तिरुमला (तिरुपति) — आंध्र प्रदेश के तिरुमला में तिरुमला-तिरुपति देवस्थानम (TTD) ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए AI-संचालित Integrated Command & Control Centre (ICCC) का उद्घाटन किया। मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने वैकुंठम कतार परिसर-I में इस केंद्र का लोकार्पण किया — TTD के अनुसार यह तीर्थ प्रबंधन के लिए देश का पहला ऐसा समेकित, एआई-अधारित कमान केंद्र है।
क्या है नया — तकनीक, पैमाना और मकसद
ICCC का उद्देश्य तिरुमला के लाखों श्रद्धालुओं के कतार-प्रबंधन, भीड़-पारदर्शिता, वास्तविक-समय घटना निगरानी और साइबर सुरक्षा को एकीकृत करना है। केंद्र में 6,000 से अधिक AI-सक्षम कैमरों, हाई-परफॉर्मेंस कंप्यूटिंग और रीयल-टाइम डैशबोर्ड हैं जो प्रतिदिन केकड़ों मिलियन इवेंट्स और अरबों इनफरेंसेस को प्रोसेस कर सकते हैं — इससे ‘सर्व दर्शनम’ की प्रतीक्षा अवधि का पूर्वानुमान, 3D भीड़-घनत्व के दृश्य और त्वरित आपातकालीन प्रतिक्रिया सहज होगी।
प्रमुख क्षमताएँ — भीड़ से लेकर साइबर-सुरक्षा तक
ICCC में उपलब्ध प्रमुख फ़ीचर हैं: 3D सिचुएशनल मैपिंग, भीड़-घनत्व विज़ुअलाइज़ेशन, ड्रोन-सहायता प्राप्त आपातकालीन रिस्पॉन्स, टैबलेट-आधारित स्टाफ सत्यापन, लापता व्यक्तियों की पहचान के लिए फेशियल-एथेन्टिकेशन और गलत सूचना (misinformation) तथा साइबर-खतरों पर निगरानी। TTD का कहना है कि यह प्रणाली पारंपरिक सुरक्षा-प्रोटोकॉल के साथ डिजिटल-सतर्कता जोड़कर तीर्थयात्रा अनुभव को तेज़ और सुरक्षित बनाएगी।
आईडिया कहाँ से आया — नीति-प्रेरणा और PPP मॉडल
TTD ने बताया कि यह पहल आंध्र प्रदेश के सूचना-टेक मंत्री नारा लोकेश के पिछले साल (अक्टूबर 2024) सिलिकॉन वैली दौरे से प्रेरित है, जहां स्मार्ट-सिटी, डिजिटल-ट्विन और एआई स्टार्ट-अप्स के अनुभव से यह कॉन्सेप्ट आकार में आया। प्रोजेक्ट सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) और एनआरआई दान पर आधारित था; प्रौद्योगिकी भागीदारों में क्लाउड/AI सपोर्ट और हाई-परफॉर्मेंस कम्प्यूटिंग के समाधान भी शामिल हैं।
संभावित लाभ — श्रद्धालुओं और प्रशासन दोनों के लिए
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कम प्रतीक्षा समय: ऐतिहासिक तौर पर तिरुमला में भीड़-प्रबंधन सबसे बड़ा चैलेंज रहा है — ICCC के predictive-analytics से दर्शन-लाइनों का समय घट सकता है।
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त्वरित आपातकालीन प्रतिक्रिया: ड्रोन और रीयल-टाइम फीड्स के ज़रिये घायल/अस्पताल-रिफर की प्रक्रियाएँ तेज़ होंगी।
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संगठित संचालन: विभिन्न विभागों (सुरक्षा, स्वास्थ्य, क्यू-मैनेजमेंट, यातायात) का एकीकृत डैशबोर्ड निर्णय-प्रक्रिया तेज करेगा।
उठते प्रश्न — गोपनीयता, डेटा-प्रोटेक्शन और सामाजिक-आत्मीयताऐं
हालाँकि तकनीक स्पष्ट लाभ दे सकती है, फिर भी कुछ संवेदनशील मुद्दे पर सार्वजनिक बहस आवश्यक है:
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डेटा प्राइवेसी: 6,000+ कैमरों और चेहरे-पहचान जैसी क्षमताओं के साथ व्यक्तिगत गोपनीयता के मानक कैसे सुनिश्चित होंगे; डेटा कहां संग्रहित होगा, कितनी देर तक रहेगा और किसके एक्सेस होंगे?
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बायस और त्रुटि-जोखिम: फेशियल-एथेन्टिकेशन में असंगति (false positives/negatives) का असर श्रद्धालुओं पर पड़ सकता है—खासतौर पर बुजुर्ग और अंतरराष्ट्रीय आगंतुक।
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साइबर-सुरक्षा: जितना डिजिटल नियंत्रण बढ़ेगा, उतना ही गलत सूचना और संभावित साइबर-हमलों का जोखिम भी बढ़ेगा—इसलिए कड़े ऑडिट, थर्ड-पार्टी चेक और पारदर्शी नीतियाँ जरूरी हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि किसी भी बड़े-पैमाने पर AI तैनाती के साथ संवैधानिक और नैतिक गवर्नेंस फ्रेमवर्क पहले से तैनात होना चाहिए।
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क्या यह मॉडल अन्य तीर्थस्थलों के लिए आदर्श है?
विशेषज्ञों का मानना है कि तिरुमला का ICCC एक प्रयोगात्मक ब्लूप्रिंट के रूप में काम कर सकता है—बशर्ते सुरक्षात्मक निगरानी, डेटा-प्रोटेक्शन कानूनों का पालन और स्थानीय-सामाजिक संवेदनाओं का पूरा ध्यान रखा जाए। बड़े त्योहारों, मेले और शाही आयोजन-स्थलों पर भी इसी तरह का स्मार्ट-प्रबंधन अपनाया जा सकता है, पर उसे अनुकूलित, पारदर्शी और संचालित जिम्मेदारी के साथ लागू करना होगा।
निष्कर्ष — परंपरा और प्रौद्योगिकी का संतुलन
तिरुमला का नया AI-ICCC दर्शाता है कि कैसे परंपरागत धार्मिक संस्थान भी तकनीक का इस्तेमाल कर श्रद्धालुओं की सेवा को आधुनिक स्तर पर ले जा सकते हैं। पर यही तकनीक सामाजिक-नैतिक प्रश्न भी उठाती है—गोपनीयता, जवाबदेही और शासन-ढाँचे पर विस्तृत संवाद अनिवार्य है ताकि सुरक्षा-लाभ और नागरिक-अधिकारों के बीच संतुलन बना रहे। अगर यह संतुलन सुचारू रूप से कायम हुआ तो तिरुमला मॉडल देश के अन्य लोकप्रिय तीर्थस्थलों के लिए एक प्रेरणा बन सकता है।