
नई दिल्ली:
देश में बढ़ती स्वास्थ्य समस्याओं और अस्वास्थ्यकर खानपान की प्रवृत्तियों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा और जनहित में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह पैकेज्ड खाद्य पदार्थों पर चेतावनी लेबल लगाने के लिए खाद्य सुरक्षा नियमों में आवश्यक संशोधन करे। यह आदेश 3एस पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट और अवर हेल्थ सोसाइटी द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद दिया गया।
तीन महीने में देनी होगी रिपोर्ट, केंद्र गठित करेगा विशेषज्ञ समिति
न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और आर. महादेवन की खंडपीठ ने कहा कि केंद्र सरकार को एक विशेषज्ञ समिति का गठन करना चाहिए जो तीन महीने के भीतर सुझावों की विस्तृत रिपोर्ट दे। इसके आधार पर FSSAI को आवश्यक संशोधन करने होंगे ताकि उपभोक्ताओं को स्पष्ट और प्रभावी चेतावनी मिले।
FOPL अनिवार्य करने की मांग, 14,000 से अधिक सुझाव प्राप्त
याचिका में मांग की गई थी कि केंद्र, राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को Front of Package Labelling (FOPL) को अनिवार्य रूप से लागू करने का निर्देश दिया जाए। इससे आम नागरिक, खासकर युवा और बच्चे, खाद्य उत्पादों में चीनी, नमक और वसा की मात्रा को जान सकेंगे और सही निर्णय ले पाएंगे।
FSSAI ने अदालत को बताया कि इस विषय पर 14,000 से अधिक आपत्तियां और सुझाव प्राप्त हुए हैं, जिनकी जांच के लिए पहले ही एक विशेषज्ञ समिति बनाई जा चुकी है।
बच्चों के स्वास्थ्य पर अदालत की चिंता
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति पारदीवाला ने हल्के-फुल्के अंदाज़ में कहा,
“बच्चों को यह जानने में ज्यादा रुचि होती है कि पैकेट में क्या है, न कि उस पर क्या लिखा है। पोते-पोतियों को यह तय करने दीजिए कि उन्हें क्या खाना है।”
हालांकि इस व्यंग्य में छिपी गंभीर चिंता साफ थी — बच्चों और युवाओं की सेहत को बाज़ार की चालाकियों से बचाना जरूरी है।
क्यों जरूरी है FOPL?
याचिका में कहा गया कि भारत में गैर-संचारी रोग — जैसे मधुमेह, मोटापा, हृदय रोग और कुछ प्रकार के कैंसर — तेजी से बढ़ रहे हैं, और इसका मुख्य कारण अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड का बढ़ता सेवन है, जिसमें चीनी, नमक और अस्वास्थ्यकर वसा की अधिक मात्रा होती है।
FOPL उपभोक्ताओं को इन खतरों से सचेत करने का एक प्रभावशाली माध्यम बन सकता है।
एक नई शुरुआत की उम्मीद
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्देश से उम्मीद की जा रही है कि भारत में खाद्य सुरक्षा नियम और अधिक पारदर्शी और उपभोक्ता केंद्रित होंगे। यदि चेतावनी लेबल अनिवार्य किया गया, तो यह उपभोक्ताओं को स्वस्थ विकल्प चुनने में मदद करेगा और देश में स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है।

VIKAS TRIPATHI
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