Tuesday, July 1, 2025
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रेप केस में दोषी की सजा सुप्रीम कोर्ट ने की निलंबित, पीड़िता से विवाह की इच्छा जताने पर मिली राहत

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक रेप केस में दोषी करार दिए गए व्यक्ति की सजा को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया। यह निर्णय उस समय आया जब दोषी और पीड़िता दोनों ने आपसी सहमति से विवाह करने की इच्छा जताई। कोर्ट ने इसे असाधारण स्थिति मानते हुए विवाह को प्राथमिकता दी और सजा में अस्थायी राहत दी।

कोर्ट रूम में ही हुआ फूलों का आदान-प्रदान

जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने आरोपी और पीड़िता से कोर्ट रूम के भीतर एक-दूसरे को फूल देने को कहा। इससे पहले लंच ब्रेक के दौरान दोनों पक्षों से व्यक्तिगत मुलाकात की गई थी, जिसमें उन्होंने आपसी सहमति से विवाह करने की इच्छा जाहिर की

पीठ ने कहा,

“हमने लंच सत्र में दोनों से बात की और वे शादी के लिए तैयार हैं। शादी की तारीख व अन्य विवरण उनके माता-पिता तय करेंगे। हमें उम्मीद है कि विवाह शीघ्र संपन्न होगा। ऐसे विशेष हालात में हम सजा को निलंबित करते हैं।”

कोर्ट के अनुसार, याचिकाकर्ता को 6 मई के आदेश के तहत पेश किया गया था, जिसे अब अस्थायी रूप से जेल से रिहा किया जाएगा और शीघ्र ही सत्र न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा।

पॉक्सो मामलों में सुप्रीम कोर्ट की केंद्र सरकार को फटकार, विशेष अदालतों की मांग

सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों से संबंधित मामलों (पॉक्सो) में देरी पर गंभीर चिंता जताई और केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह प्राथमिकता के आधार पर समर्पित पॉक्सो अदालतें स्थापित करे।

जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस पी बी वराले की पीठ ने कहा कि

“विशेष अदालतों की कमी के कारण पॉक्सो मामलों की सुनवाई समयसीमा के भीतर पूरी नहीं हो पा रही है। यह बच्चों के हितों के खिलाफ है।”

कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि वे:

  • पॉक्सो मामलों से जुड़े जांच अधिकारियों को संवेदनशील बनाने के लिए विशेष प्रशिक्षण दें।
  • समयबद्ध तरीके से चार्जशीट दाखिल करने और मुकदमों की सुनवाई पूरी करने की व्यवस्था सुनिश्चित करें।
  • प्रत्येक जिले में समर्पित पॉक्सो अदालतें स्थापित करें, ताकि न्याय प्रक्रिया में देरी न हो।

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न्यायिक लचीलापन और मानवीय संवेदनशीलता का उदाहरण है, वहीं पॉक्सो मामलों में दिया गया निर्देश बच्चों की सुरक्षा और त्वरित न्याय के लिए अहम कदम है। न्यायपालिका का यह रुख बताता है कि वह संवेदनशील मामलों में व्यक्तिगत परिस्थितियों को भी अहमियत देती है, साथ ही व्यवस्था में जरूरी सुधार की ओर भी कदम उठाने से नहीं हिचकती।

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