
जम्मू-कश्मीर के शांत पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। जहां पर्यटकों को वादियों की खूबसूरती खींच लाई थी, वहीं आतंक ने एक बार फिर खून की होली खेल दी। सूत्रों के अनुसार, इस भयावह हमले में 30 हिंदू पर्यटकों के मारे जाने की आशंका है, जबकि दर्जनों लोग गंभीर रूप से घायल हैं।
लेकिन क्या यह हमला अचानक हुआ? या फिर इसके पीछे पाकिस्तान की ज़मीन पर बैठी आतंक की प्रयोगशाला में तैयार हुई रणनीति थी?
रावलकोट की रैली: जहर भरी घोषणा और जिहादी इरादे
सिर्फ तीन दिन पहले, 19 अप्रैल को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) के रावलकोट में लश्कर-ए-तैयबा और जम्मू-कश्मीर यूनाइटेड मूवमेंट जैसे आतंकी संगठनों ने एक भव्य और उन्मादी बैठक की थी। इस ‘शोकसभा’ का आयोजन मारे गए आतंकी आकिफ हलीम की याद में किया गया था, जिसे भारतीय सेना ने 17 मार्च को कुपवाड़ा में ढेर कर दिया था।
इस बैठक में लश्कर कमांडर अबू मूसा ने मंच से भारत को खुलेआम धमकी देते हुए कहा:
“जिहाद जारी रहेगा… कश्मीर में फिर बंदूकें गरजेंगी और सिर कटते रहेंगे…”
यह कोई बयान नहीं, भारत के खिलाफ खुले युद्ध की सार्वजनिक घोषणा थी। और फिर ठीक 72 घंटे बाद, पहलगाम में हिंदू पर्यटकों पर हमला हुआ—टारगेट किया गया, नाम पूछ-पूछकर गोलियां चलाई गईं।
हमलावर बने पुलिसकर्मी: वर्दी की आड़ में मौत
सुरक्षा एजेंसियों से मिली जानकारी के अनुसार, हमलावर पुलिस की वर्दी में आए थे। हमले से पहले इलाके की कई बार रेकी की गई थी। घटना के दिन उन्होंने हिंदू पर्यटकों की पहचान कर उन पर गोलियां चलाईं—यह दर्शाता है कि हमला न केवल योजनाबद्ध था, बल्कि संप्रदाय विशेष को निशाना बनाकर भय का माहौल पैदा करना इसका स्पष्ट मकसद था।
सेना का पलटवार: पहलगाम में सर्च ऑपरेशन शुरू
हमले के बाद सेना ने त्वरित कार्रवाई करते हुए पहलगाम और आसपास के क्षेत्रों में संयुक्त तलाशी अभियान शुरू कर दिया है। राष्ट्रीय राइफल्स, सीआरपीएफ, और स्थानीय पुलिस की टीमें ऑपरेशन में जुटी हैं। पूरा क्षेत्र सील कर दिया गया है और ड्रोन व सैटेलाइट निगरानी भी तेज़ कर दी गई है।
दिल्ली से जम्मू तक सख्त सुरक्षा मंथन
गृहमंत्री अमित शाह ने हमले की गंभीरता को देखते हुए तुरंत दिल्ली में उच्च स्तरीय सुरक्षा बैठक की और इसके बाद जम्मू-कश्मीर के लिए रवाना हो गए। जम्मू में आईजी जम्मू भीम सेन टूटी और डिविजनल कमिश्नर रमेश कुमार की अगुवाई में कानून-व्यवस्था की समीक्षा हेतु उच्चस्तरीय बैठक बुलाई गई है। इस बैठक में सुरक्षा ढांचे, खुफिया तंत्र की मजबूती, और आगामी रणनीति पर विचार-विमर्श किया जाएगा।
घाटी में डर का एजेंडा: लक्ष्य पर्यटन और हिंदू उपस्थिति
यह हमला न सिर्फ निर्दोष जानों का हत्यारा है, बल्कि कश्मीर की अर्थव्यवस्था, हिंदू तीर्थ यात्राओं, और पर्यटन पर आधारित शांति प्रयासों पर भी हमला है। आतंकी चाहते हैं कि घाटी में डर का राज हो, पर्यटक न आएं, स्थानीय लोगों की आजीविका चौपट हो जाए, और घाटी की छवि फिर वही पुरानी—’संघर्ष क्षेत्र’ की—बना दी जाए।
भारत के धैर्य की परीक्षा या निर्णायक जवाब का समय?
अब समय आ गया है जब भारत को केवल “कड़ी निंदा” से आगे बढ़कर “निर्णायक कार्रवाई” करनी होगी।
रावलकोट में बैठे जहर उगलते आतंकी और उनके सरपरस्त अबू मूसा जैसे चेहरे इस साजिश के सूत्रधार हैं। यदि इस हमले की जड़ तक पहुंचकर उसे कुचलने का साहस न दिखाया गया, तो न केवल कश्मीर, बल्कि भारत की अखंडता पर सवाल खड़े होंगे।

VIKAS TRIPATHI
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