
नई दिल्ली: स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर को लेकर दिए गए बयान पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट से कड़ी फटकार मिली है। अदालत ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यदि भविष्य में राहुल गांधी ने स्वतंत्रता सेनानियों पर इसी तरह की टिप्पणियां कीं, तो अदालत स्वतः संज्ञान लेकर कार्रवाई करेगी।
“क्या हमें यह शोभा देता है कि जिन्होंने देश को आज़ादी दिलाई, उनके बारे में हम इस तरह बोलें?”
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और मनमोहन की पीठ ने मामले की सुनवाई के दौरान नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहा:
“स्वतंत्रता सेनानियों को लेकर इस तरह की गैर-जिम्मेदाराना भाषा स्वीकार नहीं की जा सकती। महाराष्ट्र में वीर सावरकर की पूजा की जाती है। आप ऐसे बयान देकर उनकी छवि को धूमिल नहीं कर सकते।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि, “इतिहास का ज्ञान लिए बिना यदि इस तरह के बयान जारी रहते हैं, तो इसके गंभीर परिणाम होंगे।”
“महात्मा गांधी ने भी ‘वफादार सेवक’ शब्द का प्रयोग किया था”
जब राहुल गांधी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी ने दलील दी कि इस मामले में धारा 196 लागू नहीं होती, तो जस्टिस दीपांकर दत्ता ने तीखा सवाल किया:
“क्या आपके मुवक्किल को पता है कि महात्मा गांधी ने भी ‘आपका वफादार सेवक’ लिखा था? क्या उन्हें यह जानकारी है कि उनकी दादी इंदिरा गांधी ने भी वीर सावरकर को पत्र लिखा था?”
ट्रायल कोर्ट के समन पर फिलहाल रोक, लेकिन भविष्य में सतर्क रहने की नसीहत
कोर्ट ने भले ही राहुल गांधी को ट्रायल कोर्ट के समन से अस्थायी राहत देते हुए रोक लगा दी है, लेकिन चेताया है कि आगे दी जाने वाली किसी भी आपत्तिजनक टिप्पणी पर स्वतः संज्ञान लेकर कार्रवाई की जाएगी।
“कानून के अनुसार आपको अभी राहत दी जाती है, लेकिन स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ भविष्य में किसी भी बयान पर हम चुप नहीं बैठेंगे।”
राहुल गांधी कोर्ट में मौजूद नहीं थे
राहुल गांधी इस सुनवाई के दौरान अदालत में मौजूद नहीं थे। वे जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले में मंगलवार को पहलगाम आतंकी हमले में घायल लोगों से मिलने गए हुए थे। साथ ही उनकी स्थानीय व्यापारियों के प्रतिनिधिमंडल से मुलाक़ात भी तय थी, जो इस हमले के बाद पर्यटकों के पलायन से परेशान हैं।
नोटिस जारी, आठ सप्ताह में मांगा गया जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी की याचिका पर नोटिस जारी कर आठ सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। बता दें, राहुल गांधी ने अपने एक बयान में कहा था कि “वीडी सावरकर अंग्रेजों के वफादार नौकर रहना चाहते थे”, जिसे लेकर उनके खिलाफ ट्रायल कोर्ट ने समन जारी किया था।
यह मामला एक बार फिर यह याद दिलाता है कि आज़ादी के नायकों को लेकर सार्वजनिक जीवन में ज़िम्मेदारी के साथ बोलना जरूरी है।