मणिपुर में वर्ष 2023 से जारी जातीय संघर्ष ने अब एक और गंभीर मोड़ ले लिया है। राज्य के दो प्रमुख समुदायों—मेइती और कुकी—से जुड़े उग्रवादी संगठनों ने लूटे गए पारंपरिक हथियारों को स्थानीय तकनीकों के ज़रिए स्नाइपर राइफलों में बदलना शुरू कर दिया है। अधिकारियों के अनुसार, इन संशोधित हथियारों की सटीकता और मारक क्षमता इतनी बढ़ गई है कि सुरक्षा बलों के लिए यह एक बड़ा सुरक्षा संकट बन सकता था, लेकिन समय रहते की गई कार्रवाई ने हालात को और बिगड़ने से रोका।
लूटे गए हथियारों से बढ़ा खतरा
मई 2023 में शुरू हुई जातीय हिंसा के बाद, उग्रवादियों ने 6,000 से अधिक हथियारों को विभिन्न पुलिस थानों और शस्त्रागारों से लूट लिया था। इन हथियारों में शामिल हैं:
303 राइफलें
AK-47 असॉल्ट राइफलें
INSAS राइफलें
कार्बाइन
पिस्तौल और ग्रेनेड लॉन्चर
अब इनमें से कई को दूरबीन, बदलाव किए गए बट और सटीक निशाने लगाने वाले उपकरणों से लैस कर स्नाइपर राइफलों में तब्दील कर दिया गया है। उदाहरण के लिए, .303 राइफल की मूल मारक क्षमता जहां 500 मीटर तक सीमित होती है, वहीं अब ये 600-700 मीटर तक प्रभावी बन चुकी हैं।
समय रहते बरामदगी, टला बड़ा खतरा
जुलाई 2025 की शुरुआत में पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों ने इंफाल घाटी और पहाड़ी जिलों में एक साथ अभियान चलाया। इस दौरान:
13-14 जून की रात, इंफाल घाटी के पांच जिलों से 328 हथियार बरामद किए गए (ज्यादातर मेइती बहुल इलाकों से)।
जुलाई के पहले सप्ताह में, कुकी-बहुल पहाड़ी क्षेत्रों से 203 हथियार जब्त किए गए।
जब्त हथियारों में INSAS राइफल, AK सीरीज की राइफल, संशोधित स्नाइपर राइफलें, ग्रेनेड लॉन्चर, पिस्तौल और देसी 0.22 बोर की राइफलें शामिल थीं।
देसी तकनीक: गैल्वेनाइज्ड पाइप से बनी ‘मजल गन’ और ‘पम्पी’ तोप
पर्वतीय समुदायों की पारंपरिक हथियार निर्माण क्षमता इस हिंसा में एक बार फिर सामने आई है। स्थानीय लोहारों—जिन्हें थिह-खेंग पा कहा जाता है—ने गैल्वेनाइज्ड आयरन पाइप, बिजली के खंभे, और धातु के कबाड़ से देसी हथियार तैयार किए हैं। इनमें शामिल हैं:
मजल गन: थिहनांग नामक गोलियां दागने वाली देशी बंदूक
पम्पी (या बम्पी): भारी लोहे के टुकड़ों से भरी तोप जैसी देसी बंदूक
इन हथियारों का उपयोग अक्सर छिपकर हमले और गुरिल्ला युद्ध में किया जाता है। यह रणनीति पारंपरिक गुरिल्ला युद्ध कौशल का हिस्सा है, जिसमें ढलानों से पत्थर लुढ़काना, झाड़ियों से हमला करना और छोटे समूहों में लड़ना शामिल है।
260 से अधिक मौतें, हजारों विस्थापित
2023 में भड़की जातीय हिंसा में अब तक 260 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है, और हजारों लोग अपने घर छोड़कर राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं। राज्य में शांति-व्यवस्था अब तक पूरी तरह से बहाल नहीं हो पाई है।
सुरक्षा एजेंसियों की रणनीति: केवल बरामदगी नहीं, निगरानी भी
अब सुरक्षा एजेंसियां केवल हथियारों की बरामदगी पर नहीं, बल्कि यह भी जांच कर रही हैं कि कहीं इन हथियारों का तकनीकी अपग्रेड करके बड़े आतंकी हमलों की योजना तो नहीं बनाई जा रही। सभी जिलों में स्थायी निगरानी, गुप्त सूचना तंत्र और सामुदायिक संवाद को प्राथमिकता दी जा रही है।
मणिपुर की हिंसा अब केवल सामाजिक और राजनीतिक नहीं, तकनीकी और सामरिक स्तर पर भी चुनौती बन चुकी है। लूटे गए हथियारों को ‘स्नाइपर राइफल’ में बदलने का यह ट्रेंड साफ़ दर्शाता है कि उग्रवादी अब लड़ाई के स्तर को नई ऊंचाइयों पर ले जा रहे हैं।
सरकार के लिए अब चुनौती केवल शांति बहाल करने की नहीं, बल्कि वो हथियार निष्क्रिय करने की भी है, जो स्थानीय जुगाड़ और पारंपरिक तकनीक से आतंक का औज़ार बनते जा रहे हैं।