
संभल: हाल ही में उत्तर प्रदेश के संभल स्थित शाही जामा मस्जिद को लेकर एक बड़ा विवाद सामने आया है। यहां दावा किया जा रहा है कि यह मस्जिद पहले ‘हरि हर मंदिर’ थी, जिसे तोड़कर मस्जिद बनाया गया। ऐसे ही दावे वाराणसी, मथुरा और धार में भी किए गए हैं। इन विवादों ने समाज में एक नई बहस को जन्म दिया है। इस बीच, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत के 18 महीने पहले दिए गए एक बयान पर पुनः चर्चा हो रही है। उनका बयान था, “हर मस्जिद में शिवलिंग क्यों ढूंढना?” इस बयान ने ज्ञानवापी मस्जिद विवाद के दौरान काफी सुर्खियां बटोरी थीं। लेकिन अब, जब देशभर में मस्जिद-मंदिर विवादों की एक नई लहर चल रही है, मोहन भागवत इस विषय पर चुप क्यों हैं?
मोहन भागवत का वह बयान
2 जून 2022 को नागपुर में संघ शिक्षा वर्ग तृतीय वर्ष के समापन समारोह में मोहन भागवत ने कहा था, “ज्ञानवापी का मुद्दा एक इतिहास है। इतिहास को हम बदल नहीं सकते हैं। यह इतिहास हमने नहीं बनाया, न आज के हिंदुओं ने और न ही मुसलमानों ने। यह पहले की बात है। इस्लाम बाहर से आया, आक्रमणकारियों के हाथ आया। उन्होंने भारत की स्वतंत्रता चाहने वाले लोगों का मनोबल खत्म करने के लिए देवस्थानों को तोड़ा।” भागवत ने यह भी कहा था कि हमें पुराने विवादों को तूल नहीं देना चाहिए और हर मस्जिद में शिवलिंग की खोज नहीं करनी चाहिए।
उनका यह बयान यह संदेश देने की कोशिश थी कि धार्मिक स्थलों को लेकर विवाद बढ़ाने की बजाय हमें एकजुट होकर आगे बढ़ना चाहिए। हालांकि, अब जब मस्जिदों और मंदिरों के बारे में ऐसे विवाद और ज्यादा बढ़ गए हैं, तो सवाल यह उठता है कि मोहन भागवत इस पर खामोश क्यों हैं?
ताजा विवाद: शाही जामा मस्जिद, संभल
उत्तर प्रदेश के संभल जिले की ‘शाही जामा मस्जिद’ से जुड़े ताजा विवाद ने एक नई बहस को जन्म दिया है। मस्जिद के इतिहास को लेकर दावा किया जा रहा है कि यह पहले ‘हरि हर मंदिर’ था। इसके अलावा, मथुरा, वाराणसी और धार में भी इस तरह के दावे किए जा रहे हैं। इस मस्जिद पर कोर्ट ने सर्वे कराने का आदेश दिया था, लेकिन जब 24 नवंबर को दूसरी बार सर्वे के लिए एएसआई की टीम पहुंची, तो वहां हिंसा भड़क गई। इस हिंसा में पांच लोग मारे गए, जिनमें दो बच्चे भी शामिल थे। इस घटना के बाद से पूरे इलाके में तनाव बढ़ गया है और लोगों को डर है कि यह विवाद और ज्यादा बढ़ सकता है।
अन्य विवादित स्थान
- बदायूं: जामा मस्जिद शम्सी उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में स्थित जामा मस्जिद शम्सी पर भी विवाद चल रहा है। कुछ लोगों का कहना है कि यह मस्जिद पहले ‘नीलकंठ महादेव मंदिर’ थी। हिंदू पक्ष का कहना है कि यह मंदिर था, जिसे बाद में मस्जिद में बदल दिया गया। इस मामले में कोर्ट में सुनवाई जारी है।
- अजमेर शरीफ दरगाह राजस्थान के अजमेर में स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को लेकर भी विवाद हो रहा है। कुछ लोग दावा कर रहे हैं कि यह जगह पहले एक शिव मंदिर थी। उन्होंने एएसआई से इस स्थान का सर्वे कराने की मांग की है।
- धार: भोजशाला मस्जिद मध्य प्रदेश के धार में स्थित भोजशाला पर हिंदू और मुसलमानों के बीच विवाद चल रहा है। हिंदू इसे 11वीं सदी का एक मंदिर मानते हैं, जबकि मुसलमान इसे 14वीं सदी में बनी मस्जिद मानते हैं।
क्यों खामोश हैं मोहन भागवत?
