
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 11 मार्च से दो दिवसीय दौरे पर मॉरीशस जा रहे हैं। यह यात्रा भारत और मॉरीशस के गहरे ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भाषाई संबंधों को और मजबूत करने का प्रतीक है। मॉरीशस, जिसे “मिनी इंडिया” भी कहा जाता है, का भारत से विशेष संबंध है, जो सदियों से सांस्कृतिक विरासत, प्रवासी इतिहास और आपसी सहयोग के आधार पर विकसित हुआ है।
1998 की पहली यात्रा: एक ऐतिहासिक क्षण
प्रधानमंत्री बनने से काफी पहले, 1998 में, नरेंद्र मोदी ने पहली बार मॉरीशस की यात्रा की थी। उस समय वे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय महासचिव के रूप में कार्यरत थे और अंतर्राष्ट्रीय रामायण सम्मेलन को संबोधित करने के लिए वहां पहुंचे थे। इस दौरान उन्होंने भगवान राम के आदर्शों और रामायण के उन मूल्यों पर प्रकाश डाला, जो भारत और मॉरीशस को एक सभ्यतागत सेतु के रूप में जोड़ते हैं।

इस यात्रा के दौरान मोदी ने न केवल मॉरीशस की जनता से जुड़ाव महसूस किया, बल्कि वहां की राजनीतिक और सांस्कृतिक हस्तियों से भी मुलाकात की। उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति कासम उतीम, प्रधानमंत्री नवीनचंद्र रामगुलाम, और विपक्ष के नेता अनिरुद्ध जगन्नाथ से महत्वपूर्ण चर्चा की। इसके अलावा, उन्होंने पॉल रेमंड बेरेन्जर से भी मुलाकात की, जो बाद में मॉरीशस के प्रधानमंत्री बने।
अख़बार ‘हिंदुस्तानी’ और सांस्कृतिक विरासत
मोदी ने अपनी यात्रा के दौरान इस बात पर जोर दिया कि भारत और मॉरीशस के संबंधों की सबसे मजबूत कड़ी वहां की हिंदी पत्रकारिता भी है। उन्होंने विशेष रूप से अख़बार ‘हिंदुस्तानी’ का उल्लेख किया, जो महात्मा गांधी के आदर्शों से प्रेरित होकर त्रि-भाषा (गुजराती, हिंदी और अंग्रेजी) में प्रकाशित होता था। यह अख़बार मॉरीशस में भाषाई एकता और सांस्कृतिक जुड़ाव का प्रतीक बन गया था और आज भी यह दोनों देशों के रिश्तों की एक महत्वपूर्ण कड़ी बना हुआ है।

गांधी जयंती और ‘वैष्णव जन तो’
1998 की यात्रा के दौरान नरेंद्र मोदी ने महात्मा गांधी की जयंती की पूर्व संध्या पर मॉरीशस में भारतीय प्रवासी समुदाय को संबोधित किया। उन्होंने महसूस किया कि वहां के लोगों में गांधीजी के प्रति गहरी श्रद्धा है। इस अवसर पर उन्होंने गांधीजी के प्रसिद्ध भजन ‘वैष्णव जन तो’ और उनके विचारों को रामायण से जोड़ने की कोशिश की।
दिलचस्प बात यह थी कि इस भजन की पुस्तक महात्मा गांधी संस्थान में उपलब्ध नहीं थी, और इसे खोजने के लिए काफी प्रयास करना पड़ा। अंततः यह एक निजी पुस्तकालय से मिली, और मोदी ने अपने संबोधन में इसके कई अंशों का उल्लेख किया। यह घटना यह दर्शाती है कि कैसे गांधीजी के आदर्श और रामायण के मूल्य मॉरीशस की संस्कृति में गहराई से समाए हुए हैं।
2015 की यात्रा: संबंधों को नई ऊंचाई
अपनी पहली यात्रा के 17 साल बाद, 12 मार्च 2015 को नरेंद्र मोदी एक बार फिर मॉरीशस पहुंचे। इस बार उन्होंने गंगा तालाब के तट पर खड़े होकर मां गंगा को पुष्प अर्पित किए। इस दौरान उन्होंने मॉरीशस के राष्ट्रीय दिवस पर वहां की जनता को संबोधित करते हुए कहा:

“अगर कोई भारत की आत्मा को समझना चाहता है, तो उसे मॉरीशस को देखना चाहिए। अगर नमूना इतना असाधारण है, तो पूरे देश की महानता की कल्पना कीजिए।”
2015 की इस यात्रा के दौरान भारत और मॉरीशस के बीच आर्थिक, तकनीकी और सांस्कृतिक सहयोग को और मजबूत किया गया। पीएम मोदी ने कई महत्वपूर्ण घोषणाएं कीं, जिनमें मॉरीशस में विकास परियोजनाओं के लिए आर्थिक सहायता और सामुद्रिक सुरक्षा में सहयोग शामिल थे।
2024 की यात्रा: एक नया अध्याय
अब, 11 मार्च 2024 को पीएम मोदी एक बार फिर मॉरीशस जा रहे हैं। इस यात्रा का उद्देश्य न केवल द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करना है, बल्कि व्यापार, निवेश, शिक्षा, स्वास्थ्य, और तकनीकी सहयोग जैसे क्षेत्रों में नए अवसरों को खोजना भी है।

मॉरीशस में भारतीय समुदाय की मजबूत उपस्थिति और वहां की संस्कृति में भारतीयता की गहरी जड़ें इस रिश्ते को और खास बनाती हैं। प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा मॉरीशस और भारत के बीच ऐतिहासिक साझेदारी को एक नई ऊंचाई पर ले जाएगी और दोनों देशों के राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों को और सशक्त बनाएगी।
भारत-मॉरीशस: अटूट बंधन
भारत और मॉरीशस की यह अमिट साझेदारी सिर्फ कूटनीतिक नहीं बल्कि भावनात्मक भी है। यह रिश्ता इतिहास की जड़ों से जुड़ा हुआ है और भविष्य में नई ऊंचाइयों तक पहुंचने के लिए तैयार है। पीएम मोदी की यह यात्रा इस रिश्ते को और प्रगाढ़ करेगी और भारत और मॉरीशस के संबंधों का एक नया स्वर्णिम अध्याय लिखेगी।

VIKAS TRIPATHI
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