
दिल्ली की राजनीति में इन दिनों एक नया करुणा अभियान चल रहा है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने उमर खालिद के प्रति अचानक ऐसी संवेदना जताई कि मानो वे किसी स्वतंत्रता सेनानी के प्रति कृतज्ञता प्रकट कर रहे हों। उन्होंने खालिद को “निर्दोष” बताते हुए सरकार और प्रशासन पर निशाना साधा, लेकिन यह भूल गए कि अदालतें बार-बार उनकी जमानत याचिकाओं को खारिज कर चुकी हैं। अब ज़रा सोचिए, जब अदालतें भी यह मान चुकी हैं कि खालिद पर गंभीर आरोप हैं, तब कांग्रेस को उनकी मासूमियत के सर्टिफिकेट बांटने का इतना शौक क्यों चढ़ा हुआ है?
बीजेपी ने भी तुरंत इस “करुणा अभियान” पर तीखी प्रतिक्रिया दी और कांग्रेस पर वही पुराना आरोप दोहरा दिया—“आतंकवादियों और दंगाइयों का समर्थन करने वाली पार्टी!” बीजेपी प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने तो यहां तक कह दिया कि कांग्रेस को न्यायपालिका पर भरोसा ही नहीं रहा। अरे, भई! कांग्रेस का न्यायपालिका से भरोसा कब का उठ चुका है, जब भी फैसला इनके मनमाफिक नहीं आता, तो यह अदालत को ही कठघरे में खड़ा कर देते हैं।
अब मज़े की बात यह है कि खालिद साहब की जमानत याचिका बार-बार खारिज होती रही है, लेकिन उनकी टीम भी समय-समय पर खुद ही याचिका वापस ले लेती है। यानी खेल भी खुद का, रेफरी भी खुद और हारने के बाद रोना भी खुद! और इसमें कांग्रेस जैसे समर्थक हों, तो फिर चिंता ही क्या?
दिल्ली दंगों के पीड़ितों की बात करें, तो 50 से ज्यादा लोगों की जान गई, लेकिन कांग्रेस को उसमें कोई पीड़ा नहीं दिखी। अंकित शर्मा जैसे लोगों के परिवारों के लिए एक शब्द नहीं निकला, लेकिन उमर खालिद जैसे “क्रांतिकारी” के लिए इतनी सहानुभूति छलक रही है कि गंगा-जमुना भी शर्मा जाए!
अब जरा दिग्विजय सिंह जी के भाषण पर ध्यान दें—“अगर हम एक साथ लड़े, तो जीत सकते हैं, मैं आपके साथ हूं!” अब ये “हम” कौन हैं? यह तो स्पष्ट नहीं किया, लेकिन जिस तरीके से उमर खालिद के समर्थन में खड़े हैं, उससे तो यही लगता है कि कांग्रेस का “हम” और आम जनता का “हम” शायद अलग-अलग हैं।
खैर, कांग्रेस की इस राजनीतिक हमदर्दी का नतीजा क्या होगा, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन फिलहाल बीजेपी ने इस पर तंज कसते हुए साफ कर दिया है कि वोट बैंक की राजनीति में कांग्रेस हर हद पार कर सकती है। तो जनता अब यह तय करे कि यह “करुणा अभियान” वास्तव में निर्दोषों के लिए है या फिर उनकी राजनीति के लिए जो अदालतों के कटघरे में खड़े हैं!

VIKAS TRIPATHI
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