
दिल्ली की एक वाणिज्यिक अदालत ने ऐतिहासिक बीकानेर हाउस को कुर्क करने का आदेश जारी किया है। यह कार्रवाई नोखा नगर निगम द्वारा 2020 के मध्यस्थ निर्णय का पालन न करने पर की गई है, जिसमें निजी कंपनी Enviro Infra Engineers Pvt. Ltd. को ₹50.31 लाख का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था।
क्या है मामला?
- नोखा, जो राजस्थान के बीकानेर जिले में स्थित एक नगरपालिका है, बीकानेर हाउस को अपनी संपत्तियों में दर्ज करता है।
- जनवरी 2020 में, मध्यस्थता ट्रिब्यूनल ने नोखा नगर निगम को sewage treatment plant परियोजना के लंबित भुगतान के लिए कंपनी के पक्ष में फैसला दिया।
- निगम न केवल भुगतान करने में विफल रहा, बल्कि अदालत द्वारा संपत्तियों की जानकारी देने का निर्देश भी नजरअंदाज कर दिया।
अदालत का आदेश
18 सितंबर 2024 को, पटियाला हाउस कोर्ट के वाणिज्यिक न्यायाधीश विद्या प्रकाश ने आदेश दिया:
“न्यायिक आदेश का पालन न करने और बार-बार निर्देशों के बावजूद संपत्तियों का हलफनामा प्रस्तुत करने में विफल रहने पर बीकानेर हाउस जैसी अचल संपत्ति को कुर्क करने के लिए वारंट जारी किया जाता है।”
बीकानेर हाउस: सांस्कृतिक धरोहर पर संकट
बीकानेर हाउस, जो नई दिल्ली में इंडिया गेट के पास स्थित है, महाराजा गंगा सिंह के शासनकाल में बीकानेर राज्य का मुख्यालय हुआ करता था। यह राजस्थान की स्थापत्य और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है और अब एक लोकप्रिय कला और प्रदर्शनी स्थल है।
सरकार की प्रतिक्रिया
राजस्थान सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट में इस आदेश को चुनौती देने की घोषणा की है।
- एडिशनल एडवोकेट जनरल शिव मंगल शर्मा ने कहा:
“बीकानेर हाउस के कुर्की आदेश ने गंभीर चिंता पैदा की है। यह राज्य की सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस मामले में पूर्व अधिकारी की लापरवाही की जांच की जाएगी।” - सरकार ने संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करने और अदालत के निर्देशों का पालन करने के लिए कानूनी विशेषज्ञों को नियुक्त किया है।
विवाद का इतिहास
- 2011 में नोखा नगर निगम ने सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के डिजाइन और निर्माण के लिए निविदा जारी की।
- Enviro Infra Engineers Pvt. Ltd. ने 2016 में परियोजना पूरी कर ली, लेकिन अंतिम भुगतान नहीं मिला।
- 2019 में कंपनी ने दिल्ली इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर का रुख किया, जिसने 2020 में कंपनी के पक्ष में फैसला सुनाया।
आगे की सुनवाई
नोखा नगर निगम और राजस्थान सरकार को 29 नवंबर 2024 को अदालत में पेश होने का निर्देश दिया गया है। वहीं, सरकार ने आदेश पर तत्काल रोक लगवाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
संदेश
यह मामला न केवल एक कानूनी विवाद को उजागर करता है, बल्कि सरकारी संस्थाओं की जवाबदेही और सांस्कृतिक धरोहरों की सुरक्षा पर भी सवाल खड़ा करता है।