नई दिल्ली/गोंडा | विशेष रिपोर्ट:विकास त्रिपाठी
भारतीय कुश्ती महासंघ के पूर्व अध्यक्ष और भाजपा सांसद रहे बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ चल रहे यौन शोषण और POCSO एक्ट के मामले अब खारिज हो चुके हैं, और उन्होंने एक बार फिर साबित कर दिया कि उनकी राजनीतिक पकड़ सिर्फ बरकरार ही नहीं, बल्कि मजबूत भी है।
जहां एक तरफ देश की नामी पहलवानों का विरोध प्रदर्शन अंतरराष्ट्रीय सुर्खियां बटोर रहा था, वहीं दूसरी तरफ न्यायपालिका और राजनीति के गलियारों में बृजभूषण सिंह की रणनीति काम करती दिखी।
केस का पटाक्षेप: बर्थ सर्टिफिकेट बना टर्निंग पॉइंट
साल 2023 में बृजभूषण शरण सिंह पर महिला पहलवानों ने यौन शोषण और एक नाबालिग लड़की के शोषण का आरोप लगाया था, जिससे उनके खिलाफ POCSO एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया।
लेकिन मई 2024 में इस केस में नाटकीय मोड़ तब आया जब उक्त लड़की का बर्थ सर्टिफिकेट अदालत में पेश किया गया, जिससे साफ हो गया कि वह घटना के समय बालिग थी।
इसके बाद लड़की और उसके परिजनों ने भी अदालत में शपथपूर्वक बयान दिया कि उन्होंने “बहकावे में आकर झूठे आरोप लगाए थे।” कोर्ट ने POCSO एक्ट का मामला बंद कर दिया।

धरना-प्रदर्शन से राजनीति तक पहुंचीं महिला पहलवानें
• 2023 की शुरुआत में विनेश फोगाट, साक्षी मलिक, बजरंग पूनिया जैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर के पहलवानों ने जंतर-मंतर पर धरना दिया था।
• सरकार ने पहले WFI को भंग किया, फिर जांच बिठाई, लेकिन पहलवान असंतुष्ट रहे।
• यह आंदोलन धीरे-धीरे राजनीतिक रंग लेने लगा:
• विनेश फोगाट आज कांग्रेस से विधायक हैं।
• दीपेंद्र हुड्डा कांग्रेस सांसद हैं।
• बजरंग पूनिया ने भी कांग्रेस जॉइन कर ली।
• साक्षी मलिक को भी टिकट का ऑफर हुआ, हालांकि उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा।
राजनीति में ‘एक को हटाया, दूसरे को बैठाया’
लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी ने बृजभूषण शरण सिंह का टिकट काट दिया—शायद केस की वजह से—but उन्होंने अपने बेटे किरण भूषण सिंह को मैदान में उतारा, जो गोंडा सीट से भारी बहुमत से जीत गए।
राजनीतिक जानकार इसे बृजभूषण का “सॉफ्ट रिटायरमेंट, लेकिन हार नहीं” मानते हैं। उनकी सत्ता और संगठन पर पकड़ अभी भी जस की तस है।
जनता के सवाल, व्यवस्था की खामोशी
जहां पहलवानों को अब तक कोई स्पष्ट न्याय नहीं मिला, वहीं यह सवाल भी उठा कि क्या न्याय प्रक्रिया पर राजनीतिक प्रभाव पड़ा?
क्या यह सिर्फ एक आंदोलन था या किसी बड़े राजनीतिक खेल की स्क्रिप्ट? क्या साक्षी मलिक और अन्य को सच में न्याय मिला, या राजनीति में समा कर मुद्दा खत्म कर दिया गया?

सत्ता की कुश्ती में कौन जीता, कौन हारा?
बृजभूषण सिंह पर लगे आरोप कानूनी रूप से खत्म हो गए। राजनीतिक रूप से भी उन्होंने अपनी विरासत बेटे को सौंप कर बचा ली।
दूसरी ओर, महिला पहलवानों का आंदोलन धीरे-धीरे राजनीति की गहमागहमी में दब गया। जनता को जवाब शायद मिलें या ना मिलें, लेकिन इतना जरूर तय है—
“बृजभूषण का दबदबा आज भी कायम है।”