
बांग्लादेश में स्वतंत्रता सेनानियों के आरक्षण के विरोध में चल रहे छात्र आंदोलन के बाद सत्ता परिवर्तन तो हो गया है, लेकिन स्थिति अभी भी सामान्य नहीं हो पाई है। पूर्ववर्ती सरकार अवामी लीग के नेताओं के खिलाफ हिंसा का दौर जारी है। इस बीच, पाकिस्तान के प्रसिद्ध धर्मगुरु इंजीनियर मोहम्मद अली मिर्जा ने हिंसा फैलाने वालों के खिलाफ कड़ा बयान जारी किया है।
दरअसल, सऊदी अरब में रह रहे एक बांग्लादेशी युवक रैहान ने उनसे पूछा था कि उनके देश में एक तानाशाह ने सत्ता पर कब्जा कर लिया है। ऐसे तानाशाह के खिलाफ इस्लाम के अनुसार क्या कदम उठाना चाहिए? इसके जवाब में उन्होंने स्पष्ट किया कि इस्लाम में किसी भी तरह के हथियारबंद विद्रोह की अनुमति नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकार के खिलाफ हथियार उठाना गैर इस्लामी है और इससे देश में अराजकता फैलती है। इसके अलावा, सत्ता में बैठे लोगों के पास हथियार होते हैं, जिससे निर्दोष लोगों की हत्या हो सकती है। इसलिए उन्होंने भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के नागरिकों से अपील की कि वे अपनी सरकारों के खिलाफ किसी भी हिंसक गतिविधि में शामिल न हों।
उन्होंने आगे कहा कि कुछ लोग अपनी सरकार को गलत या गैर-इस्लामी करार देकर विद्रोह करते हैं और अपने विद्रोह को हज़रत इमाम हुसैन के उस समय के शासक यज़ीद बिन मुआविया के खिलाफ उठाए गए संघर्ष से जायज ठहराने की कोशिश करते हैं, जो कि पूरी तरह से गलत है।
इंजीनियर मिर्जा ने जोर देकर कहा कि आज का कोई शासक यजीद नहीं है, और न ही कोई विद्रोही नेता इमाम हुसैन। इसलिए, किसी भी विद्रोही गतिविधि को इमाम हुसैन के नाम पर उचित ठहराना गलत है। इमाम हुसैन के समय के लोग पैगंबर मुहम्मद के प्रशिक्षित लोग थे, और उनके फैसले की तुलना आज के नेताओं के फैसलों से करना अनुचित है।
उन्होंने हिंसक विद्रोह की बजाय लोकतांत्रिक तरीके से अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने की सलाह दी। उन्होंने यह भी कहा कि बांग्लादेशी संघर्षों का परिणाम है कि सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण को 30 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया है। उन्होंने जोर देकर कहा कि राजनीतिक संघर्ष के माध्यम से समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।
अमेरिका और यूरोप के उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि वहां की मौजूदा शांति, तरक्की और न्याय का शासन एक दिन में स्थापित नहीं हुआ, बल्कि इसके पीछे वर्षों का संघर्ष है। इसलिए, लोकतांत्रिक मार्ग अपनाना ही सही तरीका है।