
गाजीपुर – जनपद गाजीपुर के नोनहरा थाना क्षेत्र के पयामपुर छावनी गांव सहित आसपास के 14-15 गांवों के लोग वर्षों से एक पक्के पुल की मांग कर रहे थे, लेकिन जनप्रतिनिधियों और सरकार की ओर से केवल आश्वासन ही मिले। इसी से आहत होकर भारतीय सेना के इंजीनियरिंग कोर के पूर्व जवान रविंद्र यादव ने स्वयं पुल बनाने का संकल्प लिया।
गांव की समस्या और पुल की जरूरत
गाजीपुर जिले के इन गांवों को मुख्य सड़क से जोड़ने के लिए मगई नदी पर पुल बनाना अत्यंत आवश्यक था। लेकिन आजादी के बाद से अब तक कोई स्थायी पुल नहीं बनाया गया।
- पुल न होने के कारण लोग लकड़ी के अस्थायी पुल या नाव के सहारे नदी पार करते थे।
- बाढ़ के दौरान लकड़ी का पुल बह जाता था और नाव ही एकमात्र सहारा बचता था।
- गाजीपुर की सीधी दूरी 18 किमी है, लेकिन पुल न होने से सड़क मार्ग से 42 किमी का सफर तय करना पड़ता है।
- पास का पुलिस थाना महज 3 किमी दूर है, लेकिन सड़क मार्ग से जाने पर यह दूरी 30 किमी हो जाती है।
सेना के पूर्व इंजीनियर की पहल

रविंद्र यादव 55 इंजीनियर रेजिमेंट में सेवाएं दे चुके हैं और सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा होल्डर हैं। जब वे रिटायर होकर गांव लौटे, तो उन्होंने गांव की इस समस्या को दूर करने के लिए स्वयं पुल बनाने का निर्णय लिया।
उन्होंने रिटायरमेंट के 10 लाख रुपये इस कार्य के लिए दान किए और गांव के लोगों से 60-70 लाख रुपये चंदा जुटाया। जो लोग आर्थिक रूप से सहयोग नहीं कर सकते थे, वे मजदूरी करके मदद कर रहे हैं।
पुल निर्माण की प्रगति
- 25 फरवरी 2024 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने भूमि पूजन और शिलान्यास किया।
- नदी में दो मजबूत पिलर खड़े किए जा चुके हैं।
- दोनों ओर एप्रोच मार्ग का निर्माण पूरा हो चुका है।
- अब स्लैब की ढलाई का कार्य चल रहा है, जिसे ग्रामीणों के सहयोग से पूरा किया जा रहा है।
- पुल की कुल लंबाई 105 फीट होगी।
गांव वालों का संघर्ष और नेताओं की अनदेखी
गांव के लोग वर्षों से पुल की मांग कर रहे थे। यहां तक कि जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा, जो गाजीपुर से सांसद और रेल राज्य मंत्री भी रह चुके हैं, उनका गांव भी पास में ही है। फिर भी आज तक किसी भी जनप्रतिनिधि ने पुल निर्माण के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया।
गांव के लोगों की मदद से बन रहा ‘जनता का पुल’
रविंद्र यादव ने बताया कि यह पुल सरकारी बजट के बिना, सिर्फ गांव वालों के सहयोग से बन रहा है। लोग अपने सामर्थ्य के अनुसार धनराशि, श्रम और निर्माण सामग्री देकर योगदान कर रहे हैं।
यह पुल न केवल गांवों को जोड़ने का काम करेगा, बल्कि जनप्रतिनिधियों को यह संदेश भी देगा कि जनता खुद अपनी तकदीर लिख सकती है।