स्नान की शुरुआत नागा साधुओं से होती है, और इसके बाद लाखों श्रद्धालु गंगा में डुबकी लगाते हैं। 2025 के महाकुंभ में भी इस परंपरा को बड़े श्रद्धा और सम्मान के साथ निभाया जाएगा।

VIKAS TRIPATHI
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