
मुंबई: आगामी महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में वंशवाद की राजनीति एक बड़ा मुद्दा बनकर उभरी है। लेकिन इस बार महाराष्ट्र में 20 नवंबर को होने वाले चुनावों में परिवारिक टकराव भी देखने को मिलेगा, जहां पति-पत्नी, चाचा-भतीजा, भाई-भाई और पिता-पुत्र एक-दूसरे के खिलाफ मैदान में उतरेंगे।
महाराष्ट्र में 288 विधानसभा सीटों पर मतदान 20 नवंबर को होगा और परिणाम तीन दिन बाद घोषित किए जाएंगे।
चाचा बनाम भतीजा: बारामती में भिड़ंत
सबसे चर्चित सीट बारामती है, जहां शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी (SP) के उम्मीदवार युगेंद्र पवार अपने चाचा और उपमुख्यमंत्री अजित पवार के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे। यह दूसरा मौका है जब पवार परिवार के गढ़ बारामती में परिवार के भीतर संघर्ष हो रहा है। इससे पहले 2024 लोकसभा चुनाव में अजित पवार की पत्नी सुनैत्रा पवार को उनकी चचेरी बहन और एनसीपी (SP) नेता सुप्रिया सुले ने हराया था। अजित पवार अब तक सात बार बारामती विधानसभा सीट और एक बार बारामती लोकसभा सीट जीत चुके हैं।
पति बनाम पत्नी: छत्रपति संभाजीनगर में मुकाबला
छत्रपति संभाजीनगर के कन्नड़ विधानसभा क्षेत्र में निर्दलीय उम्मीदवार हर्षवर्धन जाधव का मुकाबला उनकी अलग रह रही पत्नी और शिवसेना उम्मीदवार संजना जाधव से है। संजना, बीजेपी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रावसाहेब दानवे की बेटी हैं। वहीं, संजना जाधव के भाई संतोष दानवे जलना के भोकर्डन सीट से बीजेपी उम्मीदवार हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री के बेटे मैदान में
पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख के बेटे और कांग्रेस उम्मीदवार अमित देशमुख और धीरज देशमुख लातूर शहर और लातूर ग्रामीण सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। इसी तरह, बीजेपी सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे के बेटे नितेश राणे और निलेश राणे कुडाल और कणकवली सीटों से क्रमशः शिवसेना और बीजेपी उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में हैं।
ठाकरे भाइयों की टक्कर
मुंबई में ठाकरे परिवार के सदस्य भी अलग-अलग सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं। शिवसेना (UBT) के मौजूदा विधायक आदित्य ठाकरे वर्ली सीट से पुनः चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि उनके मामा के बेटे वरुण सरदेसाई बांद्रा (पूर्व) सीट से पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं, आदित्य के चचेरे भाई और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे मुंबई के महिम सीट से चुनाव मैदान में हैं।
इस बार के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में परिवारिक टकराव ने चुनावी मैदान को और भी रोचक बना दिया है, जहां वंशवाद और पारिवारिक राजनीति के मुद्दे चर्चा का विषय बने हुए हैं।