
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले महा विकास अघाड़ी (MVA) में तनाव खुलकर सामने आ गया है। शुक्रवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले ने सहयोगी पार्टी शिवसेना (UBT) के सांसद संजय राउत पर निशाना साधा।
खबरों के मुताबिक, एक आंतरिक बैठक के दौरान राउत ने आगामी चुनावों के लिए सीट-बंटवारे को लेकर कांग्रेस के राज्य नेतृत्व की क्षमता पर सवाल उठाए, खासकर विदर्भ क्षेत्र में। उन्होंने कांग्रेस नेतृत्व से सीधे दिल्ली में बातचीत करने की भी बात कही।
राउत के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए नाना पटोले ने स्पष्ट कहा, “अगर संजय राउत अपनी पार्टी के नेतृत्व (उद्धव ठाकरे) की अनदेखी कर रहे हैं, तो यह उनका मसला है।”
यह टिप्पणी दर्शाती है कि चुनाव से पहले गठबंधन में आंतरिक तनाव बढ़ रहा है।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले महा विकास अघाड़ी (MVA) में सीट-बंटवारे को लेकर तनाव और गहरा गया है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले की सार्वजनिक तौर पर शिवसेना (UBT) के सांसद संजय राउत पर की गई आलोचना ने गठबंधन के भीतर चल रहे असंतोष को उजागर कर दिया है।
हालांकि, शिवसेना (UBT) के नेता अनिल देसाई और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) के नेता जीतेन्द्र आव्हाड, जो प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद थे, ने पटोले को शांत करने और बातचीत को MVA के बड़े लक्ष्यों की ओर मोड़ने की कोशिश की। देसाई ने विवाद को हल्का करते हुए कहा कि गठबंधन के भीतर कोई गंभीर मतभेद नहीं है।
सीट-बंटवारे का फॉर्मूला
सूत्रों के अनुसार, गठबंधन के भीतर सीट-बंटवारे की प्रक्रिया लगभग अंतिम चरण में है, जिसमें कांग्रेस को 119, शिवसेना (UBT) को 86 और एनसीपी (शरद पवार गुट) को 75 सीटें मिलेंगी। इस बैठक के बाद, MVA नेताओं ने महाराष्ट्र के राज्य चुनाव आयुक्त चोकलिंगम से मुलाकात की, जहाँ चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने पर चर्चा हुई।
बढ़ते तनाव
फिर भी, यह सार्वजनिक तकरार MVA के भीतर बढ़ते तनाव को दर्शाती है। गठबंधन पहले से ही सीट-बंटवारे के फॉर्मूले को लेकर संघर्ष कर रहा है, खासकर कांग्रेस और शिवसेना (UBT) के बीच मतभेद दिखाई दे रहे हैं। विदर्भ क्षेत्र को लेकर विवाद प्रमुख है, जहां कांग्रेस अधिक सीटों की मांग कर रही है, जबकि शिवसेना (UBT) इसका विरोध कर रही है।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले महा विकास अघाड़ी (MVA) के भीतर उभरते विवादों ने गठबंधन की नाजुक स्थिति को उजागर कर दिया है। भले ही MVA के नेता सार्वजनिक रूप से गठबंधन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराते रहें, लेकिन सीट-बंटवारे और आंतरिक शक्ति संघर्ष ने एकजुटता की तस्वीर को कमजोर करने का खतरा पैदा कर दिया है, जो भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए जरूरी है।
MVA के शीर्ष नेता अब दिल्ली का रुख कर रहे हैं, जहां सीट-बंटवारे के फॉर्मूले को अंतिम रूप देने की कोशिश होगी। हालांकि, सवाल यह है कि क्या यह गठबंधन अपने आंतरिक विवादों को सुलझाकर भाजपा-नीत गठबंधन के खिलाफ एक मजबूत मोर्चा बना पाएगा, या फिर सीट-बंटवारे की यह खींचतान MVA की एकता को बिखेर देगी?
जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं, यह देखना दिलचस्प होगा कि MVA अपनी विधानसभा सीटों पर अंतिम फैसला कैसे करता है, खासकर ऐसे समय में जब गठबंधन के कई घटक दल अधिक सीटों के लिए दबाव बना रहे हैं, जिससे असहमति का माहौल पैदा हो गया है।

VIKAS TRIPATHI
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