बिहार की राजनीति का तापमान अभी से उबाल पर है, जबकि विधानसभा चुनाव 2025 की तारीखों का एलान तक नहीं हुआ है। नेता अपने-अपने पत्ते फेंकने लगे हैं—और इस बार सबसे बड़ा तुरुप का इक्का चला है लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ने।
तेज प्रताप ने अपनी ही पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) को साफ-साफ चेतावनी दे दी है:
“अगर मुझे महुआ से टिकट नहीं मिला, तो RJD इस सीट से चुनाव हार जाएगी।”
ये बयान उन्होंने एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में दिया, और इसके साथ ही उन्होंने आने वाले महीनों की राजनीतिक पटकथा में बड़ा ट्विस्ट डाल दिया है।
तेज प्रताप बोले — महुआ ही मेरा कर्मभूमि, जनता चाहेगी तो वापस मैदान में उतरूंगा
महुआ विधानसभा सीट तेज प्रताप के लिए सिर्फ एक निर्वाचन क्षेत्र नहीं, बल्कि “सियासी स्वाभिमान” बन चुका है। हाल ही में उन्होंने महुआ में बन रहे मेडिकल कॉलेज का दौरा किया और दावा किया कि,“यह मेरा वादा था, जो पूरा हुआ। महुआ की जनता चाहती है तो मैं फिर से यहीं से चुनाव लड़ूंगा।”
उनके साथ समर्थकों की भीड़ उमड़ी पड़ी थी, और हर तरफ गूंज रहा था:
“महुआ का विधायक कैसा हो? तेज प्रताप जैसा हो!”
गाड़ियों पर लगे ‘टीम तेज प्रताप यादव’ के पोस्टर और झंडे ये साफ बता रहे थे कि वे सिर्फ़ विधायक नहीं, नेता बनकर लौटना चाहते हैं।
RJD में बढ़ती दूरी? विधानसभा में ‘सफेद’ हो गया तेज प्रताप का विरोध!
मंगलवार को तेज प्रताप जब पहली बार विधानसभा पहुंचे, तो उनका अंदाज़ औरों से अलग था।
जब RJD नेता काले कपड़ों में वोटर लिस्ट विवाद पर विरोध दर्ज करा रहे थे, तेज प्रताप यादव सफेद कुर्ता-पायजामा में नजर आए।
प्रेस ने जब पूछा तो मुस्कराते हुए बोले:“मैं तो हमेशा सफेद पहनता हूं, सिर्फ शनिवार को पहनता हूं काला… शनि का असर है ना!”
क्या यह राजनीतिक संकेत था? या फिर RJD की अंदरूनी खेमेबाज़ी की एक नई परत?
क्या तेज प्रताप RJD से अलग राह चुनेंगे? या यह महज दबाव की रणनीति है?
तेज प्रताप के बयान से कई सवाल खड़े हो गए हैं:
क्या RJD उन्हें महुआ से टिकट देगी या भाई तेजस्वी किसी और नाम पर भरोसा जताएंगे?
क्या तेज प्रताप पार्टी लाइन से हटकर स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर उतर सकते हैं?
क्या यह सिर्फ़ “टिकट के लिए चेतावनी” है या एक बड़े राजनीतिक विस्फोट का ट्रेलर?
राजनीति में ‘वन मैन आर्मी’ बनना चाहते हैं तेज?
तेज प्रताप लंबे समय से खुद को अपनी पार्टी और परिवार की राजनीति से अलग थलग महसूस कर रहे हैं। अब लगता है उन्होंने तय कर लिया है कि वे “भाई के साए” से बाहर निकलकर खुद की राजनीतिक हैसियत बनाएंगे।