
आजकल देश की अदालतों में न्याय की परिभाषाएं भी शायद मौसम की तरह बदलने लगी हैं. इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति राम मनोहर मिश्र ने हाल ही में एक ऐसा फैसला सुनाया, जिसने कानून के छात्रों को संविधान की किताबें छोड़कर पंचतंत्र और तेनालीराम की कथाएं पढ़ने पर मजबूर कर दिया.
दरअसल, जज साहब ने कहा है कि किसी महिला का जबरन स्तन पकड़ लेना और पायजामे का नाड़ा तोड़ देना रेप नहीं कहलाएगा. बिल्कुल! शायद कोर्ट का मानना है कि ये तो महज “बाल सुलभ चंचलता” है. अगर नाड़ा तोड़ना अपराध है तो बचपन में पतंग की डोर काटने वाले न जाने कितने ‘क्रिमिनल मास्टरमाइंड’ घोषित हो जाएंगे!
और स्तन पकड़ना? अरे भई, बस “अत्यधिक स्नेह प्रदर्शन” समझ लीजिए. कोर्ट का इशारा साफ है — बलात्कार तो तब होता है जब अपराधी और पीड़िता के बीच किसी कोर्ट-सर्टिफाइड कंसेंट एप्लिकेशन की कोई वैधता नहीं होती. बाकी सब तो ‘चंचलता विदाउट इंटेंट’ है.
अब सोचिए, किसी दिन अगर कोई बैंकर किसी ग्राहक का वॉलेट छीन ले और कहे कि उसने केवल “आर्थिक स्नेह” प्रदर्शित किया है, तो क्या उसे भी डकैती के बजाय ‘स्नेही लूटपाट’ का दोषी ठहराया जाएगा? और अगर कोई क्रिकेटर मैच के दौरान बॉल छीनकर स्टंप्स उखाड़ दे, तो क्या उस पर “भावनात्मक अपील” का केस चलेगा?
लेकिन चिंता मत करिए! जज साहब ने रेप की धारा हटाकर 354-बी लगा दी है. यानी अगर किसी महिला के साथ जबरदस्ती की जाती है, तो वो केवल एक ‘गंभीर शरारत’ है. जैसे बच्चों का छुपा-छुपी खेलना. इस निर्णय के बाद हो सकता है कि अगली बार किसी अपराधी को सिर्फ ‘गंभीर दुर्व्यवहार में डिप्लोमा’ देकर छोड़ दिया जाए.
आश्चर्य की बात तो ये है कि इन्हीं जज साहब ने कभी कहा था कि रेप पीड़िता को सह-अपराधी कहना उसका अपमान है. लेकिन शायद न्यायमूर्ति ने सोचा होगा, “कभी-कभी न्याय की देवी की आंखों पर बंधी पट्टी को भी रिबन समझ कर लहराना चाहिए.”
अब देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले फैसलों में और कौन-कौन से ‘चंचल अपराध’ खोजे जाएंगे. हो सकता है भविष्य में जेब काटना ‘पॉकेट मित्रता’, धोखाधड़ी ‘व्यावसायिक चतुराई’, और हत्या ‘आत्मरक्षा का अत्यधिक अभ्यास’ कहलाए.
आखिरकार, भारतीय न्याय व्यवस्था में सब संभव है — बस फैसला सुनाने वाला कौन है, ये मायने रखता है!

VIKAS TRIPATHI
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