
अमेरिका में H-1B वीजा पर काम करने वाले भारतीय पेशेवरों का सपना होता है कि वे अपने परिवार के साथ स्थायी रूप से वहां बस जाएं। वे अपने जीवनसाथी और बच्चों को साथ लेकर जाते हैं, इस उम्मीद में कि एक दिन ग्रीन कार्ड मिल जाएगा और वे अमेरिका में सुरक्षित भविष्य बिता सकेंगे। लेकिन यह सपना अब हजारों भारतीय परिवारों के लिए एक बड़ी चिंता का कारण बन गया है।
H-4 वीजा होल्डर्स के सामने बड़ी दुविधा
H-1B वीजा होल्डर्स के बच्चे, जिन्हें H-4 वीजा पर अमेरिका में लाया जाता है, वे जैसे ही 21 वर्ष के होते हैं, उनके सामने एक गंभीर संकट खड़ा हो जाता है। अमेरिकी इमिग्रेशन कानूनों के अनुसार, 21 साल की उम्र पार करने के बाद वे H-4 वीजा की पात्रता खो देते हैं और उन्हें अमेरिका छोड़ना पड़ता है। अगर वे वहीं रहना चाहते हैं, तो उन्हें कोई दूसरा वीजा (जैसे स्टूडेंट वीजा) लेना होगा, जिसकी प्रक्रिया बेहद कठिन और महंगी हो सकती है।
पहले, सरकार की नीति के तहत 21 साल के होने के बाद नए वीजा के लिए दो साल का समय दिया जाता था, लेकिन हालिया नीतिगत बदलावों और कोर्ट के फैसलों के चलते यह सुविधा अब नहीं मिल रही है। ऐसे में हजारों भारतीय बच्चे, जो बचपन से अमेरिका में पले-बढ़े हैं, अचानक अनिश्चित भविष्य का सामना कर रहे हैं।
कितने भारतीय बच्चों को अमेरिका छोड़ना पड़ सकता है?
मार्च 2023 के आंकड़ों के अनुसार, लगभग 1.34 लाख भारतीय बच्चे H-4 वीजा की वैधता खोने के कगार पर थे। ये वे बच्चे हैं जिनके परिवारों ने ग्रीन कार्ड के लिए आवेदन कर रखा है, लेकिन अप्रवासन नियमों और भारी बैकलॉग के कारण उनका इंतजार 12 से 100 साल तक हो सकता है। इस लंबी देरी के चलते उनके बच्चों के पास अमेरिका में कानूनी रूप से रहने का कोई साधन नहीं बचता।
कोर्ट के फैसले और ग्रीन कार्ड बैकलॉग से बढ़ी मुश्किलें
हाल ही में टेक्सास की एक अदालत ने DACA (Deferred Action for Childhood Arrivals) के नए आवेदकों के वर्क परमिट पर रोक लगाने का फैसला सुनाया। DACA उन बच्चों को डिपोर्टेशन से अस्थायी सुरक्षा देता था, जो 21 साल की उम्र के बाद अपने माता-पिता पर निर्भर नहीं रह सकते थे। इस फैसले के कारण भारतीय बच्चों की स्थिति और अधिक जटिल हो गई है।
भारतीय बच्चों की व्यथा: “यह मेरा घर है, फिर भी मुझे बाहर किया जा रहा है”
कैलिफोर्निया की एक 20 वर्षीय नर्सिंग छात्रा, जिसका H-4 वीजा अगस्त में समाप्त हो रहा है, कहती है:
“मैं छह साल की उम्र से अमेरिका में रह रही हूं। मेरी पढ़ाई, दोस्त, और भविष्य सबकुछ यहीं है। लेकिन अब मुझे कहा जा रहा है कि मुझे वह देश छोड़ना पड़ेगा, जिसे मैंने हमेशा अपना घर माना है।”
हालांकि, छात्रा अपने वीजा को F-1 (स्टूडेंट वीजा) में बदलकर पढ़ाई जारी रख सकती है, लेकिन इससे उसे अंतरराष्ट्रीय छात्र माना जाएगा। इसका मतलब है कि उसे राज्य की ट्यूशन फीस, फेडरल फाइनेंशियल एड और स्कॉलरशिप जैसी सुविधाओं से हाथ धोना पड़ेगा। इससे उसके परिवार पर भारी आर्थिक बोझ पड़ेगा, जो पहले से ही अमेरिका में बढ़ते खर्च से जूझ रहा है।
टेक्सास के एक 20 वर्षीय छात्र ने अपनी स्थिति को और स्पष्ट करते हुए कहा:
“मैं राज्य की सहायता के बिना ट्यूशन फीस वहन नहीं कर सकता, और न ही ऑफ-कैंपस काम कर सकता हूं। ऐसा लगता है जैसे मुझे किसी ऐसी चीज़ की सजा दी जा रही है, जिस पर मेरा कोई नियंत्रण नहीं था। मेरे अमेरिकी दोस्तों को जहां 10,000 डॉलर (करीब 8.7 लाख रुपये) फीस देनी पड़ती है, वहीं मुझे 45,000 डॉलर (करीब 39.2 लाख रुपये) तक चुकाने होंगे।”
समाधान क्या है?
भारतीय-अमेरिकी समुदाय और प्रवासी अधिकार संगठनों ने सरकार से H-4 वीजा धारकों के बच्चों के लिए कोई स्थायी समाधान निकालने की मांग की है। वे चाहते हैं कि:
• ग्रीन कार्ड बैकलॉग को कम करने के लिए नए सुधार लागू किए जाएं
• H-4 वीजा होल्डर्स के बच्चों के लिए अलग से राहत दी जाए
• DACA जैसी सुरक्षा उन्हें भी मिले, ताकि वे अमेरिका में रह सकें
H-4 वीजा धारकों के बच्चों की समस्या सिर्फ कानूनी नहीं, बल्कि मानवीय भी है। ये वे बच्चे हैं, जो बचपन से अमेरिका में पले-बढ़े हैं, वहीं की शिक्षा प्रणाली में ढले हैं और उसी समाज का हिस्सा हैं। लेकिन अप्रवासन कानूनों की जटिलताओं और नीतिगत बाधाओं के कारण, वे आज अपने भविष्य को लेकर असमंजस में हैं। अगर अमेरिकी सरकार जल्द कोई समाधान नहीं निकालती, तो हजारों भारतीय परिवारों को अपने बच्चों के साथ भारत लौटने या उन्हें अकेले छोड़ने का कठिन फैसला लेना पड़ेगा।

VIKAS TRIPATHI
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