Sunday, June 22, 2025
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जस्टिस यशवंत वर्मा के घर कैश बरामदगी मामला: सुप्रीम कोर्ट को जांच रिपोर्ट सौंपा गई, सुलगते सवाल अब सीजेआई के पाले में

नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित तीन सदस्यीय उच्चस्तरीय समिति ने जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास से कथित रूप से नकदी मिलने के मामले में अपनी जांच रिपोर्ट चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) संजीव खन्ना को सौंप दी है। यह मामला उस समय सुर्खियों में आया जब 14 मार्च की रात लुटियंस दिल्ली स्थित वर्मा के सरकारी आवास में आग लगी, और आग बुझाने के दौरान ₹500 के जले हुए नोटों के बंडल बरामद हुए।

🔍 तीन जजों की कमेटी ने जांच पूरी कर सौंपी रिपोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने इस संवेदनशील मामले की जांच के लिए तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों की एक समिति गठित की थी, जिसमें शामिल थे:

  • पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू
  • हिमाचल प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश जीएस संधावालिया
  • कर्नाटक हाईकोर्ट की जज अनु शिवरामन

इस तीन सदस्यीय समिति ने 3 मई को अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया और 4 मई को रिपोर्ट CJI को सौंप दी गई। रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा के आवास से नकदी मिलने के पूरे घटनाक्रम की जांच और निष्कर्ष शामिल हैं।

14 मार्च की रात लगी थी आग, स्टोर से मिले थे जले हुए नोट

14 मार्च को रात लगभग 11:35 बजे जस्टिस वर्मा के आवास पर आग लगने की सूचना मिली थी। दमकल कर्मियों ने मौके पर पहुंचकर आग पर काबू पाया। आग बुझाने के दौरान आवास के स्टोर रूम से ₹500 के जले हुए नोटों के बंडल बरामद हुए। इसी घटना के बाद मीडिया रिपोर्ट्स के माध्यम से यह मामला सामने आया और फिर इसमें उच्चस्तरीय जांच की जरूरत महसूस की गई।

कार्य से हटाए गए, फिर हुआ ट्रांसफर

जैसे ही मामला सामने आया, दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय ने तत्काल प्रारंभिक जांच कराई और जस्टिस वर्मा से सभी न्यायिक कार्य वापस ले लिए गए। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 24 मार्च को उनका स्थानांतरण इलाहाबाद हाईकोर्ट में करने की सिफारिश की।

  • 21 मार्च: सुप्रीम कोर्ट ने जांच समिति का गठन किया
  • 28 मार्च: केंद्र सरकार ने ट्रांसफर की अधिसूचना जारी की
  • 5 अप्रैल: जस्टिस वर्मा ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में न्यायाधीश के रूप में शपथ ली

अब क्या होगा आगे?

अब जबकि जांच रिपोर्ट CJI के पास पहुंच चुकी है, आगामी कार्रवाई के लिए पूरे देश की निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या जस्टिस वर्मा के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश होती है या उन्हें क्लीन चिट दी जाती है।

यह मामला क्यों है अहम?

यह मामला न्यायपालिका की पारदर्शिता, जवाबदेही और आंतरिक निगरानी व्यवस्था की साख से जुड़ा है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपनी ही व्यवस्था के एक न्यायाधीश के खिलाफ निष्पक्ष जांच करवाना अपने आप में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।

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