
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को चुनाव आयोग (ECI) से उन मामलों की विस्तृत जानकारी देने को कहा है, जिनमें उसने आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए गए नेताओं की अयोग्यता की अवधि को कम करने या पूरी तरह हटाने का निर्णय लिया। जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने आयोग को दो हफ्ते के भीतर पूरी रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया।
यह आदेश जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 11 के तहत चुनाव आयोग द्वारा अपने विशेषाधिकारों के इस्तेमाल को लेकर आया है। इस अधिनियम के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति किसी आपराधिक मामले में दोषी ठहराया जाता है और उसे दो या अधिक वर्षों की सजा मिलती है, तो वह रिहाई के छह साल बाद तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य रहता है। हालांकि, चुनाव आयोग के पास यह अधिकार है कि वह इस अयोग्यता की अवधि को घटाने या समाप्त करने का फैसला कर सकता है, बशर्ते वह इसके पीछे उचित कारण दर्ज करे।
दोषी नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग
यह मामला अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर जनहित याचिका (PIL) से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने मांग की थी कि सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों का शीघ्र निपटारा किया जाए और दोषी नेताओं पर आजीवन चुनावी प्रतिबंध लगाया जाए।
सुनवाई के दौरान, यह जानकारी सामने आई कि गैर-सरकारी संगठन (NGO) ‘लोक प्रहरी’ की भी इसी विषय पर एक याचिका पहले से लंबित है, जिस पर अलग पीठ सुनवाई कर रही है। इसे ध्यान में रखते हुए, जस्टिस दत्ता ने उपाध्याय की याचिका को प्रधान न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना के पास भेजने का आदेश दिया, ताकि दोनों याचिकाओं को एक साथ सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जा सके।
“राजनीति के अपराधीकरण को रोकने की जरूरत”
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने इस मामले को गंभीर बताते हुए कहा कि राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है। उन्होंने चुनाव आयोग से यह सुनिश्चित करने की अपील की कि आरोप-पत्र दाखिल होते ही किसी भी व्यक्ति को चुनाव लड़ने से रोका जाए।
वहीं, चुनाव आयोग के वकील ने स्पष्ट किया कि ECI को उन मामलों का विवरण उपलब्ध कराने में कोई समस्या नहीं है, जिनमें उसने दोषी नेताओं की अयोग्यता को कम करने या हटाने के लिए अपने अधिकारों का प्रयोग किया।
“दागी नेताओं को राहत देने की जानकारी सार्वजनिक नहीं!”
सुनवाई के दौरान, न्याय मित्र (Amicus Curiae) विजय हंसारिया ने अदालत को बताया कि चुनाव आयोग द्वारा दोषी नेताओं को दी गई राहत की जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं है। उन्होंने सुझाव दिया कि इन मामलों का पूरा ब्योरा अदालत और जनता के समक्ष पेश किया जाना चाहिए, ताकि पारदर्शिता बनी रहे।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि चुनाव आयोग दो सप्ताह के भीतर ऐसे सभी मामलों की जानकारी अदालत में प्रस्तुत करे। साथ ही, याचिकाकर्ता और अन्य संबंधित पक्षों को आयोग की रिपोर्ट मिलने के दो हफ्ते के भीतर अपना जवाब दाखिल करने की अनुमति दी गई है।
अब क्या होगा आगे?
अब सबकी निगाहें चुनाव आयोग की रिपोर्ट पर टिकी हैं, जिससे यह स्पष्ट होगा कि किस-किस राजनीतिक नेता को चुनाव लड़ने की अयोग्यता से राहत दी गई और किन कारणों से।
इस मामले की अगली सुनवाई के दौरान यह तय हो सकता है कि क्या दोषी नेताओं को चुनावी राजनीति में फिर से प्रवेश देने की प्रक्रिया पर कोई सख्त नियम लागू किया जाए? या फिर आयोग को अपने विवेकाधिकार का प्रयोग करने की छूट मिलती रहे?
बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट का यह दखल भारतीय राजनीति में ‘दागी’ नेताओं के भविष्य को लेकर एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।

VIKAS TRIPATHI
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