ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर हाल ही में एक बड़े कारोबारी और रणनीतिक एजेंडे के साथ भारत दौरे पर आए थे। इस दौरे के दौरान भारत और यूके के बीच 3,884 करोड़ रुपये से अधिक की रक्षा डील हुई। लेकिन, महज 18 दिन बाद ही स्टार्मर ने तुर्की के साथ 10.7 अरब डॉलर (करीब 89 हजार करोड़ रुपये) की एक और विशाल डिफेंस डील पर हस्ताक्षर कर दिए — जिससे अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में ब्रिटेन के “डबल गेम” की चर्चा जोरों पर है।
तुर्की को मिलेंगे 20 यूरोफाइटर टाइफून जेट
27 अक्टूबर को हुई इस डील के तहत ब्रिटेन तुर्की को 20 यूरोफाइटर टाइफून फाइटर जेट्स देगा। इस समझौते से नाटो सहयोगियों के संबंध और मजबूत होंगे तथा तुर्की की हवाई क्षमता में बड़ा इज़ाफा होगा।
ब्रिटेन के अनुसार, इन 20 विमानों की पहली खेप 2030 तक तुर्की को सौंपी जाएगी। प्रधानमंत्री स्टार्मर ने बताया कि इस सौदे पर बातचीत 2023 में ही शुरू हो गई थी।
हालांकि, रक्षा विश्लेषकों ने इस डील को “अत्यधिक महंगी” करार दिया है। इस्तांबुल के सुरक्षा विशेषज्ञ बुराक यिल्दिरिम ने कहा —
“यह डील फ्रिगेट की कीमत पर विमान बेचने जैसी है। 40 करोड़ पाउंड में एक फाइटर जेट मिलना असंभव है। वे चार विमानों की कीमत में एक बेच रहे हैं — यह सीधा धोखा है।”
ऑपरेशन सिंदूर और तुर्की का भारत विरोधी रुख
यह वही तुर्की है जिसने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान का खुलकर साथ दिया था। रिपोर्ट्स के मुताबिक, उस वक्त तुर्की ने कराची बंदरगाह पर अपना युद्धपोत तैनात किया था।
इसके बाद से भारतीय नौसेना ने तुर्की की गतिविधियों पर कड़ी निगरानी शुरू की और ग्रीस, साइप्रस और आर्मेनिया जैसे तुर्की-विरोधी देशों के साथ सैन्य सहयोग तेज़ किया।
इन देशों के साथ भारत के संयुक्त सैन्य अभ्यासों को तुर्की के खिलाफ भारत की “रणनीतिक आक्रामकता” के रूप में देखा जा रहा है।
भारत से ब्रिटेन की 3800 करोड़ की डील
भारत दौरे के दौरान कीर स्टार्मर 100 से अधिक सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल के साथ नई दिल्ली पहुंचे थे। इस यात्रा में ब्रिटेन और भारत के बीच लाइटवेट मल्टी-रोल मिसाइल (LMM) की सप्लाई पर करार हुआ, जिसकी कीमत 3,884 करोड़ रुपये बताई जा रही है।
इन मिसाइलों का निर्माण फ्रांसीसी कंपनी थेल्स द्वारा नॉर्दर्न आयरलैंड स्थित संयंत्र में किया जाएगा। ब्रिटिश अधिकारियों के अनुसार, इस डील से करीब 700 नौकरियां बच जाएंगी — जो वर्तमान में यूक्रेन को हथियार आपूर्ति में लगी हैं।
ब्रिटिश सरकार ने इसे भारत-यूके के बीच “कॉम्प्लेक्स वेपन्स पार्टनरशिप” की दिशा में एक बड़ी सफलता बताया है।
स्टार्मर का संतुलन या स्वार्थ?
विश्लेषकों के मुताबिक, ब्रिटेन अब खुलकर ‘डुअल स्ट्रेटेजी’ पर काम कर रहा है —
एक ओर भारत जैसे एशियाई साझेदार के साथ रक्षा संबंध मजबूत कर रहा है, तो दूसरी ओर उसी क्षेत्र में भारत के रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी तुर्की को भी हथियार बेच रहा है।
यह कदम ब्रिटेन की आर्थिक मजबूती और रक्षा उद्योग के विस्तार के लिए फायदेमंद जरूर है, लेकिन इससे भारत-यूके रणनीतिक विश्वास पर सवाल उठ सकते हैं।














