
“जो जलता है, वही उजाला करता है।”
“जो चलता है, वही रास्ते बनाता है।”
कोरोना महामारी के अंधकार में जब हर ओर भय और अविश्वास की चादर फैली थी, तब उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले से एक साधारण इंसान ने अपने असाधारण हौसले से मानवता की सेवा का दीप जलाया। यह कहानी है निशांत सिंह, जिन्हें देशभर में “सैनिटाइजर मैन ऑफ इंडिया” के नाम से जाना जाने लगा।
जब मौत का साया था, तब उम्मीद बनकर खड़े थे निशांत सिंह
साल 2020—कोरोना का भयानक कहर पूरी दुनिया पर टूटा। भारत भी इससे अछूता नहीं था। लॉकडाउन लगते ही सड़कों पर सन्नाटा था, लोग अपने घरों में कैद थे, और अस्पतालों में दर्द और बेबसी की चीखें गूंज रही थीं। लेकिन इसी समय, निशांत सिंह ने समाज की सेवा का संकल्प लिया। उन्होंने अपने चार-पांच साथियों के साथ एक सेनेटाइजेशन टीम बनाई और जिला प्रशासन से अनुमति लेकर 135 दिनों तक लगातार बिना रुके, बिना थके सेनेटाइजेशन का कार्य किया।

जहां सरकार के कर्मचारी जाने से डरते थे, वहां यह निडर योद्धा अपनी पीठ पर सैनिटाइजर मशीन लादे पहुंच जाता।
• अस्पतालों से लेकर सरकारी दफ्तरों तक,
• थानों से लेकर जेल की बैरकों तक,
• पुलिस लाइन के आवासों से लेकर शहर के हॉटस्पॉट इलाकों तक,
• गांवों, बाजारों और गलियों तक,
लगभग 5 लाख लोगों तक अपनी सेवाएं पहुंचाई।
सेवा की परिभाषा: सिर्फ सेनेटाइजेशन नहीं, संपूर्ण मानवता की रक्षा
“अपने हिस्से की धूप सहकर, मैंने औरों को छांव दी है।”
निशांत सिंह ने सिर्फ सैनिटाइजेशन तक खुद को सीमित नहीं रखा।
• राशन वितरण,
• लंच पैकेट बांटना,
• मास्क और सैनिटाइजर देना,
• दवाइयों की आपूर्ति,
• कोविड जागरूकता अभियान,

इन सभी कार्यों में भी वे दिन-रात जुटे रहे।
हर सुबह युवाओं की लाइन लगती थी, जो उनके पास हाइपो-क्लोराइड या सैनिटाइजर लेने आते और अपने-अपने मोहल्लों, गांवों को सैनिटाइज करते। इस प्रकार, एक आदमी से शुरू हुई इस मुहिम ने हजारों युवाओं को प्रेरित किया और गाजीपुर को सुरक्षित बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
कोविड वैक्सीनेशन का जब विरोध हुआ, तब फिर खड़े हुए निशांत सिंह
“जो डर से हार मान जाए, वो योद्धा नहीं होता।”
जब कोरोना वैक्सीन को लेकर अफवाहें फैलाई गईं और कुछ लोग इसे लगवाने से कतरा रहे थे, तब भी निशांत सिंह मैदान में उतरे। वे गांव-गांव जाकर लोगों को समझाने लगे कि वैक्सीन ही इस महामारी से बचाव का सबसे मजबूत हथियार है। नतीजा यह हुआ कि गाजीपुर में बड़ी संख्या में लोगों ने वैक्सीन लगवाई, और यह जिला अन्य जिलों की तुलना में सुरक्षित साबित हुआ।
135 दिन—परिवार से दूर, लेकिन समाज के सबसे करीब
“अपनों से बिछड़ कर भी, जो औरों को अपनाता है, वही असल में समाज का रक्षक कहलाता है।”
निशांत सिंह की निजी जिंदगी भी इस संघर्ष की गवाह बनी। उनके घर में
• एक 8 महीने का बेटा,
• दो बेटियां (15 और 12 साल की),
• पत्नी,
• 78 साल की मां और 83 साल के पिता,
• बड़े भाई,
सभी थे, लेकिन 135 दिनों तक उन्होंने अपने परिवार से दूरी बनाए रखी ताकि वे समाज की सेवा कर सकें। उनकी इस कुर्बानी और निस्वार्थ सेवा को देखकर पूरे जिले ने उन्हें सम्मान और प्यार दिया।

मानवता के लिए अंतिम बलिदान: अपने अंग भी दान कर दिए
“जिसने जीते-जी सेवा की, वह मरकर भी लोगों की जिंदगी रोशन करेगा।”
निशांत सिंह न केवल महामारी के दौरान सेवा के प्रतीक बने, बल्कि उन्होंने अपने मृत्यु के बाद भी समाज की भलाई के लिए अपने अंग दान करने का संकल्प लिया।
14 दिसंबर 2021 को उन्होंने राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (NOTTO) के माध्यम से अपने शरीर के अंगों और ऊतकों को दान करने की प्रतिज्ञा ली।
• किडनी, हार्ट, आंत, पैंक्रियास, फेफड़े, लिवर
• हड्डियां, हार्ट वॉल्व, त्वचा, कॉर्निया, रक्त वाहिकाएं
यह दिखाता है कि सेवा उनके लिए सिर्फ एक कार्य नहीं, बल्कि जीवन का लक्ष्य था।

सम्मान और पहचान: जब संघर्ष को सलाम मिला
“नाम नहीं, काम बोलता है।”
समय बदला, कोरोना का प्रकोप कम हुआ, लेकिन निशांत सिंह की सेवा की गूंज दूर तक सुनाई दी।
• 3 बार पद्मश्री पुरस्कार के लिए नामांकन
• 700 से अधिक सम्मान पत्र और प्रशस्ति पत्र
• देश और विदेशों में प्रशंसा
“सैनिटाइजर मैन ऑफ इंडिया” के रूप में वे आज भी सेवा और समर्पण की मिसाल हैं।
एक आखिरी सलाम—ऐसे योद्धाओं को नमन
“जो इंसानियत के लिए जिए, जो दूसरों के लिए लड़े, जो बिना स्वार्थ के सेवा करे, वही असली नायक है।”
निशांत सिंह की यह कहानी हमें सिखाती है कि अगर इंसान ठान ले, तो कोई भी मुश्किल उसे रोक नहीं सकती। यह सिर्फ एक व्यक्ति की कहानी नहीं, बल्कि समर्पण, सेवा और साहस का इतिहास है।
ऐसे योद्धाओं को मेरा सलाम!