
नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मुख्य न्यायाधीश के सम्मान में हुई लापरवाही पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि यह केवल एक व्यक्ति की बात नहीं है, बल्कि यह संवैधानिक पदों की गरिमा और लोकतांत्रिक प्रणाली की बुनियाद से जुड़ा मसला है।
उन्होंने मुंबई में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई के दौरे के दौरान राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा प्रोटोकॉल के उल्लंघन को अस्वीकार्य बताया। यह कार्यक्रम महाराष्ट्र और गोवा बार काउंसिल द्वारा आयोजित किया गया था, लेकिन मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, डीजीपी या मुंबई पुलिस कमिश्नर की अनुपस्थिति पर नाराजगी जताई गई थी।
प्रोटोकॉल का पालन क्यों जरूरी है?
उपराष्ट्रपति ने दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान कहा,
“ये किसी व्यक्ति विशेष के लिए नहीं, बल्कि उस पद की प्रतिष्ठा के लिए था। ऐसे संवैधानिक पदों के प्रति असम्मान लोकतांत्रिक मूल्यों को नुकसान पहुंचाता है।”
उन्होंने यह भी कहा कि वह स्वयं भी प्रोटोकॉल की उपेक्षा के शिकार हुए हैं और जब उनका कार्यकाल समाप्त होगा, तो वे यह सुनिश्चित करेंगे कि उनके उत्तराधिकारी को उचित सम्मान और प्रतीकात्मक उपस्थिति मिले।
वीरास्वामी फैसले पर फिर से विचार की जरूरत
उपराष्ट्रपति ने 1991 के वीरास्वामी बनाम भारत सरकार फैसले का उल्लेख करते हुए कहा कि अब समय आ गया है कि उस पर पुनर्विचार किया जाए। यह फैसला न्यायाधीशों की जांच प्रक्रिया को एक प्रकार का अभेद्य कवच देता है।
“अब बदलाव जरूरी है। न्यायपालिका की गरिमा बनाए रखने के साथ-साथ उसे जवाबदेह भी बनाना होगा।”
न्यायपालिका की जवाबदेही और पारदर्शिता पर जोर
धनखड़ ने कहा कि देश में कानून का शासन होना चाहिए और यह तभी संभव है जब हर संस्था जवाबदेह हो। उन्होंने एक पुराने मामले का हवाला देते हुए बताया कि लुटियंस दिल्ली में एक न्यायाधीश के घर से नोट और नकदी जलाने की घटना सामने आई थी, लेकिन आज तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई।
उन्होंने यह भी पूछा:
“क्या हम हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के प्रशासनिक कार्यों को नजरअंदाज करके जांच समिति पर इतना समय खर्च कर सकते हैं? क्या तीन जजों की समिति द्वारा इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस जब्त करना वैध था?”
न्यायिक स्वतंत्रता बनाम जवाबदेही
उपराष्ट्रपति ने दो टूक कहा:
“मैं किसी पर आरोप नहीं लगा रहा, लेकिन लोकतंत्र तभी बचेगा जब हर व्यक्ति और संस्था जवाबदेह हो। न्यायपालिका के लोग भी मनुष्य हैं और उनसे पारदर्शिता की अपेक्षा की जानी चाहिए।”
मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की प्रशंसा
उन्होंने वर्तमान मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए विशेष प्रशंसा की, साथ ही निवर्तमान न्यायाधीश खन्ना के कार्यकाल को भी न्यायिक मानकों के लिए उच्च बताया।
लोकतंत्र को बचाने के लिए न्यायपालिका की मजबूती जरूरी
उपराष्ट्रपति ने कहा कि लोकतंत्र के अस्तित्व, विकास और जनविश्वास के लिए न्यायपालिका की ताकत, पारदर्शिता और जवाबदेही अपरिहार्य हैं। उन्होंने चेताया कि न्यायपालिका को कमजोर करना लोकतंत्र को कमजोर करना है और संवेदनशील मसलों पर मौन रहना अब विकल्प नहीं है।