नई दिल्ली, 27 जुलाई 2025 — भारत की सांस्कृतिक समृद्धि और पारंपरिक कलाओं की जीवंत अभिव्यक्ति का भव्य दृश्य रविवार को इंडियन इंटरनेशनल सेंटर (IIC), नई दिल्ली में देखने को मिला, जहाँ “अंतरंग उत्सव” का आयोजन बड़े उत्साह और गरिमा के साथ किया गया। इस आयोजन का उद्देश्य भारतीय शास्त्रीय नृत्य, संगीत और संस्कृति की भावी पीढ़ी को मंच प्रदान करना और परंपरा को आधुनिक समाज में पुनर्स्थापित करना था।
इस सुंदर सांस्कृतिक संध्या का आयोजन प्रभांजलि इंस्टीट्यूट ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स द्वारा आईआईआईएसडीईएस (IIISDES) के सहयोग से किया गया। आयोजन की अगुवाई जानी-मानी कथक नृत्यांगना और गुरू डॉ. प्रभा दुबे ने की, जो कि नोएडा सेक्टर 70 स्थित पैन ओएसिस की निवासी हैं। डॉ. दुबे की शिष्या रही बालिकाओं ने मंच पर अपने उत्कृष्ट नृत्य प्रदर्शन से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
पारंपरिक नृत्य की मोहक प्रस्तुतियाँ:
सांस्कृतिक कार्यक्रम में कथक, भरतनाट्यम और लोकनृत्य के रंग-बिरंगे रंग मंच पर बिखरे। हर प्रस्तुति में लय, ताल और भाव की अद्भुत समन्वय दिखाई दिया। छात्राओं ने पारंपरिक संगीत की धुनों पर भाव-भंगिमा और नृत्य की शुद्धता के साथ ऐसी प्रस्तुति दी कि दर्शक बार-बार तालियों की गड़गड़ाहट से सभागार गुंजायमान करते रहे।
पद्म श्री सम्मानित नलिनी-कमलिनी बहनों की गरिमामयी उपस्थिति:
कार्यक्रम की शोभा उस समय और भी बढ़ गई जब प्रसिद्ध कथक नृत्यांगनाएँ पद्म श्री नलिनी और कमलिनी नारायण मंच पर उपस्थित हुईं। उन्होंने न केवल प्रतिभाशाली छात्राओं को सम्मानित किया बल्कि डॉ. प्रभा दुबे की इस अद्वितीय पहल की सराहना करते हुए कहा,
“आज की पीढ़ी में कला के प्रति इस समर्पण को देखकर हमें गर्व होता है। प्रभा जी ने जिस लगन से इन बच्चों को प्रशिक्षित किया है, वह प्रशंसनीय है।”
गणमान्य अतिथियों की उपस्थिति:
कार्यक्रम में कई प्रतिष्ठित व्यक्तित्व उपस्थित रहे, जिनमें मध्यप्रदेश सरकार के विधायक श्री राजेन्द्र भारती, और सांस्कृतिक क्षेत्र में सक्रिय श्री गौरव गुप्ता प्रमुख रूप से शामिल थे। अतिथियों ने मंच से भारतीय संस्कृति को जीवित रखने के लिए किए जा रहे इस प्रयास की सराहना की।
डॉ. प्रभा दुबे का संदेश:
अपने संबोधन में डॉ. प्रभा दुबे ने कहा,“अंतरंग उत्सव केवल एक प्रस्तुति मंच नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव है। यहाँ नृत्य केवल कला नहीं, आराधना है – आत्मा और शरीर के संतुलन की अभिव्यक्ति।”
कार्यक्रम की झलक:
दीप प्रज्वलन से आरंभ हुआ कार्यक्रम, मंगलाचरण से प्रारंभ होकर कथक की तालों में ढलता गया।
मंच पर छात्राओं की प्रस्तुतियों ने न केवल तकनीकी दक्षता का परिचय दिया, बल्कि भारतीय लोक-मानस की झलक भी प्रस्तुत की।
समारोह का समापन गुरु वंदना के साथ हुआ, जहाँ सभी शिष्या कलाकारों ने अपने गुरु डॉ. प्रभा दुबे को प्रणाम कर आभार व्यक्त किया।
“अंतरंग उत्सव” केवल एक शाम नहीं थी, वह भारतीय संस्कृति की निरंतरता का एक जीवंत प्रमाण था — जहाँ परंपरा, गुरु-शिष्य परंपरा और कला का संगम एक साथ मंच पर दृष्टिगोचर हुआ।