
हैदराबाद: कांचा गाचीबोवली वन क्षेत्र में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई को लेकर देशभर में चिंता बढ़ गई है। मामला तब तूल पकड़ने लगा जब तेलंगाना सरकार ने इस क्षेत्र में 400 एकड़ भूमि पर पेड़ों की कटाई शुरू कर दी। इसे लेकर मीडिया रिपोर्ट्स और पर्यावरणविदों ने कड़ी आपत्ति जताई, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए पेड़ों की कटाई पर तत्काल रोक लगाने का आदेश दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने लिया स्वतः संज्ञान, हाईकोर्ट रजिस्ट्रार को निरीक्षण के निर्देश
गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीर मानते हुए तेलंगाना हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार (न्यायिक) को निर्देश दिया कि वे कांचा गाचीबोवली वन क्षेत्र का दौरा करें और अंतरिम रिपोर्ट पेश करें। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार को इस क्षेत्र में पेड़ों की रक्षा करनी चाहिए और किसी भी प्रकार की निर्माण गतिविधि को रोक देना चाहिए। मामले की अगली सुनवाई 16 अप्रैल को होगी।
तेलंगाना सरकार को फटकार, कटाई की ‘अचानक’ जरूरत क्यों?
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने तेलंगाना सरकार की मंशा पर सवाल उठाए। कोर्ट ने पूछा:
- राज्य सरकार को इतनी हड़बड़ी में पेड़ों की कटाई करने की जरूरत क्यों पड़ी?
- क्या इस परियोजना के लिए पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (EIA) प्रमाणपत्र लिया गया है?
- क्या स्थानीय समुदाय और पर्यावरण विशेषज्ञों से इस पर कोई राय ली गई थी?
पेड़ों की कटाई पर चिंता, वनों की रक्षा का सवाल
कोर्ट को सौंपी गई अंतरिम रिपोर्ट में कहा गया कि हजारों की संख्या में पेड़ काटे जा चुके हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य सरकार ने 5 दिन पहले इस वन क्षेत्र में पेड़ों की कटाई शुरू करवाई थी। इस क्षेत्र में 8 प्रकार के अनुसूचित जीव-जंतु रहते हैं, जो अब खतरे में हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह जंगल हैदराबाद के ग्रीन बेल्ट का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और यहां बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई से स्थानीय जलवायु, जैव विविधता और भूजल स्तर पर गंभीर असर पड़ेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने पेड़ों की कटाई पर तत्काल रोक लगाने का दिया आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना सरकार को सख्त निर्देश दिए कि अगले आदेश तक इस क्षेत्र में कोई भी पेड़ न काटा जाए। कोर्ट ने कहा कि सरकार को इस मामले में जल्दबाजी करने के बजाय पर्यावरणीय और कानूनी पहलुओं पर विचार करना चाहिए।
‘लंबी छुट्टियों का फायदा उठाकर कटाई की गई’ – मीडिया रिपोर्ट्स
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, राज्य के अधिकारियों ने वीकेंड और लंबी छुट्टियों के दौरान जल्दी-जल्दी पेड़ों की कटाई शुरू करवा दी। इस पर सवाल उठाते हुए पर्यावरण कार्यकर्ताओं और स्थानीय लोगों ने कड़ी आपत्ति जताई।
केंद्र सरकार ने राज्य से रिपोर्ट मांगी
इस मामले में केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्री भूपेंद्र यादव ने भी हस्तक्षेप किया है। उन्होंने तेलंगाना सरकार को नोटिस भेजकर विस्तृत रिपोर्ट मांगी है।
राज्यसभा में उन्होंने कहा:
“हैदराबाद में एक बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई है। मैं यह समझ नहीं पा रहा कि राज्य सरकार को इन पेड़ों और हरित क्षेत्र से ऐसी क्या दुश्मनी है कि उन्हें रात के अंधेरे में कटवाया जा रहा है?”
छात्रों का विरोध प्रदर्शन, भूख हड़ताल शुरू
इस बीच हैदराबाद यूनिवर्सिटी के छात्र संघ ने कांचा गाचीबोवली वन क्षेत्र में हो रही कटाई के खिलाफ विरोध प्रदर्शन तेज कर दिया है।
छात्रों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इस भूमि पर आईटी पार्क विकसित करने की सरकार की योजना का कड़ा विरोध किया है। छात्रों ने इसे पर्यावरणीय आपदा करार देते हुए आज से क्रमिक भूख हड़ताल शुरू कर दी है।
क्या कहता है पर्यावरण कानून?
भारत में किसी भी बड़े विकास कार्य के लिए पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (EIA) रिपोर्ट जरूरी होती है। विशेषज्ञों के अनुसार, अगर तेलंगाना सरकार ने बिना EIA के जंगल काटने का फैसला लिया है, तो यह स्पष्ट रूप से कानून का उल्लंघन है।
क्या होगा आगे?
- 16 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की अगली सुनवाई होगी।
- तेलंगाना सरकार को यह बताना होगा कि उसने पर्यावरण मंजूरी ली थी या नहीं।
- अगर सरकार अवैध कटाई में दोषी पाई गई, तो उसे भारी जुर्माने के साथ जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है।
निष्कर्ष: प्रकृति बनाम विकास की जंग
यह मामला केवल 400 एकड़ जंगल का नहीं है, बल्कि पूरे देश में बढ़ते शहरीकरण और पर्यावरण विनाश की बड़ी बहस को दर्शाता है। क्या विकास के नाम पर जंगलों का सफाया किया जाना सही है? या फिर हमें सतत विकास (Sustainable Development) का रास्ता अपनाना चाहिए?
आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या अंतिम फैसला देता है और तेलंगाना सरकार अपनी सफाई में क्या तर्क पेश करती है।