मोहन भागवत का वह बयान “हर मस्जिद में शिवलिंग क्यों ढूंढना” एक समय पर बेहद महत्वपूर्ण था, जब वे यह संदेश दे रहे थे कि हमें धार्मिक स्थलों पर विवादों को बढ़ावा नहीं देना चाहिए। लेकिन अब जब देश भर में धार्मिक स्थलों के बारे में इसी तरह के विवाद सामने आ रहे हैं, तो मोहन भागवत चुप क्यों हैं?
समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता आजम खान ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा, “मोहन भागवत का बयान सही था, लेकिन अब वह खामोश हैं क्योंकि उन्हें यह समझ में आ गया है कि धार्मिक मुद्दे अब राजनीतिक रूप से सबसे प्रभावी हथियार बन चुके हैं। 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा और आरएसएस को अपनी कोर हिंदुत्व की राजनीति को फिर से मजबूत करने की जरूरत महसूस हो रही है।”
कांग्रेस नेता राशिद अल्वी ने भी कहा, “आरएसएस और बीजेपी का यह बयानबाजी का तरीका है। वे अपनी पब्लिक इमेज को बेहतर बनाने के लिए ऐसे बयान देते हैं, लेकिन असल में उनका मकसद कुछ और होता है।”
आरएसएस का पक्ष
आरएसएस के प्रचारक विकास सक्सेना ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “मोहन भागवत जी का बयान हमेशा वैध रहेगा। उनका यह बयान कि हमें हर मस्जिद में शिवलिंग ढूंढने की जरूरत नहीं है, अभी भी आरएसएस के विचारों का हिस्सा है।” उन्होंने कहा कि जब भी कोई ऐतिहासिक स्थल या इमारत के प्रमाण मिलते हैं, तो उस पर सर्वे होना चाहिए। लेकिन अनावश्यक विवादों से बचना चाहिए।
सक्सेना ने यह भी कहा कि आरएसएस का काम समाज में संदेश देना है, न कि राजनीति करना। उनका यह बयान उस विचारधारा का हिस्सा है, जो सनातन धर्म की विविधता और एकता पर विश्वास रखता है।
मंदिर-मस्जिद विवाद: राजनीतिक मुद्दा?
इस तरह के विवाद अक्सर धार्मिक और सांस्कृतिक मतभेदों के कारण होते हैं, लेकिन क्या इनका राजनीतिक रूप से इस्तेमाल किया जा रहा है? वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई ने कहा, “धर्म और राजनीति का मिश्रण हमेशा समस्याओं का कारण बनता है। नेताओं को चुनावी फायदे के लिए इन मुद्दों का इस्तेमाल करना चाहिए, लेकिन यह समाज के लिए खतरनाक हो सकता है।”
वहीं, विकास सक्सेना ने कहा, “सच को छिपाना और उसे न देखना हमेशा समस्याएं पैदा करता है। हमें सही तथ्यों को सामने लाना चाहिए और फिर इस पर चर्चा करनी चाहिए।”
निष्कर्ष
मस्जिदों और मंदिरों के बारे में बढ़ते विवादों के बीच मोहन भागवत का बयान यह दर्शाता है कि संघ की प्राथमिकता धार्मिक स्थलों पर अनावश्यक विवादों से बचना है। हालांकि, कुछ धार्मिक और राजनीतिक ताकतें इन विवादों का राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश कर रही हैं। इस तरह के विवादों से समाज में तनाव बढ़ सकता है, और यह जरूरी है कि हम इसे सुलझाने के लिए संवेदनशीलता और समझदारी से काम लें।