
Samajwadi party pda vs bjp pda formula uttar pradesh 2027 election: उत्तर प्रदेश की सियासत में 2027 के विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी चालें तेज हो गई हैं। समाजवादी पार्टी (सपा) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने अपने-अपने पीडीए फॉर्मूले के साथ चुनावी बिसात बिछानी शुरू कर दी है। लेकिन दोनों दलों के पीडीए फॉर्मूले में ‘ए’ का मतलब अलग है। सपा के पीडीए में ‘ए’ का अर्थ अल्पसंख्यक है, जबकि बीजेपी के पीडीए में ‘ए’ का मतलब आधी आबादी यानी महिलाएं हैं।
सपा का पीडीए: पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने 2024 के लोकसभा चुनाव में अपने पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले को आजमाया था। इस फॉर्मूले के तहत अखिलेश ने मुस्लिम, कुर्मी, मल्लाह, मौर्य जैसे गैर-यादव ओबीसी समुदायों और दलित वोटर्स को साधने की रणनीति बनाई। सपा ने 80 में से 37 सीटें जीतीं, जबकि बीजेपी 33 सीटों पर सिमट गई।
सपा ने अपने संगठन में भी पीडीए की छवि बनाए रखी है। 182 सदस्यीय प्रदेश कार्यकारिणी में 85% पद पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक समुदाय के नेताओं को दिए गए हैं। हालांकि, जिला स्तर पर यादव समुदाय का ही वर्चस्व दिखाई देता है।
बीजेपी का पीडीए: पिछड़ा, दलित और आधी आबादी
बीजेपी ने सपा के पीडीए को काउंटर करने के लिए अपने संगठन में पिछड़े, दलित और महिलाओं को खास तवज्जो दी है। हाल ही में घोषित मंडल अध्यक्षों की लिस्ट में 40% पद ओबीसी, 20% दलित, और 15% पद महिलाओं को दिए गए हैं। बीजेपी ने जातीय समीकरण को मजबूत करते हुए कुर्मी, लोध, मौर्य, पाल, सैनी, प्रजापति जैसी अति पिछड़ी जातियों और दलित समाज की जातियों को संगठन में प्रमुख स्थान दिया है।
गाजीपुर जैसे जिलों में बीजेपी ने मंडल अध्यक्षों के जातीय समीकरण का खास ध्यान रखा है। जिले के 34 मंडल अध्यक्षों में 8 ठाकुर, 6 ब्राह्मण, 4 मौर्य, और 3 नोनिया चौहान शामिल हैं। इसके अलावा, 7 पद दलित समुदाय से नेताओं को दिए गए हैं।
बीजेपी की माइक्रो लेवल सोशल इंजीनियरिंग
बीजेपी ने बूथ से लेकर मंडल और जिला स्तर तक जातीय संतुलन साधने की कोशिश की है। एक विधानसभा क्षेत्र में चार मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति अलग-अलग जातियों से की गई है। इसके तहत दो ओबीसी, एक दलित और एक सवर्ण समुदाय के अध्यक्ष बनाए गए हैं।
2027 के लिए कौन होगा हिट?
जहां सपा अपने पीडीए फॉर्मूले के जरिए पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों पर दांव लगा रही है, वहीं बीजेपी ने महिलाओं को जोड़कर अपने पीडीए को एक नई दिशा दी है। बीजेपी का फोकस गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलित समुदायों पर है।
बीजेपी ने विधानसभा क्षेत्र के जातीय मिजाज को ध्यान में रखते हुए मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति कर अपनी सोशल इंजीनियरिंग को मजबूत किया है। वहीं, सपा का फोकस यादव और मुस्लिम वोटर्स पर ज्यादा दिख रहा है।
अब सवाल उठता है कि 2027 के चुनाव में सपा और बीजेपी के पीडीए में से कौन सा फॉर्मूला बाजी मारेगा। सोशल इंजीनियरिंग के इस खेल का परिणाम ही तय करेगा कि उत्तर प्रदेश में किसकी रणनीति सफल होती है।