
कृषि भूमि पर अवैध कॉलोनियों पर चलेगा प्राधिकरण का बुलडोजर:
मेरठ। कृषि भूमि पर अवैध रूप से कॉलोनियों का निर्माण करने वालों पर अब प्राधिकरण का बुलडोजर गरजने वाला है। महायोजना के तहत प्राधिकरण के क्षेत्रफल का विस्तार हुआ है, इसलिए सुदूर गांवों पर निगरानी रखने के लिए सैटेलाइट से चित्र खींचे जा रहे हैं। इसकी शुरुआत उत्तर प्रदेश में मेरठ विकास प्राधिकरण (मेडा) ने कर दी है।
प्रदेश में पहली बार भू-उपयोग से छेड़छाड़ कर किए जा रहे अवैध निर्माण को रोकने के लिए सैटेलाइट निगरानी शुरू की गई है। मेरठ विकास प्राधिकरण ने इस निगरानी तंत्र का नाम ‘भूनेत्र’ रखा है।
प्राधिकरणों का क्षेत्रफल बढ़ा है जबकि स्टाफ में कमी आई है। इस स्थिति में सैटेलाइट फेंसिंग (तारबंदी) की जा रही है। जब भी किसी स्थान पर निर्माण में बदलाव होगा तो सैटेलाइट उस बदलाव का चित्र प्राधिकरण को भेजेगा। इसके बाद प्राधिकरण भौतिक सत्यापन करके ध्वस्तीकरण या अन्य आवश्यक कार्रवाई करेगा।
महायोजना में निर्धारित भू-उपयोग को नजरअंदाज कर होने वाले निर्माण और सुनियोजित शहरीकरण के मार्ग में आने वाली बाधा को रोकना किसी भी प्राधिकरण के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। प्राधिकरणों में प्रवर्तन अनुभाग होता है, जिसमें सहायक अभियंता, अवर अभियंता व मेट की तैनाती रहती है। जोन और उपजोन बनाए जाते हैं, फिर भी अवैध निर्माण नहीं रुकते। मेरठ विकास प्राधिकरण का क्षेत्रफल महायोजना 2021 में लगभग 500 वर्ग किमी था, जबकि मेरठ महायोजना 2031 में यह बढ़कर 1043 वर्ग किमी हो गया है।
भूनेत्र का कार्य:
मेरठ महायोजना 2031 के क्षेत्र के प्रत्येक खसरे का भू-उपयोग निर्धारित है। भू-उपयोग यानी किस जमीन का किस रूप में उपयोग किया जा सकता है, जैसे कृषि, आवास, उद्योग आदि। महायोजना का डिजिटल मानचित्र बनाया गया है, जिसमें प्रत्येक खसरे पर भू-उपयोग को सुपरइंपोज किया गया है। इसके बाद सैटेलाइट निगरानी से संबंधित सॉफ़्टवेयर द्वारा डिजिटल मैपिंग व फेंसिंग कर दी जाती है। फिर उस खसरे का सैटेलाइट चित्र लिया जाता है।
निर्धारित समय के बाद फिर चित्र लिया जाता है। इससे उस खसरे में यदि कोई निर्माण हुआ है या निर्माण का विस्तार हुआ है, तो उसका बदलाव प्रदर्शित होता है। इसी बदलाव का चित्र इस तंत्र द्वारा लगातार भेजा जाता है।
कृषि भूमि में बनीं कॉलोनियां, 30 को होगा भौतिक सत्यापन:
भूनेत्र निगरानी शुरू कर दी गई है और इसकी पहली तस्वीरें प्राप्त हुई हैं। इनमें देखा गया है कि कृषि भू-उपयोग वाली जमीन पर सबसे अधिक निर्माण हुए हैं। माना जा रहा है कि कृषि भूमि पर अवैध कॉलोनियां विकसित हुई हैं। इन तस्वीरों के आधार पर 30 जुलाई को भौतिक सत्यापन किया जाएगा। जो भी निर्माण स्वीकृति के विपरीत मिलेगा, उस पर कार्रवाई होगी। कार्रवाई के दायरे में संबंधित क्षेत्र के अवर अभियंता भी आएंगे।
मेरठ विकास प्राधिकरण उपाध्यक्ष अभिषेक पांडेय ने बताया कि प्रति माह यह रिपोर्ट मंगाई जाएगी और फिर उसी अनुरूप लगातार सत्यापन होता रहेगा। कुछ समय बाद ये चित्र 15 दिन के अंतराल पर आएंगे। इससे संबंधित वेबसाइट को कमिश्नर, प्राधिकरण उपाध्यक्ष व सचिव लॉगिन कर सकेंगे।