
नई दिल्ली। संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता की आवश्यकता की बात एक बार फिर प्रधानमंत्री ने अपने लाल किले के भाषण में उठाई है। उन्होंने इसे नया शब्द देते हुए “सेकुलर सिविल कोड” का नाम दिया। उनका इशारा विभिन्न धर्मों के पर्सनल लॉ में भिन्नता की ओर था, जो शादी, तलाक, गुजाराभत्ता, गोद लेने, संरक्षक और उत्तराधिकार के नियमों में धर्म के आधार पर भेदभाव करता है।
समान नागरिक संहिता का उद्देश्य
समान नागरिक संहिता लागू होने पर शादी, तलाक, भरणपोषण, गोद लेने, संरक्षक और उत्तराधिकार के नियम सभी धर्मों के लिए समान होंगे। वर्तमान में, पर्सनल लॉ में हिंदू महिलाओं के अधिकार अलग हैं और मुस्लिम महिलाओं के अधिकार अलग। इस भिन्नता के कारण संपत्ति, बच्चे को गोद लेने, संरक्षक बनने के अधिकार, शादी के नियम, तलाक और गुजाराभत्ता में भी अंतर है।
विभिन्न धर्मों में असमानता
अलग-अलग धर्मों में शादी की आयु और तलाक के आधार व प्रक्रिया में भिन्नता देखी जाती है। उदाहरण के लिए, हिंदू, जैन, बौद्ध, और सिखों के लिए शादी की आयु 18 और 21 वर्ष है, जबकि शरीयत एक्ट के तहत लड़की के मासिक धर्म शुरू होने पर शादी योग्य माना जाता है।
बच्चों के संरक्षण के नियम
तीन तलाक की समाप्ति के बावजूद, मुस्लिम समुदाय में तलाक के विभिन्न प्रकार (तलाक ए हसन, तलाक ए अहसन, तलाक ए बाइन और तलाक ए किनाया) आज भी लागू हैं। गुजाराभत्ता, बच्चे को गोद लेने और बच्चों के संरक्षण के नियम भी समान नहीं हैं। मुसलमानों में बच्चा गोद लेना और वसीयत का अधिकार नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट और राज्य पहल
सुप्रीम कोर्ट ने समान नागरिक संहिता को लेकर कई फैसले दिए हैं, लेकिन स्पष्ट निर्देश नहीं दिए हैं। उत्तराखंड सरकार ने समान नागरिक संहिता कानून पारित कर दिया है, जो राष्ट्रपति से मंजूरी प्राप्त कर चुका है और इसके नियमावली की तैयारी चल रही है। उत्तराखंड देश का पहला राज्य होगा जहां समान नागरिक संहिता लागू होगी। गोवा में आजादी के पहले से समान नागरिक संहिता लागू है।
समान नागरिक संहिता की दिशा में उठाए गए कदमों और प्रस्तावित कानूनों से यह संकेत मिलता है कि समानता लाना अब कठिन नहीं होगा।