भंगेल एलिवेटेड रोड पर ज़मीन से जुड़ी एक तीखी रिपोर्ट-: विकास त्रिपाठी
नोएडा — अगर आप सोच रहे हैं कि दिल्ली से सटे नोएडा की सड़कें विकास की मिसाल हैं, तो ज़रा भंगेल, सलारपुर या बरोला की तरफ़ होकर आइए। ऊपर आसमान को चीरती एलिवेटेड रोड ज़रूर आपको ‘प्रगति’ का भ्रम देगी, लेकिन नीचे ज़मीन पर फैली कीचड़, टूटे रास्ते और बजबजाते नालों की हक़ीक़त आपको बताएगी कि स्मार्ट सिटी सिर्फ ड्रॉइंग बोर्ड पर होती है, ज़मीन पर नहीं।
यह कोई सड़क नहीं, बल्कि ₹500.87 करोड़ की ‘ऊँचाई’ पर टिकी बदहाली की इमारत है। और यह खुलासा किसी राजनेता ने नहीं, बल्कि समाजसेवी डॉ. रंजन तोमर की RTI ने किया है — एक ऐसा दस्तावेज़ जो “सड़क के नीचे दबे सच” को सामने लाता है।
‘एलिवेटेड रोड’ या ‘एलिवेटेड धोखा’?
RTI के मुताबिक, उत्तर प्रदेश राज्य सेतु निगम को अब तक ₹500 करोड़ से अधिक की रकम दी जा चुकी है। लेकिन सवाल यह है कि अगर ऊपर सड़क बन भी गई, तो क्या नीचे की बदहाल ज़िंदगी की कोई कीमत नहीं?
भंगेल में पानी भरे गड्ढों में झूलते बच्चे,
सलारपुर में बारिश के साथ बहती सड़कें,
बरोला बाज़ार में नाले ऐसे फूटते हैं जैसे विकास खुद बह कर निकल गया हो।
क्या वाकई एक ‘हवाई सड़क’ ही विकास का पैमाना है?
बारिश आई, सड़क तैराई!
स्थानीय लोगों की मानें तो हल्की सी बारिश से सड़कें तालाबों में तब्दील हो जाती हैं। दुकानदार बताते हैं कि सीवर की गंध इतनी तीव्र होती है कि ग्राहक तो दूर, मक्खियाँ भी परहेज करती हैं।
और फिर भी, विभाग के रिकॉर्ड में ‘निर्माण प्रगति पर है’ लिखा है। शायद “प्रगति” अब सिर्फ टेंडर पास होने को कहते हैं।
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500 करोड़ में “ऊपर” तरक्की, “नीचे” बदहाली!नोएडा के भंगेल एलिवेटेड रोड पर RTI से बड़ा खुलासा हुआ है।
समाजसेवी डॉ. रंजन तोमर की RTI से पता चला कि ₹500.87 करोड़ खर्च होने के बावजूद काम अधूरा है। pic.twitter.com/aVW8EHdk77
— PARDAPHAAS NEWS (@pardaphaas) July 13, 2025
पब्लिक का पैसा, मगर फिजूल का फ़ायदा?
सबसे बड़ा सवाल – 500 करोड़ गए कहाँ?
क्या यह विकास की ऊँचाई है या घोटाले की गहराई?
क्या जनता की ज़रूरत अब सिर्फ इतनी रह गई है कि वो ऊपर से उड़ती गाड़ियों को देख भर ले?
अगर सड़क सिर्फ ऊपर की बनी, तो नीचे की गंदगी का जवाबदार कौन?
नोएडा की ये सड़कें हमें बताती हैं कि कैसे “विकास” सिर्फ रिपोर्ट कार्ड में पास होता है, असल में फेल।
जहाँ बजट शान से बहता है, वहीं जनता की आवाज़ कीचड़ में दबती है।
अगर ज़मीन पर चलने वाले नागरिक को हर रोज़ गड्ढों से जूझना पड़े, तो ऊपर से चमकती सड़कें नहीं, बल्कि लोकतंत्र पर तमाचा हैं।














