संत शब्द सुनते ही आत्मा में श्रद्धा का भाव जागृत होता है, और मन-मस्तिष्क में एक त्यागमय स्वरूप उभर आता है। संत वही होता है जो भगवान के स्वरूप में स्थित होता है। कुछ जातक अपने पूर्व जन्मों के पुण्यों के कारण संत बनते हैं, तो कुछ को संत की उपाधि उत्तराधिकार में प्राप्त होती है। किसी के मन में बचपन से ही वैराग्य की भावना होती है, और वह ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए संत कहलाते हैं।
संत बनाने वाले उत्तरदायी ग्रह:
- गुरु ग्रह (बृहस्पति): गुरु धर्म का कारक और सत्वगुणी होने के कारण जातक में धार्मिक प्रेम, आध्यात्मिकता, और सात्विक गुणों को प्रोत्साहित करता है। यह जातक को संत स्थिति जैसा वातावरण प्रदान करता है।
- शनि ग्रह: शनि वैराग्य और त्यागमय जीवन जीने की प्रेरणा प्रदान करता है। यह काम, क्रोध, मोह, लोभ, माया जैसे अवगुणों का त्याग कराता है, जिससे जातक परमपिता परमेश्वर की शरण में जाता है।
- केतु: ज्योतिष में मोक्ष का कारक केतु को माना गया है। यह ग्रह जातक को सांसारिक बंधनों से मुक्त कर मोक्ष की ओर ले जाता है।
- चंद्रमा: चंद्रमा जातक के मन की सुदृढ़ता और मस्तिष्कीय विचारों का परिचायक है। इसकी स्थिति से जातक के वैराग्य और संत जीवन में स्थिरता का पता चलता है।
- सूर्य: सूर्य की तेजस्विता आत्मा को सुदृढ़ता और बल प्रदान करती है, जो संत जीवन के लिए परम आवश्यक है।
- लग्नेश, पंचमेश, नवमेश: ये ग्रह जातक के संत जीवन को प्रज्वलित करते हैं। अगर इनका संबंध द्वादश भाव से हो, तो जातक में वैराग्य की भावना और भी अधिक प्रबल होती है, क्योंकि द्वादश भाव मोक्ष का प्रतीक है।
भावों का महत्व:
जन्मकुंडली के सभी भावों का अपना महत्व है। इन ग्रहों और भावों की स्थिति और उनकी आपसी दशाओं से यह निर्धारित होता है कि जातक का जीवन किस दिशा में अग्रसर होगा। संत बनने के लिए ग्रहों का शुभ योग और दशाओं का संतुलन आवश्यक होता है।
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ज्योतिषाचार्य- पं. नरेन्द्र कृष्ण शास्त्री
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VIKAS TRIPATHI
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